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सेरोगेट रैकेट से हो रहे नए-नए खुलासे, कई सेंटरों की पोल खोलने पुलिस कर रही जांच

डिजिटल डेस्क, नागपुर। सेरोगेट रैकेट का भंडाफोड़ होने के बाद एक के बाद एक नए खुलासे होने लगे हैं। पुलिस को इस प्रकरण में कई सेंटरों की पोल खुलने की उम्मीद है। बता दें कि शहर में सेरोगेसी मदर का काम करने वाली महिलाआें और युवतियों के साथ धोखाधड़ी के आरोप में नंदनवन पुलिस ने मुख्य एजेंट मनीष मूंदड़ा और उसकी पत्नी हर्षा मूंदड़ा को गिरफ्तार किया है। जहां से दोनो को 3 अगस्त कर रिमांड पर भेजा गया है। प्रकरण की जांच नंदनवन थाने की महिला पुलिस अधिकारी बावनकर कर रही हैं।
सूत्रों के अनुसार सरोगेसी रैकेट से जुड़े मामले में नंदनवन पुलिस ने डॉक्टर डॉ. चैतन्य शेंबेकर (देवनगर) और डॉ. लक्ष्मी श्रीखंडे (धंतोली) को थाने बुलाकर तफ्तीश की। इन दोनों डॉक्टरों से पुलिस ने काफी देर तक पूछताछ की। इसी तरह डॉ. वर्षा ढवले (छत्रपति नगर निवासी) और अन्य अस्पताल के कर्मचारियों से भी पुलिस पूछताछ करने वाली है। सरोगेसी सेंटरों में आने वाली नागपुर की दर्जनों महिलाओं और युवतियों से सेंटरों में उनकी किराए की कोख से बच्चे पैदा कर लोगों को दे दिए गए। जब इन महिलाओं को तय रकम नहीं मिली, तब वह न्याय के लिए पुलिस के पास पहुंचीं। नंदनवन पुलिस ने इस मामले में पहले उन्हें दुत्कार कर भगा दिया था।
यह मामला पुलिस उपायुक्त नीलेश भरणे के कारण पूरी तरह खुलकर सामने आ गया। पीड़ित महिलाओं और युवतियों का कहना है कि, उन्हें न्याय मिलना चाहिए। सरोगेसी सेंटर में अपनी कोख को किराए पर देने वाली इन महिलाओं और युवतियों में कुछ ऐसी भी हैं, जो अपनों से कई महीनों यह बताकर दूर रहीं कि, उन्हें एक सेठ के यहां बच्चे की परवरिश करने की नौकरी मिली है। उसकी शर्त यह है कि, 9-10 महीने तक अपने-अपने घर नहीं जा सकेगी।
नार्मल डिलीवरी का देते थे झांसा
सूत्रों के अनुसार मनीष मूंदड़ा जब भी इन युवतियों और महिलाओं को सेरोगेसी सेंटरों में लेकर जाता था, तब उन्हें इस बात का यकीन दिलाया जाता था कि, उनकी नार्मल डिलीवरी की जाएगी। कुछ महिलाएं इस बात को लेकर भी तैयार हो जाती थीं। नार्मल डिलीवरी होने से घर में किसी को उनके सरोगेसी होने की बात भी पता नहीं चल सकेगी, लेकिन यह सिर्फ उस समय तक की बात रहती थी, जब तक महिला के गर्भ में सरोगेसी बच्चा पलने नहीं लग जाता था। उसके गर्भ में पलने वाले बच्चे का समय पूरा होने पर जब 9 माह के बाद डिलीवरी की जाती थी, तब सीजर ही किया जाता था।
सूत्र बताते हैं कि, सरोगेसी प्रकरण में ज्यादातर मामले सीजर से जुड़े होते हैं। एकाध ही मामला ऐसा होता है, जिसमें नार्मल डिलीवरी हो जाती है। पीड़ित महिलाओं और युवतियों का आरोप है कि, उन्हें नार्मल डिलीवरी की बात बताए जाने पर वह राजी हो जाया करती थीं।
समय पूरा होते ही धमकी देकर कर देते थे सीजर
पीड़ित महिलाओं ने आरोप लगाते हुए कहा कि, जब 9 महीने का समय पूरा हो जाता था और जब प्रसूति का समय आता था, तब महिलाओं और युवतियों को यह कहा जाता था कि, ज्यादा समय तक वह इंतजार नहीं कर सकते। पेट में बच्चे को कुछ भी होगा, तो जच्चा-बच्चा दोनों की जान जा सकती है। इस डर से महिलाएं सीजर के लिए राजी हो जाती थीं। कुछ पीड़ित महिलाओं ने बताया कि, उनके परिजनों को यह तक बताया गया कि, उनके यहां सेंटर में काम करने वाली महिला अब इस दुनिया में नहीं है। वह मुंबई में एक सड़क हादसे में मर गई। परिजनों से मिलने तक नहीं दिया जाता था। मनीष मूंदड़ा से जब यह बात महिलाएं करती थीं कि, कांट्रेक्ट में यह बात नहीं है कि, वह परिवार से नहीं मिल सकेगी, तब मनीष मूंदड़ा और उसकी पत्नी यह कहकर सेरोगेसी मदर को शांत कर देती थी कि, उनका कहीं इरादा बदल गया। वह परिवार के बहकावे में आ सकती हैं। इसलिए उनकी अपनी कोख से जन्में उनकी औलादों से भी मिलने नहीं दिया जाता था।
Created On :   1 Aug 2018 1:58 PM IST