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एमबीबीएस डॉक्टरों की कमी इसलिए बीएएमएस, बीयूएमएस बनेंगे हेल्थ ऑफिसर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। महाराष्ट्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत राज्य में शुरू किए जा रहे हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर्स (एचडब्ल्यूसीज) के प्रमुख के पद पर नियुक्ति के लिए बीएएमएस, बीयूएमएस व नर्सिंग स्नातकों से आवेदन मंगवाए हैं। उन्हें छह माह के प्रशिक्षण के बाद नियुक्त किया जाएगा। राज्य में अगले दो वर्ष में 5716 सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों की नियुक्ति की जानी है। इसमें 319 नागपुर, 455 अमरावती, 402 यवतमाल जिले में नियुक्त किए जाएंगे। इस योजना के तहत प्रथम चरण में 1140 चिकित्सकों की नियुक्ति हो चुकी है।
एचडब्ल्यूसीज में पर एमबीबीएस डॉक्टरों के बजाए बीएएमएस की बीयूएमएस स्नातकों की नियुक्ति किए जाने का इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने भारी विरोध किया था। यहां तक कि लोकसभा चुनाव से पहले आईएमए की ओर से जारी किए गए वार्षिक मैनिफैस्टो में इस पाठ्यक्रम को समाप्त किए जाने की मांग भी की गई थी। भारी विरोध के कारण राज्य सरकार ने पाठ्यक्रम को होल्ड पर रख दिया था। अब लोकसभा चुनाव के बाद दूसरे चरण की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है। आईएमए नागपुर के अध्यक्ष डॉ. कुश झुनझुनवाला इसे पॉलिसी लेवल पर सही नहीं बताते हुए कहा कि यह लोगों के भी हित में नहीं है। उन्होंने कहा कि आईएमए राज्य सरकार व केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इसका विरोध जताएगी।
ये होगी जिम्मेदारी
महाराष्ट्र विश्वविद्यालय की ओर से तैयार छह माह के पाठ्यक्रम को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले बीएएमएस, बीयूएमएस व नर्सिंग स्नातकों को एचडब्ल्यूसी में कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर कम्युनिटी हेल्थ ऑफिसर के पद पर नियुक्त किया जाएगा। पाठ्यक्रम के दौरान स्टॉयफंड के रूप में दाे हजार रुपए और नियुक्ति के बाद प्रति माह 25 हजार रुपए और 15 हजार रुपए तक भत्ते मिलेंगे। डॉ. झुनझुनवाला के अनुसार एमबीबीएस और बीएएमएस, बीयूएमएस डॉक्टरों के अंतर को छह माह के पाठ्यक्रम से दूर नहीं किया जा सकता है। केंद्र में उनकी जिम्मेदारी तय की जानी जरूरी है । ड्रग प्रिसक्राइब और सीरियस मामलों की जिम्मेदारी उन्हें सौंपना सही नहीं होगा। उनकी जिम्मेदारी प्रबंधन या संचालन के कार्यों तक सीमित रखी जानी चाहिए।
नहीं होगा बदलाव
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के तहत राज्य सरकार की योजना अगले तीन वर्ष में 9 हजार गैर-एमबीबीएस डॉक्टरों को नियुक्त करने की थी। इसके लिए विज्ञापन भी प्रकाशित करवाया गया था। हालांकि आईएमए के विरोध के बाद विज्ञापन वापस ले लिया गया। विरोध के कारण एनआरएचएम के अधिकारियों ने दूसरे चरण की नियुक्ति और योग्यता में बदलाव किए जाने की भी बात की थी। हालांकि अब सरकार की ओर से मंगवाए गए आवेदन में पाठ्यक्रम और योग्यता में कोई बदलाव नहीं किया गया है। इस बार नर्सिंग के स्नातक भी पाठ्यक्रम के लिए आवेदन कर सकते हैं। संख्या 9 हजार से कम कर 5716 कर दी गई है।
एमबीबीएस डॉक्टरों की कमी
एनआरएचएम महाराष्ट्र के अधिकारियों की दलील है कि अगले तीन साल में देश भर में आयुष्मान भारत योजना लागू की जानी है। केंद्र सरकार पूरे देश में 1.5 लाख एचडब्ल्यूसीज शुरू करना चाहती है। केंद्र के प्रमुख के पद पर नियुक्ति के लिए एमबीबीएस डॉक्टरों की कमी के कारण राज्य सरकारों को गैर-एमबीबीएस डॉक्टरों कर नियुक्ति करने का अधिकार दिया गया है। इसी के तहत राज्य सरकार ने कदम उठाया है।
लोगों के हित में नहीं निर्णय
यह निर्णय लोगों के हित में नहीं है। छह माह के पाठ्यक्रम से बीएएमएस, बीयूएमएस और एमबीबीएस के बीच के अंतर समाप्त नहीं किया जा सकता है। इस नियुक्ति को प्रबंधन व संचालन तक सीमित रखा जाना चाहिए। यह लोगों की सेहत से जुड़ा मामला है। आईएमए राज्य व केंद्र सरकार को पत्र लिखकर इसका विरोध जताएगी। - डॉ. कुश झुनझुनवाला, अध्यक्ष आईएमए, नागपुर
Created On :   25 July 2019 12:57 PM IST