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70 साल में आदमी का विकास करते तो रामरहीम पैदा नहीं होते: डॉ हरिओम पंवार

डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। 70 साल में भारत में विकास नहीं हुआ, मैं इसमें यकीन नहीं करता। 70 साल में हमने आदमी के लिए बहुत विकास किया है। यह हो सकता है कि कुछ देशों से हम पीछे हों, लेकिन आदमी के लिए विकास करते-करते हम आदमी का विकास करना भूल गए। नैतिक शिक्षा पर जोर नहीं दिया, इसलिए हमारे देश में महापुरूष, साधु-संत जेलों में पड़े हुए हैं। यदि आदमी का विकास करते तो राम रहीम जैसे पैदा नहीं होते। यह बात देश की अस्मिता पर काव्य सृजन करने वाले ओज के प्रख्यात कवि डॉ हरिओम पवार ने भास्कर से खास चर्चा में कही।
यहां दैनिक भास्कर के कवि सम्मेलन में शरीक होने आए डॉ पंवार ने शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए कहा कि हम अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं डालते। सरकारी स्कूल में वही बच्चे पढ़ते हैं जिनके माता-पिता कान्वेंट स्कूलों की फीस नहीं चुका सकते। क्या किसी अमीर को अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाते देखा है। हमने यहीं आरक्षण कर दिया। देश में इक्वलटी फॉर लॉ और इक्वलटी एकाउंट है ही नहीं।
युवा पीढ़ी काव्य से दूर जा रही
एक सवाल का जवाब देते हुए डॉ हरिओम पंवार ने चिंता जाहिर की कि युवा पीढ़ी कविता से दूर जा रही है। इसके लिए उन्होंने कान्वेंट शिक्षा को कारण माना है। कहा कि युवा कविता से अलग हो रहा है। 15-16 साल के बच्चे सम्मेलनों में नहीं दिखाई देते। वे कविता के संस्कार से दूर हैं। कान्वेंट स्कूलों में कविता का कंसेप्ट नहीं है। यहां टेम्स नदी पढ़ाई जाती है, गंगा नहीं। कविता में चरित्र, संस्कृति, संस्कार और निष्ठा होती है।
हास्य रस ने काव्य को लोकप्रिय बनाया
ओज के घटने और हास्य में चुटकुलों के बढऩे के सवाल पर डॉ पंवार ने कहा कि हास्य रस की अपनी महत्ता है। हास्य रस ने कविता को लोकप्रिय बनाया है। कविता की सड़कें तैयार की हैं, टॉवर टूटा है, उस सड़क पर अब वीर रस और गीतकार दौड़ने लगे हैं। कोई भी क्लिस्ट साहित्य नहीं पढ़ना-सुनना नहीं चाहता। कवि पर सामने बैठे अतिथि से लेकर पीछे खड़े होकर फल्ली बेचने वाले तक का ध्यान रखना होता है। उसके सामने संकट एक कविता से दोनों को प्रभावित और तालियां बजवाने का होता है।
भाषणों में तुकबंदी ने कवि बना दिया
पिछले 40 साल से काव्य का सृजन कर रहे वीर रस के कवि डॉ पंवार ने बताया कि संयोग से वे कवि बन गए। हिंदी भाषा साहित्य उन्होंने पढ़ा नहीं। उनके मुताबिक छंद का पांडित्व उनके पास नहीं। पढ़ाई के बाद विधि की टीचिंग करते थे। जेपी आंदोलन में शामिल हुए और भाषणों में तुकबंदी कर दी, जनता ने तालियां बजाना शुरू कर दी। इस तरह सामाजिक सरोकारों को गढ़ने में सफलता मिली। डॉ पंवार ने कहा कि कविता सामाजिक सुरक्षा का औजार हो सकती है, यह उनका कंसेप्ट है।
Created On :   3 Dec 2017 12:01 AM IST