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पत्थर के जगह रबर की गेंद मारने का प्रयास नाकाम, खेल गतिविधियां बेअसर साबित

डिजिटल डेस्क छिन्दवाड़ा/पांढुर्ना । एक नदी के दोनों ओर खड़े हजारों लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं। सुबह से शाम तक पत्थरबाजी में हर साल सैकड़ों लोग घायल होते हैं। यहां कुछ लोगों की मृत्यु भी हो चुकी है तो कई लोग अपनी आंखें गवां चुके हैं। यह नजारा हर साल विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेले में देखने मिलता है। आस्था और परंपरा का प्रभाव ऐसा कि अब तक मेले का स्वरूप बदलने किए सभी प्रयास नाकाम साबित हुए। कोरोना काल में भी स्थानीय लोग मेले का मोह नहीं छोड़ पाए। विश्वभर में प्रसिद्ध गोटमार मेला मंगलवार को पांढुर्ना में मनाया जाएगा। कोरोना संक्रमण को रोकने के प्रयासों के चलते प्रशासन ने मेला आयोजन पर सहमति नहीं दी है। इस मेले में हर साल पांच सौ से अधिक लोग घायल होते हैं इनके इलाज के लिए मेला स्थल पर डॉक्टरों की टीम के साथ एंबुलेंस सहित तमाम इंतजाम किए जाते हैं। घायलों में केवल पत्थरबाजी करने वाले ही नहीं बल्कि वे दर्शक भी शामिल होते हैं जो यहां पत्थरबाजी देखने आते हैं। मेले के स्वरूप को बदलने पहले भी प्रशासनिक स्तर पर कई नवाचार हुए लेकिन स्थानीय लोगों ने पत्थरबाजी की परंपरा में बदलाव नहीं लाया।
चंद मिनटों में हजारों गेंद गायब
मेले में मृत्यु, घायल और अंग भंग को रोकने के लिए कलेक्टर मलय श्रीवास्तव के कार्यकाल में पत्थर के स्थान पर रबर की गेंद का प्रयोग किया गया। प्रशासन ने रात में मेला स्थल पर नदी तट के दोनों ओर लगभग एक किमी तक पत्थर बिनवाकर हटा दिए। पत्थर के स्थान पर रबर की हजारों गेंदें डाली गई। सुबह खेल शुरू होते ही चंद मिनटों में गेंदें नदारद हो गई और पत्थरों की बारिश शुरू हो गई। प्रशासन ने एक बार हेलमेट का विकल्प भी अपनाया, लेकिन खिलाडिय़ों ने इसे भी नकार दिया।
घर-घर जाकर दी थी समझाइश
पूर्व कलेक्टर निकुंज श्रीवास्तव के कार्यकाल में मेले से पूर्व घर-घर जाकर लोगों का समझाइश दी गई। उन्हें पत्थरबाजी से होने वाले नुकसान भी गिनाए थे। लोगों ने इस प्रशासनिक कवायद की सराहना भी कि लेकिन मेले के दिन कई खिलाड़ी मेलास्थल पर डट गए और पत्थरबाजी शुरू हो गई।
खेल और सांस्कृतिक गतिविधियां भी बेअसर
नवाचार के तहत प्रशासन ने खेल और सांस्कृतिक गतिविधियों का विकल्प अपनाया। कलेक्टर महेशचंद्र चौधरी के कार्यकाल में कबड्डी, खो-खो, वालीबॉल आदि खेल आयोजन कराए, ताकि लोग पत्थरबाजी से दूर रहें, लेकिन तय समय पर लोग पत्थरबाजी करने मेलास्थल पर पहुंच ही गए।
कोरोना का डर भी बेअसर
बीते साल कोरोना संक्रमण के चलते कलेक्टर सौरभ सुमन ने मेला आयोजन पर रोक लगाई थी। मनाही के चलते दोपहर तक मेलास्थल पर इक्के-दुक्के लोग ही पूजन की परंपरा निभाते नजर आए। दोपहर बाद मेलास्थल पर भीड़ बढ़ गई और पत्थरबाजी का खेल शुरू हो गया।
मेले से जुड़ी किवदंतियां
गोटमार मेले को लेकर कुछ किवदंतियां प्रचलित हैं। एक किवदंती के अनुसार पांढुर्ना के युवक ने प्रेम प्रसंग के चलते सावरगांव की युवती को भगाकर पांढुर्ना लाना चाहा। जैसे ही दोनों जाम नदी के बीच पहुंचे तो सावरगांव के लोगों ने प्रेमीयुगल को रोकने पत्थर बरसाए, इसके विरोध में पांढुर्ना के लोगों ने भी पत्थर बरसाए, जिसमें प्रेमीयुगल की मौत हो गई।अन्य किवदंती के अनुसार जाम नदी के किनारे पांढुर्ना-सावरगांव वाले क्षेत्र में भोंसला राजा की सैन्य टुकडिय़ां रहती थी। रोजाना युद्धभ्यास के लिए सैनिक नदी के बीचों बीच एक झंडा लगाकर पत्थरबाजी का मुकाबला करते थे। यह सैन्य युद्धभ्यास लंबे समय तक चलता रहा, इसके बाद यह परंपरा बन गई।
Created On :   6 Sept 2021 4:03 PM IST