दाल के मामले में आत्मनिर्भर बना देश, उत्पाद खपाने में हो रही मशक्कत

Country became self depend in the case of pulses, Exports stalled
दाल के मामले में आत्मनिर्भर बना देश, उत्पाद खपाने में हो रही मशक्कत
दाल के मामले में आत्मनिर्भर बना देश, उत्पाद खपाने में हो रही मशक्कत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। देश में दाल की कमी के चलते कीमतों में होने वाले बढ़ोतरी सरकार के लिए सिर दर्द साबित होती रही है। अब सत्ताधारी दल को इस तरह की परेशानी से दो-चार नहीं होना पड़ेगा। क्योंकि दाल के मामले में अब देश आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ रहा है। गौरतलब है कि चार साल पहले दाल कि कीमतों में अचानक बढ़ोतरी से भाजपा सरकार के हाथपांव फुल गए थे। हर तरफ सरकार की आलोचना हो रही थी। त्योहारों से ठीक पहले कीमतें बढ़ने पर जनता परेशान हुई थी। समस्या से निपटने के लिए सरकार ने जमाखोरों पर करवाई शुरु की और गोदामों में पड़ी दालें जब्त की गई थी। जनता के गुस्से को शांत करने के लिए उस वक्त भाजपा को अपने पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को मैदान में उतारना पड़ा था। 

तब उपज बढ़ाने के लिए मोदी ने की थी पहल 
दाल की कीमतों में बढ़ोतरी की समस्या के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि वैज्ञानिकों, किसानों, किसानों के नेताओं व संबंधित लोगों की बैठक बुलाई थी। बैठक में प्रधानमंत्री ने किसानों से अपील की थी कि वे ज्यादा से ज्यादा दालों की खेती करें। जिससे दाल के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाया जा सके। वैज्ञानिकों से पीएम ने कहा था कि वे ऐसी दालों की किस्म विकसित करें कि जिससे पैदावार ज्यादा हो। 

साल में 250 लाख किलो दाल की खपत
देश में दाल की मांग करीब 240 से 250 लाख टन है। दो साल पहले तक देश में विभिन्न तरह के दालों का उत्पादन 140 से 180 लाख टन तक होता था, लेकिन अब दालों के उपज के मामले में देश आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। पिछले साल और अब इस साल भी दलहन का उत्पादन मांग के जितना हुआ है। 

दालों के आयात में आई कमी 
देश में दालों की पैदावार बढ़ने से विदेश से दालों के आयात पर लगभग रोक सी लग गई है। सरकार ने आयात कोटा तय कर दिया है। साल 2017-18 में 56 लाख टन विविध दालों का आयात किया गया था, जबकि चालू वर्ष में महज 12 लाख टन दाल आयात किया गया। सरकार देश के किसानों और व्यापारियों को प्रमोट कर रही है कि अब वे दाल निर्यात करें। चना उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में सबसे आगे निकाल गया है। देश में दालों के उपज को बढ़ावा देने के लिए तथा कीमतें स्थिर रखने के लिए सरकार ने चने के आयात पर 66 प्रतिशत और मसूर पर 33 प्रतिशत ड्यूटी लगा दी है। 

सरकार को उठाना पड़ा है नुकसान
दाल के भारी उत्पादन से राज्य सरकार को करीब 500 करोड़ का नुकसान भी हुआ है। नाफेड और राज्य सरकार को अधिक कीमत पर किसानों से तुअर खरीद कर उसे कम मूल्य पर बेचना पड़ रहा है। नाफेड के गोदामों में चना 27 लाख टन, तूअर 20 लाख टन, उरद 3.50 लाख टन, मूंग 3 लाख टन और मसूर के 2 लाख टन दाल पड़े हैं और आने वाले दिनों में उसे और भी दालें खरीदनी पड़ेगी। आलम यह है कि नाफेड के पास दाल रखने के लिए गोदामों की कमी पड़ गई है। राज्य सरकार ने भी जो तुअर खरीदी थी, उसका आधा हिस्सा अब भी सरकारी गोदामों में पड़ा है।

देश में दालों का उत्पादन  
दाल        उपज (लाख टन में)
चना        110 
तूअर        40 
उरद        25
मूंग         20 
मसूर        10 
मटर         6

सरकार ने दालों का समर्थन मूल्य निर्धारित किया है  
दाल        एमएसपी (रुपये प्रति किलो)
तूर        56.75
उरद         56.00
मूंग        69.75
चना        42.50

“ अच्छे मॉनसून और सरकार की सही नीतियों के कारण दाल के उपज में आज देश लगभग आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है। अब आयात की बजाय निर्यात की तरफ कदम आगे बढ़ा रहे हैं।”
(बिमल कोठारी  उपाध्यक्ष, भारतीय दाल और अन्न एसोसिएशन)

“ देश को दाल के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में किसानों की बड़ी भूमिका है। दाल की कीमतें 200 से 250 रुपये किलो पहुची तो किसानों ने दालों की खेती इस उम्मीद से ज्यादा की कि उन्हें ज्यादा पैसे मिल सकेंगे। लेकिन अब तो हालात ऐसे है कि सरकार द्वारा तय न्यूनतम समर्थन मूल्य भी किसानों को नहीं मिल रहा है।”  
(डॉ राजाराम त्रिपाठी राष्ट्रीय संयोजक अखिल भारतीय किसान महासंघ)

Created On :   6 Sept 2018 2:02 PM GMT

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