बच्चे पढ़ेंगे सब इंस्पेक्टर रेखा की कहानी, जानेंगे - अपना घर छूटने के बाद क्या होता है

Children will know in Story- what happens after leaving home
बच्चे पढ़ेंगे सब इंस्पेक्टर रेखा की कहानी, जानेंगे - अपना घर छूटने के बाद क्या होता है
बच्चे पढ़ेंगे सब इंस्पेक्टर रेखा की कहानी, जानेंगे - अपना घर छूटने के बाद क्या होता है

डिजिटल डेस्क, मुंबई। दुष्यंत मिश्र। घरों से भागकर आए 953 बच्चों को उनके परिवारों से मिला चुकीं RPF की सब इंस्पेक्टर रेखा मिश्रा की कहानी बच्चे स्कूल की किताब में पढ़ सकेंगे। इससे रेखा काफी उत्साहित हैं। मिश्रा ने उम्मीद जताई कि इससे उन बच्चों को सीख मिलेगी जो घर छोड़कर भागने के बारे में सोचते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों को इस बात का एहसास नहीं होता कि घर से भागने के बाद उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। बता दें कि रेखा मिश्रा की कहानी राज्य की 10वीं की मराठी पाठ्य पुस्तक में शामिल की गई है।

मिश्रा ने कहा कि इस मामले में बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों को भी जागरूक किए जाने की जरूरत है। घर से भागे सैकड़ों बच्चों से बातचीत के बाद उन्हें एहसास हुआ कि असंतोष, असुरक्षा, बुनियादी जरूरतें, अभिभावकों के दबाव के चलते ज्यादातर बच्चे घर से भागते हैं। हां कुछ ऐसे भी बच्चे हैं जो सोशल मीडिया के दोस्तों, फिल्मी सितारों से मिलने की चाहत लिए महानगर में आ जाते हैं। मिश्रा के मुताबिक बच्चों को यह एहसास कराए जाने की जरूरत होती है कि अभिभावकों के बिना घर से दूर रहना उनके लिए आसान नहीं होगा।

साथ ही माता-पिता को भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों पर अनावश्यक दबाव न बनाएं। अभिभावकों को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के भी कुछ अधिकार होते हैं जिनका सम्मान किया जाना चाहिए। हालांकि मौजूदा समय में कई ऐसे बच्चे भी होते हैं जो अभिभावकों से अनावश्यक जिद करते हैं लेकिन उन्हें समझाबुझाकर सही बात के लिए मनाया जा सकता है।

बच्चों को समझाना एक चुनौती
अपना एक अनुभव साझा करते हुए मिश्रा बताती हैं कि मुंबई के नेवी नगर में रहने वाला एक उच्च पदस्थ अधिकारी का किशोर उम्र का बेटा घर से भाग निकला। मिश्रा ने उसे CST स्टेशन पर देखा इसके बाद उससे बातचीत शुरू की। धीरे-धीरे बच्चे के बारे में जानकारी हासिल की और उसके पिता को बुलाया लेकिन लड़का किसी कीमत पर उनके साथ जाने को तैयार नहीं था। लड़का इसलिए नाराज था कि उसका एडमिशन मर्चेंट नेवी में हो गया था, लेकिन उसके दोस्त का नहीं हुआ। उसका आरोप था कि पिता ने दोनों को अलग करने के लिए उसके दोस्त के दाखिले में रुचि नहीं दिखाई। मिश्रा बतातीं हैं कि लड़के को समझाने के लिए कई घंटों तक मशक्कत करनी पड़ी जिसके बाद वह घर वापस जाने को तैयार हुआ।

कैसे हुई शुरूआत
मिश्रा के मुताबिक 2 साल पहले उन्होंने CST रेलवे स्टेशन पर एक बच्चे को देखा जो बेहद परेशान और थका हुआ लग रहा था। पूछताछ के दौरान पता चला कि वह ठाणे में रहता है और पिता की फटकार से नाराज होकर उनका पर्स और एटीएम कार्ड लेकर भाग निकला। बच्चे के लापता होने से परेशान परिवार को जब वह वापस मिला तो उनकी खुशी देखने लायक थी। इससे उन्हें प्रेरणा मिली और उन्होंने घर से भागे बच्चों को उनके परिवारों से मिलाने की मुहिम शुरू कर दी।

कैसे करतीं हैं पहचान 
ट्रेन और प्लेटफार्म की भीड़भाड़ के बीच घर से भागे बच्चों की पहचान करना आसान नहीं होता। लेकिन मिश्रा बतातीं हैं कि लगातार यह काम करते रहने से अब वह बच्चों को देखकर ही समझ लेतीं हैं कि वह घर से भागकर आया है। चेहरे पर तनाव और डर, गंदे कपड़े, थका शरीर अक्सर ऐसे बच्चों की पहचान करने में मदद करता है। उन्होंने बताया कि रेलवे स्टेशनों पर मिलने वाले ज्यादातर बच्चे यूपी और बिहार से भागकर आए होते हैं। इसके अलावा दक्षिण भारत और राज्य के अमरावती, सोलापुर जैसे इलाकों से भी कुछ बच्चे यहां प्लेटफार्मों पर भटकते मिले हैं।

इलाहाबाद की हैं मूल निवासी
मिश्रा ने बताया कि वे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद की रहने वाली हैं। पिता सेना में थे जबकि मां घर संभालती थी। इलाहाबाद में शिक्षा हासिल करने के बाद RPF में नौकरी मिली और फिलहाल मुंबई में तैनात हैं। 

Created On :   13 Jun 2018 2:01 PM GMT

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story