संतानों की नीयत बदली, सरकार की नीति भी कारगर नहीं, इसलिए बुजुर्गों के बुरे दिन

Children are careless, governments policy is not effective, hence bad days of old parents
संतानों की नीयत बदली, सरकार की नीति भी कारगर नहीं, इसलिए बुजुर्गों के बुरे दिन
संतानों की नीयत बदली, सरकार की नीति भी कारगर नहीं, इसलिए बुजुर्गों के बुरे दिन

डिजिटल डेस्क, नागपुर। जमाना माडर्न बनने के साथ ही संयुक्त परिवार की संकल्पना पीछे छूटी और बुजुर्गों को घर मेें या तो अकेले रहना पड़ रहा है या किसी पर निर्भर होकर रहना पड़ रहा है। जिनके भरण-पोषण की समस्या है, उनके लिए वृद्धाश्रम हैं, लेकिन जिले में केवल दो ही वृद्धाश्रम होने से सभी पीड़ित बुजुर्गों को यहां रहने की जगह नहीं मिल पाती। सबसे बड़ी बात यह है कि राज्य सरकार की मातोश्री वृद्धाश्रम योजना बंद होने के बाद से एनजीओ भी इस योजना में कम दिलचस्पी लेने लगे हैं। सामाजिक न्याय विभाग जिला प्रशासन के माध्यम से बुजुर्ग व्यक्ति को प्रति माह 600 रुपए मानधन देता है, लेकिन महंगाई के इस दौर में यह नाकाफी है।

ऐसी है सरकार की योजना
राज्य के सामाजिक न्याय विभाग की तरफ से बुजुर्गों को इंदिरा गांधी वृद्धापकाल योजना के तहत प्रति माह 600 रुपए, एसटी बसों में सफर के दौरान किराए में 50 फीसदी की रियायत, सरकारी अस्पतालों में टिकट शुल्क माफ व मुफ्त इलाज की व्यवस्था है। इसके अलावा उमरेड रोड पंचवटी वृद्धाश्रम व सावनेर तहसील में एक वृद्धाश्रम है। यहां सामाजिक न्याय विभाग की तरफ से अनुदान दिया जाता है। प्रति बुजुर्ग 900 रुपए अनुदान दिया जाता है। दोनों वृद्धाश्रमों में कुल 75 बुजुर्ग ही रह सकते हैं। जिले में बुुजुर्गों की लाखों में है और उसे देखते हुए केवल दो वृद्धाश्रम नाकाफी हैं। शिव सेना-भाजपा युति शासनकाल में मातोश्री वृद्धाश्रम योजना शुरू हुई थी। योजना के तहत एनजीओ व ट्रस्ट को वृद्धाश्रम चलाने के लिए अनुदान मिलने के साथ ही जगह व उस पर निर्माणकार्य के लिए भी अनुदान दिया जाता था। नागपुर समेत राज्य भर में कई एनजीओ  व ट्रस्ट ने बुजुर्गों को सहारा देना शुरू किया था। युति सरकार जाने के बाद धीरे-धीरे योजना भी बंद होते गई। मातोश्री योजना अब पूरी तरह बंद हो गई है। अनुदान नहीं मिलने से एनजीओ ने हाथ पीछे खींच लिए। 

माता-पिता को साथ रखने से करते हैं परहेज
परिवार या संतान से कोई परेशानी होने पर इसकी शिकायत सामाजिक न्याय विभाग के सहायक आयुक्त (समन्वय) के पास की जा सकती है। एक साल में (2018 में) करीब 30 शिकायतें मिलीं। संतान बुजुर्ग माता-पिता को साथ रखने से परहेज करने की ज्यादा शिकायतें थी। समन्वय (समझौता) नहीं होने से इन शिकायतों को आगे की कार्रवाई के लिए उपविभागीय अधिकारी (एसडीओ) के पास भेजा गया। यहां कुछ मामलों का निपटारा हुआ और कुछ मामले कोर्ट पहुंचे।

एक साल में 30 शिकायतें मिलीं 
एक साल में करीब 30 शिकायतें मिली। माता-पिता को साथ नहीं रखने के कई कारण बताए गए। प्रापर्टी विवाद भी एक कारण था। माता-पिता व संतान में समन्वय की कोशिश की गई। ज्यादा सफलता नहीं मिली। कार्रवाई के लिए मामले एसडीओ को भेज दिए गए। वृद्धाश्रमों की कमी भी एक समस्या है। एनजीओ व ट्रस्ट के माध्यम से वृद्धाश्रम शुरू करने के प्रयास हो रहे हैं। एनजीओ को इसके लिए आगे आना चाहिए। 
-बाबासाहेब देशमुख, सहायक आयुक्त सामाजिक न्याय विभाग नागपुर

बंद वृद्धाश्रम शुरू करने की योजना 

रामटेक वृद्धाश्रम को पुन: शुरू करने की योजना है। इसके लिए जरूरी कदम प्रशासनिक स्तर पर उठाए जाएंगे। एनजीओ से बात हो रही है। मातोश्री योजना बंद हो चुकी है। बुजुर्गों की समस्याएं बढ़ गई हैं। एनजीओ अगर आगे आएं तो निराधार बुजुर्गों को आधार मिल सकता है। 
-सुकेशिनी तेलगोटे, जिला समाज कल्याण अधिकारी जिला परिषद, नागपुर

Created On :   14 Jan 2019 5:59 PM IST

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