भले ही सरकार में है बीजेपी, लेकिन आदते अब भी विपक्ष जैसी

Although BJP in government, but habits are still like opposition
भले ही सरकार में है बीजेपी, लेकिन आदते अब भी विपक्ष जैसी
भले ही सरकार में है बीजेपी, लेकिन आदते अब भी विपक्ष जैसी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। भाजपा-शिवसेना को सरकार संभाले तीन साल से अधिक समय हो गया है। लेकिन विरोधी पक्ष की भूमिका से वे खुद को बाहर नहीं निकाल पा रहे हैं। रह-रहकर पुराने लक्षण दिखाई पड़ते हैं। खैर शिवसेना तो सत्ता में रहकर विरोधी पक्ष की भूमिका निभाता रहा है। अब भाजपा में भी पुराने गुण उभरकर सामने आ रहे हैं। अधिवेशन के पहले सप्ताह विधानपरिषद में मंत्रियों ने जिस तरह विपक्ष का विरोध किया और भाजपा सदस्यों ने वेल में आकर जिस तरह प्रदर्शन और नारेबाजी की, उससे कुछ समय के लिए असमंजस की स्थिति उभरी। 

कर्जमाफी और कृषि संकट पर चर्चा के लिए 289 का प्रस्ताव

बुधवार को विधानपरिषद में विपक्ष द्वारा कर्जमाफी और कृषि संकट पर चर्चा के लिए 289 का प्रस्ताव रखा था। यह प्रस्ताव सभापति ने खारिज कर दिया था। उपसभापति माणिकराव ठाकरे ने विपक्ष को एक मौका देते हुए विषय 289 अंतर्गत कैसे बनता है, यह समझाने को कहा। राकांपा नेता सुनील तटकरे ने यह समझाने का प्रयास किया। हालांकि ठाकरे ने उस प्रस्ताव को फिर खारिज कर दिया। लेकिन सत्तापक्ष ने इसपर आपत्ति जताते हुए विपक्षी नेताओं द्वारा बार-बार 289 का मुद्दा उठाने और उपसभापति द्वारा उन्हें बार-बार प्रस्ताव रखने का मौका देने पर विरोध किया। 

नेताओं ने किया जमकर विरोध

राजस्व मंत्री चंद्रकांत पाटील, संसदीय कार्यमंत्री गिरीश बापट ने इसका विरोध किया। सत्तापक्ष के सदस्यों को इशारा करते हुए वेल में उतरने को कहा। जिसके बाद भाजपा-शिवसेना के सदस्य वेल में उतरकर नारेबाजी करते दिखे। पिछले कुछ सालों में शायद ऐसा नजारा कम ही दिखा की सत्तापक्ष के सदस्य वेल में उतरे हो। इसी अधिवेशन में सत्तापक्ष सदस्यों को अपनी सरकार पर बरसते हुए देखा गया। शिक्षक ना.गो. गाणार ने शिक्षक और शालाओं की उपेक्षा को लेकर सरकार का खुलकर विरोध किया। सहकार बैंक संबंध में पूछे गए सवाल पर भी श्री गाणार ने दिए गए लिखित जवाब पर सरकार को घेरने की कोशिश की। शिवसेना नेता नीलम गोर्हे भी मिहान और कानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठाती दिखी। जिससे सत्तापक्ष ही कई बार विरोधी पक्ष की भूमिका अदा करता दिखा। 

विधानपरिषद में कार्यवाही का पहला सप्ताह संतोषजनक

फिलहाल विधानपरिषद में कार्यवाही का पहला सप्ताह संतोषजनक रहा। हालांकि पहले दो दिन कर्जमाफी और कृषि संकट पर चर्चा कराने को लेकर जमकर हंगामा हुआ। जिसकारण कार्यवाही नहीं चल सकी। तीसरे दिन दोपहर बाद फिर हंगामा बरपा। कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। चौथे और पांचवें दिन सुचारु कामकाज चलने में सबका सहयोग मिला। पहले सप्ताह में मुस्लिम और मराठा आरक्षण का मुद्दा छाया रहा। मुस्लिम आरक्षण पर सरकार ने जहां अलग से कानून बनाने से इनकार कर दिया, वहीं मराठा आरक्षण को लेकर सकारात्मकता दिखाई।

शिक्षक और शालाओं से जुड़े विषय भी खूब हुई चर्चा

शिक्षक और शालाओं से जुड़े विषय भी खूब चर्चा में रहे। इस दौरान कहीं-कहीं सरकार का रवैया भी हैरान करने वाला रहा। 3 साल की समस्याओं के लिए भी वे विपक्ष को पिछले 15 साल का उदाहरण देते दिखे। अनेक विषयों पर सरकार इसे विपक्ष का पाप बताते दिखी। ऐसे में संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाए। शिक्षा मंत्री विनोद तावडे और शिक्षक विधायक कपिल पाटील में लंबे समय से चलते आ रहे मतभेद भी थमते नहीं दिखे। पाटील के सवालों पर श्री तावडे काफी तीखे दिखे। 

Created On :   17 Dec 2017 3:38 PM IST

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