मंदिरों में धूमधाम से मनाया गया बैकुंठ चतुर्दशी महोत्सव

Baikunth Chaturdashi Festival celebrated with a Enthusiastically in the temples
मंदिरों में धूमधाम से मनाया गया बैकुंठ चतुर्दशी महोत्सव
मंदिरों में धूमधाम से मनाया गया बैकुंठ चतुर्दशी महोत्सव

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  कार्तिक माह की बैकुंठ चतुर्दशी पर मंदिरों में हरिहर का मिलन हुआ।  इस अवसर पर श्रद्धालुओं में भगवान शिव और श्री कृष्ण की पूजा की। इस  त्योहार को भगवान शिव और विष्णु के उपासक बहुत आनंद और उत्साह के साथ मनाते हैं। उपराजधानी के मंदिरों में भी हरि-हर मिलन के कार्यक्रम आयोजित किए गए। धारस्कर रोड के गोवर्धन मंदिर, महल के कल्याणेश्वर मंदिर, गांधीबाग के आयचित मंदिर ,हरिहर मंदिर और हुड़केश्वर रोड के मंदिरों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए। हुडकेश्वर रोड के दुबे नगर स्थित हनुमान मंदिर, दुर्गा माता मंदिर व सावरबांधे ले आउट के शिव मंदिर में हरिहर मिलन की पूजा-अर्चना की गई।

इस अवसर पर परिसर की महिलाओं ने पूजा में हिस्सा लिया। श्रद्धालुओं ने रात 12 बजे भगवान शिव को तुलसी और श्रीकृष्ण को बेलपत्र अर्पित किए। वैसे तो ये पूजा और त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है, लेकिन  उज्जैन और वाराणसी यानि बनारस में भव्य कार्यक्रम होते हैं। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु  के मिलन का उत्साह मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस त्योहार को शिवाजी और उनकी माता जिजाबाई ने भी की थी।

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बैकुंठ चतुर्दशी पर सुबह-सुबह भगवान शिव और विष्णु जी की यात्रा निकाली जाती हैं।  इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना कर विष्णु पाठ और कहानी पढ़ी जाती है।  इस मौके पर नदी में स्नान करने नदी तट पर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन नदी में स्नान करने व हरि-हर की पूजा करने से सभी के पाप धूल जाते हैं।  पूरे कार्तिक मास में भगवान शिव और विष्णु जी को कमल के फूल अर्पित किए जाते हैं. और गंगा किनारे दीपदान किया जाता है। दरअसल दीपदान का महत्व पूरे कार्तिक मास में होता है।

बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा

कहा जाता है कि भगवान विष्णु बैकुंठ छोड़ कर शिव भक्ति के लिए वाराणसी चले गए थे। शिव की अराधना करने के लिए उन्होंने भोलेनाथ को हजार कमल के फूल चढ़ाएं थे। इसके बाद भगवन विष्णु भोले नाथ की उपासना में लीन हो जाते हैं। काफी समय बीत जाने के बाद जब भगवान विष्णु अपनी आंखें खोलते हैं तो देखते हैं कि उनके कमल के सभी गायब हो जाते हैं। इससे निराश होकर वो अपनी एक आंख जिसे कमल नयन कहा जाता है, उसे शिव को अर्पित कर देते हैं, जिसे देखकर भगवान प्रसन्न हो जाते हैं। इसके बाद शिव उनकी सच्ची उपासना को देखते हुए उनकी कमल नयन वापस करते हैं और उन्हें भेंट में सुदर्शन चक्र देते हैं। तभी से इस को वैकुण्ड चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है.

Created On :   3 Nov 2017 11:54 AM IST

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