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उपराजधानी हर घर से रोज निकलता है औसतन दो किलो कचरा, डपिंग यार्ड के कारण भांडेवाड़ी बना बीमरियों का अड्डा

डिजिटल डेस्क, नागपुर। उपराजधानी में हर घर से प्रतिदिन औसतन 2.22 किलोग्राम कचरा निकलता है। वर्ष 2018-19 में प्रतिदिन लगभग 1255 मीट्रिक टन कचरा पूरे शहर से इक्कठा हुआ, जो वर्ष 2014-15 की तुलना में 172 मीट्रिक टन अधिक था। वित्त वर्ष 2018-19 के समाप्त होने पर मनपा के स्वास्थ्य विभाग (सेनिटेशन) की ओर आकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, शहर की 563674 संपत्तियां प्रतिदिन 12 लाख 55 हजार किलोग्राम कचरा उत्पन्न करती हैं। इस क्षेत्र में काम करने वाले विशेषज्ञों और अभिकर्ताओं का मानना है कि शहर में कचरे की अत्यधिक मात्रा के कारण सही तरीके से उसका निस्तारण नहीं हो पा रहा है। मनपा के ठोस अपशिष्ट के उपचार की प्रस्तावित योजना को लागू करने में भी यह बड़ी चुनौती साबित हो रही है।
यह आंकड़ा कनक रिसोर्स मैनेजमेंट लिमिटेड की ओर से लोगों के घराें से संकलित कचरे का है। यानी शहर में उत्पन्न होने वाले कचरे की मात्रा इससे अधिक है। कनक की ओर से वर्ष 2008 में शहर के घरों से कचरा संकलित करने का काम शुरू किया गया है। मनपा की ओर से कनक को घरों से गीला और सूखा कचरा अलग-अलग उठाने और उसे भांडेवाड़ी तक पहुंचाने के लिए प्रति मीट्रिक टन कचरे के लिए 1306 रुपए अदा किया जा रहा है। हालांकि कनक की सेवा अब तक पूरे शहर में नहीं शुरू हो पाई है और न ही गीला और सूखा कचरा ही ठीक से अलग-अलग संकलित किया जा रहा है। पिछले वर्ष दिसंबर में गीला-सूखा कचरा अलग-अलग रखने पर ही कनक की ओर से कचरा संकलन की सख्त हिदायत के बावजूद अब तक इस समस्या का निदान नहीं हो पाया है।
तेजी से बढ़ता शहरीकरण भी चुनौती तेजी से बढ़ते शहरीकरण के कारण निकट भविष्य में कचरे की मात्रा और बढ़ सकती है। शहर के कई भागों में कनक की सेवा उपलब्ध नहीं होने के कारण लाेग अब भी सड़क के किनारे कचरा फेंक रहे हैं। शहर के बाहरी भागों में अब भी मनपा की ओर कचरा संकलन की सुविधा पूरी तरह शुरू नहीं हो पाई है।
भांडेवाड़ी डपिंग यार्ड में क्षमता से ज्यादा कचरा : मनपा के पास भांडेवाड़ी में लगभग 77 एकड़ जमीन है, जिसके 52 एकड़ पर कचरा डम्प किया जाता है और 25 एकड़ में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट है। भांडेवाड़ी के डंपिंग यार्ड की क्षमता से अधिक कचरा डंप किया जा चुका है।
मनपा के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के आंकड़ाें के अनुसार, शहर के लक्ष्मीनगर जोन में सबसे अधिक कचरा उत्पन्न होता है। यहां 73427 संपत्तियों से प्रतिदिन 150 मीट्रिक टन कचरा निकलता है। गांधीबाग में 55305 संपत्तियों से 145 मीट्रिक टन, सतरंजीपुरा में 42664 संपत्तियों से 130 मीट्रिक टन और धरमपेठ में 48369 संपत्तियों से 95 मैट्रिक टन कचरा उत्पन्न होता है।
गर्मी में आग और धुआं, बरसात में बदबू तथा मच्छर, जाड़े में चर्म रोग की परेशानी
भांडेवाडी क्षेत्र में रहने वाले डंपिंग यार्ड से परेशान हैं। परेशानी इस हद तक बढ़ गई है कि आस-पास की बस्तियों के हर घर मंे एक व्यक्ति बीमार है। डंपिंग यार्ड मंे जलने वाले कचरे के कारण क्षेत्र मंे अक्सर धुआं फैला रहता है। दम घुटने और खांसी की परेशानी आम है। दमा के रोगियों की तो जान पर बन आती है। गर्मी के दिन में आए दिन कचरे में आग लग जाती है। जाड़े में चर्म रोग की परेशानी पूरे क्षेत्र में होती है। बारिश में बदबू और मच्छर की समस्या : बारिश के समय परेशानी विकराल रूप ले लेती है। कचरा सड़ने से एक किलाेमीटर के दायरे में बदबू फैल जाती है। बारिश के पानी से मच्छर जन्म लेते हैं और क्षेत्र में डेंगू-मलेरिया की शिकायतें भी बढ़ने लगती हैं। रहवासी डंपिंग यार्ड के स्थानांतरित होने की राह देख रहे हैं, ताकि उनकी परेशानियां खत्म हो।
भांडेवाड़ी डंपिंग यार्ड परिसर का माहौल जानलेवा बनता जा रहा है। बदबू सीधे स्वास्थ्य पर वार किए जा रही है। आसपास की बस्तियों में सैकड़ों लोग बीमार होकर बिस्तर पकड़ने को मजबूर है। वहीं, डंपिंग यार्ड पानी टंकी परिसर में पानी के लिए टैंकर की आवाजाही खतरनाक रूप धारण करने लगी है। सड़कों पर गड्ढे ही गड्ढे हैं। वाहनों का टकराना भी आम बात है। गर्मी के इस मौसम में भी सड़क की हालात बरसात की तरह गंदगी से भरी हुई है। चाय दुकानदार राजू वैद्य व पान दुकानदार गौरव गुप्ता की तरह आसपास के कई नागरिकों ने कहा है कि लोगों मजबूरी में इस क्षेत्र में रह रहे हैं। शहर में होने के बाद भी परिसर में लोगों को अत्यंत पिछड़े गांवों की तरह मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहना पड़ रहा है।
डंपिंग यार्ड पानी की टंकी परिसर में काफी गंदगी फैली है। यहां टंकी से रोजाना 150 टैंकर क्षेत्र में जलापूर्ति करते हैं। एक टैंकर से दिन में 8 फेरी लगती है। टैंकर में पानी ओवरलोड होने से काफी मात्रा में पानी सड़क पर ही गिर जाता है। इससे सड़क पर कीचड़ हो जाता है। सड़क की हालत इतनी खराब है कि पैदल चलना मुश्किल हो जाता है। कीचड़ की गंदगी से बदबू फैल रही है। सड़क पर जगह जगह पर गड्ढे हैं। मोटरसाइकिल चालक अक्सर गिरते रहते हैं। स्कूल बस के आनेजाने में भी परेशानी होती है। टैंकर में पानी भरते समय सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है। जलापूर्ति कार्य से जुड़े कर्मचारी यहां टैंकर में पानी भरते हुए ही हाथ पैर धोते रहते हैं। गंदा पानी टैंकर में भरा जाता है। मंजूरी के बाद भी सड़कों का निर्माण कार्य नहीं हो पाया है।
Created On :   21 April 2019 5:55 PM IST