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लोकसेवक की जाँच के पहले अनुमति लिए जाने के प्रावधान को कोर्ट में चुनौती

केन्द्र एवं राज्य सरकार को नोटिस, अगली सुनवाई 23 फरवरी को
डिजिटल डेस्क जबलपुर । मप्र हाईकोर्ट में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में संशोधन कर लोकसेवक की जाँच के पहले अनुमति लिए जाने के प्रावधान जोडऩे को चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बैंच ने केन्द्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 23 फरवरी को नियत की गई है। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ. पीजी नाजपांडे और डॉ. एमए खान की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि केन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 बनाया था। 2 जुलाई 2018 को इस अधिनियम में संशोधन कर नई धारा 17 ए जोड़ दी गई, जिसके तहत अब लोकसेवकों की जाँच के पूर्व अनुमति लेना आवश्यक होगा। याचिका में कहा गया है कि लोकसेवकों की परिभाषा में सरकारी अधिकारियों के साथ नेता भी आते हैं। जाँच की अनुमति के लिए सरकारी अधिकारियों के पास जाना होगा। सरकारी अधिकारी और नेता अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर जाँच की अनुमति नहीं देने देंगे। अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने तर्क दिया कि लोकसेवकों के खिलाफ जाँच के पूर्व अनुमति लिए जाने का प्रावधान पूरी तरह असंवैधानिक है। इस प्रावधान का फायदा भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं को होगा। प्रारंभिक सुनवाई के बाद डिवीजन बैंच ने केन्द्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है।
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ध्यान रखें की प्रॉपर्टी RERA अप्रूव्ड हो
कोई भी प्रॉपर्टी खरीदने से पहले इस बात का ध्यान रखे कि वो भारतीय रियल एस्टेट इंडस्ट्री के रेगुलेटर RERA से अप्रूव्ड हो। रियल एस्टेट रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट एक्ट, 2016 (RERA) को भारतीय संसद ने पास किया था। RERA का मकसद प्रॉपर्टी खरीदारों के हितों की रक्षा करना और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश को बढ़ावा देना है। राज्य सभा ने RERA को 10 मार्च और लोकसभा ने 15 मार्च, 2016 को किया था। 1 मई, 2016 को यह लागू हो गया। 92 में से 59 सेक्शंस 1 मई, 2016 और बाकी 1 मई, 2017 को अस्तित्व में आए। 6 महीने के भीतर केंद्र व राज्य सरकारों को अपने नियमों को केंद्रीय कानून के तहत नोटिफाई करना था।