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पांढुर्ना से उजड़ रहा कपास व्यापार, समस्याओं से परेशान हो रहे व्यापारी-किसान

डिजिटल डेस्क छिन्दवाड़ा/पांढुर्ना। कभी सफेद सोने की बंपर आवक के लिए प्रसिद्ध रहे पांढुर्ना की जिनिंग फैक्ट्रियों में इन दिनों सूनसान है। यहां केवल दो जिनिंग फैक्ट्रियों में नाममात्र कपास की आवक हो रही है। वहीं दूसरी ओर क्षेत्र का अच्छा कपास भी पेटी व्यापारियों के माध्यम से महाराष्ट्र जाने लगा है। ऐसा बीते पांच दशकों में हुआ है, जब सीजन की शुरूआत में केवल चार जिनिंग फैक्टरियां शुरू हुई। दो महीने बाद पहली और तीन महीने बाद दूसरी जिनिंग फैक्ट्री भी बंद हो गई। अप्रैल महीने के अंत तक शेष दो जिनिंग फैक्ट्रियों के भी बेल्ट उतर जाएगे।
मंडी टैक्स और बिजली खपत का बढ़ा बोझ
महाराष्ट्र सीमा में बसी पांढुर्ना कृषि मंडी क्षेत्र की जिनिंग फैक्ट्रियों को अब सीमा में बसे होने के लाभ के बजाय नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। टैक्स में एक प्रतिशत की छूट के बावजूद व्यापारियों को 1.2 मंडी टैक्स के रूप में देना पड़ रहा है। जबकि सीमावर्ती महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों में चल रहीं जिनिंग फैक्ट्रियों में व्यापारियों को 0.20 से 0.50 प्रतिशत तक टैक्स देना पड़ रहा है। इसी प्रकार मध्यप्रदेश में जिनिंग फैक्ट्रियों को लगभग नौ रूपये प्रति यूनिट की दर से बिजली दी जा रही है। जबकि महाराष्ट्र में बिजली आपूर्ति की दरें 6.5 रूपए प्रति यूनिट है। इस प्रकार प्रति क्विंटल 70 से 100 रूपए का अंतर पड़ रहा है। इन्हीं कारणों के चलते पांढुर्ना से पचास किमी की परिधि में स्थित सावनेर, कलमेश्वर, काटोल, नरखेड़, वरूड, मोर्शी आदि क्षेत्रों में स्थित जिनिंग फैक्ट्रियों में आवक बढ़ रही है।
पेटी व्यापारियों ने किया बंटाधार
इन दिनों पांढुर्ना में कपास के पेटी व्यापारियों का बोलबाला है। शहर के अलावा आसपास के बड़े कस्बों में कपास के अनाधिकृत ठेकेदार अपनी दुकानें खोलकर बैठे है। जिनिंग फैक्टरी संचालकों ने बताया कि यह पेटी व्यापारी महाराष्ट्र के मिल संचालकों के भरोसे बराबरी के दाम पर खरीदी करते है। इसके बाद वें हल्के-पतले माल में पानी मिलाकर फैक्टरी में भेज देते है। जहां के ग्रेडर कमजोर है, वहां ऐसा माल पास भी हो जाता है। जिसके कारण भी व्यापार में बड़ा फर्क पड़ रहा है। इन्हीं कारणों से कई बड़े व्यापारियों को बाद में नुकसान झेलना पड़ा है। जिसके चलते कई अच्छी फैक्टरियां कर्ज के तले दबकर बंद हो गई।
इनका कहना है
-महाराष्ट्र में मंडी टैक्स और बिजली दरें कम है। ऐसे में अब एडवांस देकर भी कपास की आवक बुलवाना मुश्किल है। हमारी जिनिंग फैक्टरी एक महीने से बंद है।
-अनिश शाह,पारसनाथ कॉटन इंडस्ट्रीज पांढुर्ना।
-अब किसानों को महाराष्ट्र की जिनिंग फैक्टरियों में ही प्रतिस्पर्धात्मक दाम मिल जाते है। इसलिए अब महाराष्ट्र के कपास की आवक पांढुर्ना में नही होती। हमारी फैक्टरी भी एक-दो हफ्ते में बंद हो जाएगी।
-सचिन पालीवाल,पालीवाल जिनिंग एंड प्रेसिंग पांढुर्ना।
-पांढुर्ना में गुणवत्ता की दृष्टी से अच्छा माल नही आता। इसके अलावा यहां डिस्पेरिटी में खरीदी होती है। जिसके कारण व्यापारियों को बड़ा नुकसान झेलना पड़ रहा है।
-निकुंज शाह,एचके कॉटन इंडस्ट्रीज पांढुर्ना।
-मंडी का कोई सहयोग नही मिलता। बल्कि कपास के अवैधानिक खरीदी-बिक्री से मिल संचालकों को नुकसान भी उठाना पड़ रहा है। ऐसे में एक-दो सालों में पांढुर्ना की कपास मंडी ठप हो जाएगी।
-उदय भाटीया,श्रीनाथ इंडस्ट्रीज पांढुर्ना।
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Created On :   14 April 2018 1:19 PM IST