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केन्द्र सरकार ला रही दिव्यांगों के उत्थान के लिए योजनाएं, राज्य सरकार की उदासीनता से पिछड़ रहे दिव्यांग

डिजिटल डेस्क, नागपुर। केंद्र सरकार ने दिव्यांगों को संरक्षण देने "दिव्यांग व्यक्ति अधिकार अधिनियम-2016" बनाया है पर पुरोगामी महाराष्ट्र में इसे लागू नहीं किया जाना दिव्यांगों का दुर्भाग्य है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, महाराष्ट्र में दिव्यांगों की संख्या 29 लाख 36 हजार है। महाराष्ट्र सरकार अगर इसे अमल में लाती तो 2 साल में एक प्रतिशत को भी अवसर मिलता तो आज 29 हजार दिव्यांग उच्च शिक्षित हो सकते थे।
बिना शिक्षा के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। दिव्यांगों को शिक्षा में आरक्षण नहीं मिलने से महाराष्ट्र में केंद्र सरकार के संरक्षण कानून का कोई महत्व नहीं रहा है। इंजीनियरिंग छोड़ अन्य पाठ्यक्रम कला, वाणिज्य, विज्ञान, बीएड, डीएड, एलएलबी, एलएलएम, पत्रकारिता पाठ्यक्रम, एमबीबीएस, बीएएमएस, बीएसडब्ल्यू, एमएसडब्ल्यू तथा अन्य किसी भी पाठ्यक्रम के लिए विकलांगों को आरक्षण नहीं दिया गया है। राज्य सरकार की इस लापरवाही के कारण दिव्यांग उच्च शिक्षा से वंचित होते जा रहे हैं।
कानून में है यह प्रावधान
दिव्यांगों को समाज में बराबरी का अधिकार देने दिलाने 2 साल पहले कानून बनाया गया है। अधिनियम के प्रकरण-6, धारा 32 में दिव्यांगों को सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से सभी सरकारी तथा अनुदानित शिक्षण संस्थाओं में उच्च शिक्षा के लिए 5 प्रतिशत आरक्षित रखने का प्रावधान किया गया है। महाराष्ट्र सरकार ने इसे पूरी तरह नजरअंदाज किया है। मात्र तकनीकी शिक्षा में चालू शैक्षणिक वर्ष से इंजीरियरिंग प्रवेश के लिए आरक्षण लागू किया गया है।
दिव्यांगों के साथ अन्याय
केंद्र सरकार द्वारा कानून बनाने के बाद भी महाराष्ट्र में दिव्यांगों को लाभ नहीं दिया जाना अफसोसजनक है। उन्हें उनके अधिकार मिलने चाहिए। दिव्यांगों को चालू शैक्षणिक सत्र में सभी क्षेत्रों में आरक्षण दिया जाए, ताकि उनके साथ अन्याय नहीं होगा। राज्य सरकार को इस संबंध में तत्काल शासनादेश जारी करना चाहिए।
(दिनेश मासोदकर व अशोक मुन्ने, मिशन इंस्टीट्यूट फॉर ट्रेनिंग रिसर्च एंड एक्शन)
Created On :   16 July 2018 12:55 PM IST