आवाज सुनाई नहीं देने से अवसाद में जाने का खतरा

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आवाज सुनाई नहीं देने से अवसाद में जाने का खतरा

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बहरेपन की समस्या के दो प्रकार हैं। एक जन्मजात, कुछ बच्चे आवाज सुन नहीं पाते। दूसरे प्रकार में किसी बीमारी के चलते, बीमारी का उपचार लेने पर दवाइयों के साइड इफेक्ट, दुर्घटना में कान या इससे संबंधित किसी हिस्से में गंभीर चोट लगने, तेज आवाज कानों के पर्दे पर पड़ने बहरापन आता है। जन्मजात बहरेपन की समस्या का प्रमाण प्रति 1000 बच्चों में 6 है, जबकि 50 वर्ष अधिक उम्र वालों में यह प्रमाण 16 से अधिक है। श्रवण टेस्ट करने पर जिनमें तीव्र या अतितीव्र श्रवण दोष है, उनका कॉक्लियार इनप्लांट करने पर यह दोष दूर हो सकता है।

6 वर्ष आयुसीमा तक के बच्चों में यह दोष पाए जाने पर एडीआईपी योजना से ऑपरेशन कर संपूर्ण खर्च सरकार करती है। इससे अधिक उम्र होने पर अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है। ऑपरेशन खर्च महंगा रहने से मरीज की जेब पर बोझ पड़ता है। मुंबई के कॉक्लियर इनप्लांट स्पेशलिस्ट डॉ. मिलिंद कीर्तने ने बताया कि उन्होंने भारत और विदेशों में भी कॉक्लियर इनप्लांट किए गए हैं। भारत में किए गए ऑपरेशन में 90 प्रतिशत से अधिक बच्चें हैं, जबकि विदेशों में ऑपरेशन कराने वालों में 90 प्रतिशत बुजुर्गों का समावेश रहा है। 

समाज से बेदखल
आवाज सुनाई नहीं देने से बहरा व्यक्ति किसी के साथ संवाद नहीं कर सकता। एक-दूसरे के साथ संवाद नहीं कर पाने का नतीजा अपने-आप समाज से बेदखल हो जाता है।

भारत में ऐच्छिक, विदेशों में अनिवार्य
विदेशों में बच्चा पैदा होने पर श्रवण टेस्ट कराने के बाद ही माता को अस्पताल से छुट्टी दी जाती है। जबकि भारत में श्रवण टेस्ट कराना ऐच्छिक है। इस मामले में पालकों की अज्ञानता बहरेपन की सबसे बड़ी समस्या है।

पैदा होने पर  श्रवण टेस्ट जरूरी
डॉ. कीर्तने कहते हैं, बच्चे का जन्म होने पर उसका श्रवण टेस्ट कराना जरूरी है। बच्चे का श्रवण टेस्ट होने के बाद ही माता को अस्पताल से छुट्टी देनी चाहिए। यदि बिना टेस्ट किए छुट्टी दे दी जाने पर बच्चे में श्रवण दोष का पता लगाना माता-पिता के लिए कठीन काम है। अनेक मामलों से बच्चे के स्कूल जाने के बाद शिक्षक से उसके श्रवण दोष का पता चलता है। यदि बच्चे में श्रवण दोष है, तो उम्र के 4 वर्ष तक उसका बेहतर उपचार हो सकता है। इसके बाद किए जाने वाले उपचार की परिणामकारकता 4 वर्ष के बच्चे के मुकाबले कम रहती है। 

कॉक्लियर इनप्लांट कब जरूरी
श्रवण दोष रहने पर सभी का कॉक्लियर इनप्लांट करने की जरूरत नहीं पड़ती। पहले उनकी श्रवण क्षमता का टेस्ट किया जाता है। इसके अलग-अलग स्टेज हैं। अलग-अलग क्षमता के श्रवणयंत्र लगाकर उनकी श्रवण क्षमता की जांच की जाती है। सबसे अधिक श्रवण क्षमता के यंत्र से भी नहीं सुनाई देने पर कॉक्लियर इनप्लांट किया जाता है। किसी भी उम्र के व्यक्ति का कॉक्लियर इनप्लांट किया जा सकता है।

अवसाद में जाने का खतरा
वयस्क या बुजुर्गों में बहरेपन की समस्या अवसाद में चला जाने का बड़ा कारण बन सकती है। उन्हें सुनाई नहीं देने से वे परिवार और समाज से अलग-थलग पड़ जाते हैं। यह समस्या उनकी मानसिकता पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। मानसिक दबाव बढ़ने से अवसाद में चले जाने का खतरा बढ़ जाता है।

Created On :   3 Jun 2019 12:46 PM IST

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