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प्रशासन ही उदासीन सरकारी भवनों में ही नहीं हो पाई रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था

डिजिटल डेस्क, नागपुर। शहर में भले ही अगस्त 2008 में 300 वर्ग मीटर या उससे अधिक भूखंड पर बनी इमारतों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था करना अनिवार्य कर दिया गया हो, लेकिन इसे लागू करने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए गए हैं। हालात यह हैं कि नागपुर में इतने वर्षों में लगभग 800 इमारतों में ही यह व्यवस्था है। इस गर्मी में भीषण जलसंकट के कारण शहर को जल स्रोतों के डेड स्टॉक से पानी लेना पड़ा है। पर्यावरणविद् इसका लंबे समय तक पड़ने वाले असर की चिंता प्रकट कर चुके हैं। शहर में अब भी पानी के प्रति न लोगों में और न ही एजेंसियों के रवैये पर कोई खास असर पड़ा है। शहर में निजी भवनों के साथ-साथ अधिकांश सरकारी भवनों में भी रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था नहीं हो पाई है। मनपा और नागपुर सुधार प्रन्यास व्यावसायिक, आवासीय और शासकीय भवनों में व्यवस्था लागू करने में बुरी तरह विफल साबित हुई है।
जल संग्रह में मददगार साबित हो सकती
एनजीटी के देश भर की सभी परियोजनाओं में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग व्यवस्था लागू किए जाने के निर्देश के बावजूद नागपुर शहर की सीमा में स्थित 20 फ्लाईओवर और रेलवे पुलों पर भी अब तक यह व्यवस्था लागू नहीं हो पाई है। शहर में फिलहाल केवल मेट्रो में इस पर काम चल रहा है। शहर में कोर्ट, हाईकोर्ट, कलेक्टर ऑफिस, एमएलए हॉस्टल, रेलवे स्टेशन यहां तक कि मनपा के कार्यालय में भी व्यवस्था लागू नहीं हुई है। ये सभी इमारतें काफी बड़ी हैं और बड़ी मात्रा में बारिश के जल के संग्रह में मददगार साबित हो सकती हैं।
जुर्माने का है प्रावधान
नागपुर में रेन वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य किए जाने संबंधी जीआर अगस्त 2008 में जारी किया गया था। राज्य सरकार की ओर से जारी जीआर के अनुसार शहर में सभी ले-आउट, नए निर्माण, पुनर्निर्माण जिनका क्षेत्रफल 300 वर्ग मीटर या उससे अधिक हो, रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था करना जरूरी है। मालिक या सोसाइटी को रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था को अच्छी हालत और मरम्मत की जिम्मेदारी निभानी है। नियम का पालन नहीं किए जाने पर अथॉरिटी प्रति 100 वर्ग मीटर पर 1000 रुपए वार्षिक का जुर्माना लगा सकती है।
क्यों जरूरी है
किसी भी इमारत में रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था के लिए इमारत की छत, टैरेस समेत अन्य पक्का या बगैर पक्का किए जगह पर गिरने वाले वर्षा जल का संग्रहण, उसे फिल्टर करने के बाद पाइप की मदद से कूएं में छोड़ना, इस तरह से जमा पानी का उपयोग घरेलू कामकाज जैसे कपड़े, बर्तन धोने, बगीचे में, टॉयलेट में किया जा सकता है। भूगर्भ जल स्तर बढ़ाने के लिए बालू और कंकड़ों की मदद से फिल्टर कर जमीन से तीन मीटर नीचे छोड़ा जाना चाहिए। पानी जमा करने वाले टैंक में ओवर फ्लो की व्यवस्था करना और टैंक के भरने के बाद पानी को पर्काेलेशन पिट के सहारे जमीन के अंदर जाने की व्यवस्था होनी चाहिए।
22 दिन के पानी की व्यवस्था संभव
अगर सही ढंग से रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था लागू की जाए, तो किसी भी इमारत में 22 दिन तक खर्च होने पाले पानी की व्यवस्था इससे हो सकती है। गर्मी में लगभग इतने ही दिनों शहर काे घोर जलसंकट का सामना करना पड़ता है। इससे मिले पानी का उपयोग खाने-पीने के अलावा अन्य कार्यों के लिए आसानी से किया जा सकता है। फिल्टर की व्यवस्था करने और आरो से साफ करने के बाद पीने के भी काम में लाया जा सकता है। औसत आकार के दो कमरे के घर के लिए इस व्यवस्था को लागू करने के लिए करीब 15 हजार रुपए की लागत आती है। इमारत के आकार के अनुसार खर्च 30 हजार से 1.50 लाख तक हो सकता है। शहर में गहराते जलसंकट को देखते हुए न्यूनतम सीमा को 100 वर्ग मीटर कर देना चाहिए।-विजय लिमये, ग्रीन एक्टिविस्ट और रेन वॉटर हार्वेस्टिंग विशेषज्ञ
नए नियम पर फिर सकता है पानी
शहर में लगातार बढ़ते जलसंकट से निपटने के लिए मनपा ने 125 वर्ग मीटर या उससे अधिक के भूखंड पर बनी इमारतों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य करने के प्रस्ताव पर पानी फिर सकता है, क्योंकि राज्य सरकार इस नियम को लागू करने के लिए कम से कम भूखंड सीमा 500 वर्ग मीटर करने पर विचार कर रही है। यह नियम भी वहां लागू हाेगा, जो ज्यादा भीड़भाड़ वाला न हो। जीआर के अनुसार गैर गांवथान भूभाग में 300 वर्ग मीटर भूखंड पर बनी इमारतों में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था करना जरूरी है। शहर में नगर रचना विभाग पिछले 9 वर्ष से नियमानुसार प्लाॅटों पर बनने वाली इमारतों का नक्शा रेन वॉटर हार्वेस्टिंग योजना के साथ पारित कर रहा है। शहर में बढ़ते जलसंकट के कारण पिछले वर्ष अगस्त में मनपा के वॉटर वर्क्स कंसल्टेंटिंग कमेटी ने न्यूनतम सीमा 300 वर्ग मीटर से 125 वर्ग मीटर करने का सुझाव दे चुकी है। प्रस्ताव नगर रचना विभाग के पास है।
Created On :   21 Jun 2019 3:17 PM IST