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"गांधीयन थॉट्स" पर नागपुर यूनिवर्सिटी से मिला डिप्लोमा लौटाएंगे प्रो. कुलगुरु मिश्रा

डिजिटल डेस्क,नागपुर। नागपुर यूनिवर्सिटी से 1987 में प्राप्त डिप्लोमा वापस लौटाने का निर्णय कृष्णा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के कुलगुरु और दत्ता मेघे इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस के प्र-कुलगुरु डॉ.वेदप्रकाश मिश्रा ने लिया है। उन्होंने वर्ष 1987 में "पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन गांधीयन थॉट्स" नागपुर यूनिवर्सिटी से प्राप्त किया था। डॉ.मिश्रा पर नागपुर यूनिवर्सिटी ने यह डिप्लोमा अवैध रूप से "प्लैगेरिज्म" के जरिए हासिल करने का आरोप लगाया था। हालांकि यह मामला न्यायालय के विचाराधीन है। डॉ.मिश्रा ने यूनिवर्सिटी प्रशासन पर उन्हें प्रताड़ित करने और उनकी छवि मलिन करने का आरोप लगाते हुए यूनिवर्सिटी की यह डिग्री त्यागने की घोषणा की है। उनके इस पत्र के बाद नागपुर विवि और संबंधित शिक्षाविदों में चर्चा का माहौल गर्म हो गया है। हालांकि अधिकृत सूत्रों की मानें तो नागपुर विवि के नियमों के अनुसार दो ही मौकों पर डिग्री वापस ली जा सकती है। अगर किसी ने एक साथ दो डिग्रियां प्राप्त की हो, या फिर वह श्रेणी सुधार के लिए अपनी डिग्री त्यागना चाहता हो। डॉ.मिश्रा के मामले में यह दोनों स्थितियां नहीं है। ऐसे में 26 फरवरी को विवि में होने वाली बोर्ड ऑफ इक्जामिनेशन की बैठक में इस पर फैसला लिया जाएगा।
लेटर में निकाली टीस
डॉ.वेदप्रकाश मिश्रा ने विवि को लिखे अपने पत्र में विवि पर उन्हें प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है। उनके अनुसार वर्ष 1991 से मेरे ऊपर यह आरोप लगाया जा रहा है। समय-समय पर जलील भी होना पड़ा। मैंने जीवन के 35 वर्ष विवि के सीनेट, एकेडमिक काउंसिल, मैनेजमेंट काउंसिल और अन्य कई समितियों में रह कर विवि की सेवा में बिताए हैं। अपने खिलाफ हुई जांच समिति की रिपोर्ट को काल्पनिक बताते हुए उन्होंने पत्र में लिखा है कि विवि द्वारा प्रदान की गई "पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन गांधीयन थॉट्स" की यह उपाधि सम्मान नहीं, अपमान की तरह लग रही है। लिहाजा, विवि को यह डिप्लोमा लौटा रहे है। उन्होंने विवि की रिकॉर्ड से अपना नाम हटाने की अपील की है। इस पत्र के संबंध में हमने डॉ. वेदप्रकाश मिश्रा से संपर्क करने की कोशिश की तो मामला न्यायालय के विचाराधीन होने के कारण उन्होंने कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।
यह है मामला
डॉ.मिश्रा ने विवि से वर्ष 1987 में यह डिप्लोमा पूरा किया था। इसके बाद रत्नपारखी जांच समिति की रिपोर्ट में उनकी इस डिग्री को अवैध करार दे दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार, यह आरोप था कि डॉ. मिश्रा ने वर्ष 1887 में डॉ. राव द्वारा लिखित किताब से यह थीसिस कॉपी किया था। जांच समिति की इस रिपोर्ट को डॉ.मिश्रा ने दीवानी न्यायालय में चुनौती दे रखी है, जिस पर फैसला अभी लंबित है।
Created On :   22 Feb 2018 12:07 PM IST