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कई वर्षों से कर रहे कांट्रेक्ट खेती - अच्छा लाभ कमा रहे किसान

डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा । कांट्रेक्ट खेती को लेकर इन दिनों पूरे देश में हल्ला मचा हुआ है। किसान सड़क पर हंै और अनुबंध खेती के केंद्र सरकार के नए बिल को वापस लेने के लिए दबाव बना रहे हैं, लेकिन इन सबके बीच छिंदवाड़ा का एक गांव ऐसा भी जहां के किसान पिछले एक दशक से अनुबंध खेती कर रहे हैं। गांव की समृद्धि देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि अनुबंध खेती का कितना फायदा किसानों को हुआ है। हर घर में फोर व्हीलर, किसानी के लिए खुद का ट्रैक्टर, घर के हर सदस्य के पास मोटर साइकिल और यहां तक कि आधुनिक खेती से जुड़े तमाम संसाधन हर एक किसान के पास मौजूद हैं। हम बात कर रहे हैं उमरेठ तहसील के गांव रिधोरा की, जिस गांव के 80 प्रतिशत किसान कांट्रेक्ट खेती करते हैं। आलू की फसल ने इन किसानों को मालामाल कर दिया है। किसान खुद बताते हैं कि कांट्रेक्ट खेती के बाद उनकी किस्मत बदल गई है। तकरीबन 5 से 8 लाख रुपए सालाना का फायदा अब उनको कांटे्र्रक्ट खेती से हो जाता है। कुछ किसान तो ऐसे भी हैं जो पिछले दस सालों से लगातार कंपनियों से कांट्रेक्ट करके खेती कर रहे हैं। पेप्सिको, मेकेन, सेनटाना, आईटीसी और हल्दीराम जैसी मल्टीनेशनल कंपनियां बोवनी के पहले ही किसानों से अनुबंध कर लेती हैं।
500 हेक्टेयर से ज्यादा में हो रही कांट्रेक्ट खेती...
उमरेठ तहसील के अंतर्गत आने वाले आधा दर्जन गांव कांट्रेक्ट खेती के रोल मॉडल हंै। रिधोरा के अलावा छाबड़ी, कचराम, बिजौरी और गाजनडोह में कांट्रेक्ट खेती की जाती है। किसान बताते हैं कि इन गांवों में तकरीबन 500 हेक्टेयर खेत में कांट्रेक्ट खेती की जाती है। फसल की बोवनी के पहले ही किसान मल्टी नेशनल कंपनियों से अनुबंध कर लेते हैं।
किसानों से सुनिए किसानी की बात...
* रिधोरा के किसान पवन पवार ने बताया कि 10 एकड़ में तकरीबन 10 टन आलू की फसल लगाते हैं। प्रति एकड़ 50 हजार रुपए तक का प्रॉफिट होता है। पिछले दस सालों से वे कांट्रेक्ट खेती कर रहे हैं। सालाना पांच लाख रुपए तक की इंकम हो जाती है। अच्छी बात ये है कि इस कांट्रेक्ट खेती से लाखों का शुद्ध मुनाफा हो जाता है।
* किसान बग्गू प्रसाद पवार ने बताया कि कांट्रेक्ट खेती के बाद किसानों की माली हालत तो सुधरी है। 5 एकड़ में पिछले 4 साल से वे अनुबंध खेती कर रहे हैं। सालाना तीन लाख रुपए तक की आय तो हो ही जाती है। अच्छी बात ये है कि अब गांव में ही उनकी फसल बिक जाती है। अब खेती में रिस्क नहीं होती है। मंडी में दलाली से किसान बच रहे हैं, जिससे उन्हें लाभ मिल रहा है।
* गांव के पन्नालाल पवार ने बताया कि प्रत्येक एकड़ में 20 से 25 हजार की पहले बचत हुआ करती थी, कांट्रेक्ट खेती से अब ये 30 से 40 हजार रुपए तक हो गई है। आर्थिक स्थिति सुधरी है। रेट अच्छा मिल जाता है। अब सालाना 5 से 6 लाख रुपए की आय आलू की फसल बेचकर हो जाती है।
एक पक्ष ये भी... परेशान होकर छोड़ दी अनुबंध खेती
कांट्रेक्ट खेती से हर एक किसान खुश है ऐसा भी नहीं है। रिधोरा के ही किसान गज्जू पवार ने बताया कि वे पहले कांट्रेक्ट खेती किया करते थे, लेकिन कंपनियों के बिचौलियों की मनमानी से तंग आकर उन्होंने अनुबंध खेती करना बंद कर दी। प्रति टन बीज के लिए 28 हजार रुपए कंपनी द्वारा पहले ही ले लिए जाते हैं। रसायनों का उपयोग करने के लिए दबाव बनाया जाता है, ताकि उनकी फसल अच्छी हो। जबकि हकीकत ये है कि यदि ज्यादा रसायनों का उपयोग हुआ तो पहले साल 2 बोरी यूरिया, दूसरी साल 3 बोरी यूरिया और तीसरी साल 6 बोरी यूरिया प्रति एकड़ में लगेगा। चौथी साल खेत की ये स्थिति नहीं रहेगी कि वह फसल हो सके।
कांट्रेक्ट खेती के दो पहलू...
पॉजीटिव पाइंट
1. कांट्रेक्ट खेती से किसानों की फसल खेत में बिक जाती है। उन्हे मंडी में अपनी फसल बेचने के लिए दलालों को कमीशन नहीं देनी पड़ती है।
2. मंडी में फसल बेचने की बजाय कंपनी के अनुबंध से किसानों को दोगुना फायदा हो रहा है। 20 से 30 हजार की बजाय 50 हजार रुपए प्रति एकड़ तक दाम मिल रहे हंै।
3. फसल को लेकर किसानों की रिस्क खत्म हो जाती है। मंडी तक जाने की झंझट नहीं रहती भाड़ा बच जाता है। जिससे किसानों को फायदा पहुंचता है।
नेगेटिव पाइंट
1. फसल के पहले ही बीज के पैसे किसानों से वसूल लिए जाते हैं। कंपनियों द्वारा किसानों को महंगे बीज दिए जाते हैं। रसायन का उपयोग ज्यादा करने के लिए कहा जाता है।
Created On :   5 Jan 2021 6:21 PM IST