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नंदूरबार जिले में हो रही किसानों के साथ बेईमानी, अब कपास में नमी की मशीन से जांच करेंगी सीसीआई
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। देशभर में किसान सरकारी समर्थन मूल्य को लेकर आंदोलित है और आगामी पांच नवंबर को देशव्यापी सड़क जाम करने जा रहे है। इस बीच कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) कपास उत्पादक किसानों को राहत पहुंचाने की दिशा में 1 नवंबर से एक बड़ी पहल करने जा रहा है। कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के एक अधिकारी ने बताया कि 1 नवंबर से महाराष्ट्र के कपास उत्पादक क्षेत्र में जहां-जहां कपास बेची जाती है, उन केन्द्रों पर सीसीआई के नुमाइंदे भी मौजूद रहेंगे और अपनी मशीन से जांच करेंगे कि कपास की नमी कितनी है। इससे मिल मालिक किसानों के साथ धोखाधड़ी नहीं कर सकेंगे। हालांकि अधिकारी ने यह भी कहा कि यदि कपास की नमी 12 प्रतिशत से अधिक रहीं तो सीसीआई भी कपास नहीं खरीदेगी।
कपास का सरकारी मूल्य 5800 रुपए है, लेकिन मिल मालिक किसानों को अधिक से अधिक 4000 या 4800 रुपए देते है इससे अधिक नहीं देते। वजह यह है कि मिल या मार्केट में बेचने के लिए लाई गई कपास की नमी के हिसाब से मिल मालिक कपास का दाम तय करते है। इससे किसानों को उनके उपज का सरकारी दाम नहीं मिल पाता है। वर्धा जिले के किसानों से इस मसले पर बात करने पर उनका कहना था कि मिल मालिक कपास की नमी को हमेशा बढ़ा चढ़ाकर (20-30 प्रतिशत तक) बताते है। निमखेड़ा के रहने वाले किसान प्रफुल बताते है कि वर्धा जिले में सौ के करीब मिले होंगी। उनके जानकारी के अनुसार वायगांव में 2, हिंगनघाट में 10-12, देवली में 5-6 है। उन्होंने बताया कि वे और गांव के अधिकतर किसान देवली मार्केट में कपास ले जाते है, जहां सिंघानिया नामक मिल मालिक कपास खरीदते हैं। वे अपनी मशीन से कपास की नमी गिनते है और अपने हिसाब से खुद ही भाव तय करते हैं। तय किया गया दाम नहीं पटता है तो वह कपास ले जाने के लिए कहते है इसलिए मजबूरन हम कपास बेच देते हैं। अब तक 4800 रुपये से अधिक दाम कभी नहीं दिया है।
नंदूरबार जिले में भी हो रही किसानों के साथ बेईमानी
नेशनल एलायंस फॉर पीपुल्स मूवमेंट की संयोजक मेधा पाटकर ने बताया कि नंदूरबार जिले में भी कपास उत्पादक किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि जिले में शाहदा तहसील है जो कि आदिवासी बहुल इलाका है। यहां कपास की आठ मिलें है। इन में से एक मित्तल मिल है। यहां पर किसानों द्वारा लाई गई कपास की नमी वे किसानों के सामने नहीं बल्कि मिल के अंदर ले जाकर तो गिनते है और अपने हिसाब से दाम तय करते है। ऐसे में यह अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है कि यह मशीन कितनी पारदर्शी है। हम किसानों के साथ मिल मालिक को से मिले और उनसे कहा कि आपकी मनमानी अब नहीं चलेगी। आपको सरकारी समर्थन मूल्य देना होगा। संघर्षशील संवाद के बाद 4800 की जगह 5200 रुपए प्रति क्विंटल देने की बात तय हुई। उन्होंने कहा सीसीआई की कर्मचारी 1 नवंबर से केन्द्रों पर मौजूद रहेंगे। हम भी 1 तारीख से किसानों के साथ मिलकर सीसीआई पर कड़ी निगरानी करेंगे। ताकि वह भी गडबड ना करें।
Created On :   1 Nov 2020 2:31 PM IST