भीमा कोरेगांव : सत्र न्यायाधीश वादने के पास नहीं था अधिकार 

Bhima Koregaon: Sessions Judge Vadane did not have the right
भीमा कोरेगांव : सत्र न्यायाधीश वादने के पास नहीं था अधिकार 
भीमा कोरेगांव : सत्र न्यायाधीश वादने के पास नहीं था अधिकार 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह ऐसे दस्तावेज व रिकार्ड दिखाए जो यह दर्शाता हो कि पुणे के सत्र न्यायाधीश केडी वादने ने भीमा कोरेगांव एल्गार परिषद मामले में आरोपी सुधा भारद्वाज व अन्य के खिलाफ आरोपपत्र का संज्ञान लिया था और उनके पास ऐसा करने का क्षेत्राधिकार था। न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एन जे जमादार की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के प्रशासन की ओर से पेश किए गए रिकार्ड को देखने के बाद उपरोक्त निर्देश दिया। खंडपीठ के सामने भारद्वाज के जमानत आवेदन पर सुनवाई चल रही है। 

आवेदन में दावा किया गया है कि न्यायाधीश वादने को अवैध गतिविधि प्रतिबंधक कानून (यूएपीए) के तहत मामला सुनने के लिए विशेष न्यायाधीश के तौर पर नामित नहीं किया गया था। इसलिए उनके पास आरोपपत्र का संज्ञान लेने का अधिकार नहीं था। खंडपीठ ने कहा कि याचिका में किया गया यह दावा कोर्ट प्रशासन की ओर से पेश किए गए दावे से मिलता नजर आ रहा है। सुनवाई के दौरान भारद्वाज की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता युग चौधरी ने कहा कि श्री वादने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश थे। उन्हें विशेष न्यायाधीश के तौर पर नामित नहीं किया गया था फिर भी उन्होंने स्वयं को विशेष न्यायाधीश मान लिया।

सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी में इसका खुलासा हुआ है। उन्होंने कहा कि न्यायाधीश वादने ने साल 2018 में भारद्वाज सहित अन्य आरोपियों को पुलिस हिरासत में भेजा था। यही नहीं उन्होंने आरोपपत्र का संज्ञान भी लिया। नियमानुसार ऐसा सिर्फ विशेष न्यायाधीश कर सकते हैं। इसलिए न्यायाधीश वादने के पास मेरे मुवक्किल को हिरासत में भेजने व आरोपपत्र का संज्ञान लेने का अधिकार नहीं था। इस तरह के मामले में सत्र न्यायाधीश तभी मामले का संज्ञान ले सकता है तब प्रधान न्यायाधीश ने उसे यह करने के लिए निर्देश जारी किया हो। 

इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने मुख्य सरकारी वकील अरुण पई को कहा कि वे अगली सुनवाई के दौरान यह दिखाए कि इस प्रकरण को लेकर प्रधान न्यायाधीश ने न्यायाधीश वादने को कोई निर्देश जारी किया हो। खंडपीठ ने एनआईए की ओर से पैरवी कर रहे एडिशनल सालिसिटर जनरल अनिल सिंह को भी इस बारे में जवाब देने को कहा है। हालांकि उन्होंने दावा किया कि विशेष न्यायाधीश की नियुक्ति सत्र न्यायाधीश से अलग नहीं होती है। सत्र न्यायाधीश अवैध गतिविधि प्रतिबंधक कानून(यूएपीए) के मामले को सुनने में सक्षम होता है।खंडपीठ ने अब याचिका पर सुनवाई 15 जुलाई 2021 को रखी है। 
 

Created On :   8 July 2021 3:58 PM GMT

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