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नियमों के दायरे में रहकर जरूरतमंद को न्याय देना होता है न्यायपालिका का असली न्यायदान : जस्टिस एमएस कार्निक

डिजिटल डेस्क, नागपुर। समाज के वंचित और लाचार व्यक्ति तक न्याय पहुंचाना ही न्यायपालिका का मकसद है। न्यायदान की प्रक्रिया में एक जज को नियमों के दायरे में रहते हुए याचिकाकर्ता को उचित न्यायदान करना होता है। न्यायदान, नियमों को तोड़ना नहीं, बल्कि नियमों में रहकर जरूरतमंद को न्याय देने के कर्तव्य का नाम है। बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एमएस कार्निक हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा "डिसिजन मेकिंग विद सोशल परसेप्टिव" विषय पर आयोजित व्याख्यान में अधिवक्ताओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अपने अधिवक्ता जीवन के अनुभव साझा करते हुए न्यायदान के सामाजिक दृष्टिकोण पर प्रकाश डाला।
साझा किए अनुभव
जस्टिस ने बताया कि वर्ष 1991 में जब उन्होंने वकालत शुरू की, तो सबसे पहले रेलवे पुलिस फोर्स से निलिंबित कर्मचारी का केस लिया। पूरी तैयारी के बाद भी पहले केस की बेचैनी में वे कोर्ट में जज के सामने बेहतर युक्तिवाद नहीं कर सके। लेकिन जज ने मामले के दस्तावेज देखे और पूरा प्रकरण समझ लिया। कार्निक के अनुसार उनकी उम्मीद के उलट जज ने निलंबित कर्मचारी के पक्ष में फैसला देकर उसे राहत प्रदान की। इसी तरह उन्हें ऐसे कई और अनुभव हुए, जिसमें तमाम कमजोर से कमजोर मामलों में नियमों की सख्ती के बावजूद जज ने नियमों को खींचतान कर जरूरतमंद को सही न्याय प्रदान किया। यही न्यायपालिका की खूबी है।
हर पक्षकार कुछ न कुछ सिखाकर जाता है
जस्टिस कार्निक ने कहा कि कई बार वकीलों का सामना एक से बढ़ कर एक पक्षकारों से होगा, लेकिन याद रखें कि हर पक्षकार एक वकील को कुछ न कुछ सिखा कर जाता है। कई बार कोई केस इसलिए लेना चाहिए, क्योंकि उसमें बेहतर युक्तिवाद पेश करने को मिलेगा। यहीं से आप बहुत कुछ सीखेंगे। उन्होंने न्यायदान को सामाजिक प्रक्रिया बताते हुए विधि वर्ग से इसमें योगदान देते रहने की अपील की। इस दौरान मंच पर एचसीबीए अध्यक्ष अनिल किलोर और सचिव प्रफुल्ल खुबालकर उपस्थित थे। उपाध्यक्ष पी. बी. पाटिल ने कार्यक्रम का संचालन किया।
Created On :   28 Jun 2018 1:49 PM IST