ट्रॉमा केयर सेंटर में धूप से बचने इधर से उधर हलाकान हो रहे मरीजों के परिजन, नहीं बना शेड

Avoiding sunshine in the Trauma Center family of patients getting sick
ट्रॉमा केयर सेंटर में धूप से बचने इधर से उधर हलाकान हो रहे मरीजों के परिजन, नहीं बना शेड
ट्रॉमा केयर सेंटर में धूप से बचने इधर से उधर हलाकान हो रहे मरीजों के परिजन, नहीं बना शेड

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  संतरानगरी की चुभन भरी गर्मी  में जहां कूलर और पंखे की हवा में हालत खराब हो रही है, वहीं शहर में इलाज करवाने आने वालों को खुले आसमान के नीचे तपन भरी धूप में समय बिताना पड़ रहा है। मेडिकल स्थित ट्रॉमा केयर सेंटर में भर्ती मरीजों के परिजनों को तेज धूप से बचने के लिए इधर से उधर हलाकान होते देखा जा सकता है।  ट्रॉमा केयर सेंटर चालू होने के बाद मेडिकल प्रबंधन ने परिजनों के रुकने के लिए शेड बनाने की बात कही थी, लेकिन वह आज तक नहीं बन पाया है। फिलहाल, शहर का पारा 41 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है और गर्मी हलाकान करने लगी है। मरीजों के परिजनों का कहना है कि भरी दोपहर में गर्मी से बचने के लिए हमारे पास एक ही तरीका रहता है कि धूप की चाल के साथ सारे दिन खुद की जगह को बदलते रहो।

पार्किंग के लिए लगे शेड
ट्रॉमा केयर सेंटर चालू होने के बाद जब मरीज के परिजनों के सामने यह समस्या आई तो मेडिकल प्रबंधन ने परिजनों के रुकने के लिए शेड बनाने की बात कही थी , जो अभी तक नहीं बना। मजे की बात तो यह है कि मेडिकल में ब्यॉज हॉस्टल के बाहर पार्किंग के लिए शेड बने हुए है, जहां कभी भी गाड़ी पार्क नहीं होती हैं।

घूमते-रहते परिजन
सुबह-सुबह धूप ट्रॉमा के गेट पर पड़ती है, जिस वजह से मरीज के परिजन इधर-उधर लगे पेड़ों के नीचे अपना समान रखकर बैठे रहते हैं। दिन चढ़ने के साथ धूप सिर पर आ जाती है और फिर ट्रॉमा बिल्डिंग की छांव सिमट जाती है। मरीज के परिजन भी अपना सामान बिल्डिंग से सटा कर रख लेते हैं।
 
ट्रॉमा केयर सेंटर ही तरीके से चालू नहीं 
ट्राॅमा हॉस्पिटल का उद्घाटन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस व केन्द्रीय मंत्री नितीन गडकरी ने किया था। यह विडंबना ही है कि ट्रॉमा केयर सेंटर बनने से पहले ही विवादों में रहा और तीन मंजिल का प्रस्ताव दो मंजिल पर आकर अटक गया। देरी की वजह से निर्माण की लागत करोड़ों रुपए महंगी हो गई। पूरा बनने के बाद बताया गया कि मुख्य गेट गलत दिशा में है। ट्रॉमा के गेट तक बड़ी एंबुलेंस स्लिप पर चढ़कर पहुंच पाएगी क्या, इसको लेकर भी संशय बना हुआ है। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि आज भी ट्रॉमा केयर सेंटर पूरे तरीके से चालू नहीं हो सका।

पेड़ के नीचे ही रहते हैं
पिछले गुरुवार को मेरे चाचा का एक्सीडेंट हो गया था, तभी से वह ट्रॉमा में भर्ती हैं। मरीज के साथ अंदर सिर्फ एक व्यक्ति को रुकने की अनुमति है, जबकि हम चार लोग हैं। इस वजह से हम यहीं बाहर पेड़ के नीचे पड़े रहते हैं। ( प्रमोद वांढरे, चंद्रपुर)

बदलते रहते हैं जगह
5 दिन पहले मेरे भाई का एक्सीडेंट हुआ था। वे यहां भर्ती हैं। रुकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण हम रात-दिन कसरत करते रहते हैं। हमारा सारा दिन जगह बदलने में ही निकल जाता है। (राहुल निकोसे, गोंदिया)

छांव ढूंढते रहते हैं
सुबह-सुबह सामने से धूप आती है और फिर धीरे-धीरे सूरज हॉस्टल की ओर से ऊपर चढ़ने लगता है। इसलिए हम दीवारों से हटाकर अपना सामान पेड़ के नीचे रख देते हैं और बाद में फिर ट्रॉमा की बिल्डिंग के पास रख लेते हैं। ( देवेन्द्र कुमार, नागपुर)

Created On :   30 March 2018 3:54 PM IST

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