देश में हर साल पटाखों से 5,700 लोगों की चली जाती है नेत्र ज्योति : सर्वे

Every year 5,700 peoples becomes blind due to the firecrackers
देश में हर साल पटाखों से 5,700 लोगों की चली जाती है नेत्र ज्योति : सर्वे
देश में हर साल पटाखों से 5,700 लोगों की चली जाती है नेत्र ज्योति : सर्वे

डिजिटल डेस्क, नागपुर। प्रकाश पर्व दिवाली यूं तो खुशियां बिखेरने का त्योहार है, लेकिन दिवाली के दिन आतिशबाजी के दौरान लापरवाही कभी-कभी भारी पड़ जाती है। पटाखे फोड़ते वक्त कई लोगों की नेत्र ज्योति भी चली जाती है। यह जानकारी एक रिपोर्ट में समाने आई है। पटाखा फोड़ते समय न केवल इंसान घायल हो सकता है, बल्कि आंखें जलने पर अंधापन भी आ सकता है। बच्चों पर तो इसका असर सबसे ज्यादा होने का खतरा रहता है। 

एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया में 5 लाख लोग पटाखे के कारण अंधे हो जाते हैं। इसमें छोटे बच्चों के मामले सबसे ज्यादा हैं। देश में हर साल 5700 लोग पटाखों के कारण अंधे हो रहे हैं। लिहाजा मेडिकल अस्पताल के नेत्र विभाग की ओर से पटाखे सावधानी से फोड़ने और सुरक्षित दीपावली मनाने की अपील की गई है। विभाग प्रमुख अशोक मदान कहते हैं कि पटाखों में प्रमुख तौर पर चारकोल (कोयला), गंधक, नाइट्रेट, क्लोरेट, परफ्लोरेट घटक पाए जाते हैं। इससे पटाखों का जीवों के साथ निर्जीव चीजों पर भी परिणाम होता है। 

पटाखों से निकलने वाले धुएं से आंखें, फेफड़े के साथ त्वचा को भी हानि पहुंचती है। पटाखों से ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण होता है। जहां पटाखे जलाए जाते हैं, वहां का तापमान पांच सौ डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। पटाखों से पीड़ितों में 20 वर्ष से कम उम्र के 60 प्रतिशत लोगों का समावेश है। पटाखों से धूल मिट्टी आदि उड़कर आंखों में जाने से आंखें जख्मी हो जाती हैं। आंखों को हानि पहुंचाने वाले पटाखों में 60 प्रतिशत मामले अनार से, 30 मामले सुतली बम, रॉकेट के 10 प्रतिशत मामले व अन्य पटाखों से 10 प्रतिशत मामले देखने में आते हैं।

मुंबई के मुकाबले नागपुर में ध्वनि प्रदूषण कम 

दिवाली पर पटाखे से होने वाले पॉल्यूशन को लेकर पूरे राज्य में हंगामा मचा हुआ है। राज्य में भले ही आदेश राजधानी से निकलकर लागू होते हैं, लेकिन पटाखों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित रखने में राजधानी मुंबई से आगे उपराजधानी नागपुर दिखाई दे रही है। दीपावली के दौरान नागपुर मुंबई के मुकाबले शांत दिखाई पड़ता है।महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल के हर साल दीपावली में लिए गए आंकड़े दर्शा रहे हैं। 2014 से 2016 के तीन साल के कालखंड में उपराजधानी ने पटाखों के संदर्भ में अधिक संयम दर्शाया है।

वेबसाइट में उपलब्ध आंकड़े बताते हैं कि 2014 में दीपावली के दौरान सबसे अधिक पटाखे मुंबई के नरीमन प्वाइंट इलाके में फूटे। यहां 99.8 डेसिबल की सर्वाधिक तेज आवाज दर्ज की गई। 23 अक्टूबर 2014 दीपावली के दिन सर्वाधिक पटाखे सदर इलाके में फूटे। यहां 79.7 डेसिबल आवाज दर्ज की गई थी। 

11 नवंबर 2015 के दिन मनाई गई दीपावली में दक्षिण मुंबई के मंत्रालय इलाके में सबसे ज्यादा पटाखों ने ध्वनि प्रदूषण फैलाया। दीपावली की रात यहां 85.8 डेसिबल आवाज दर्ज की गई, लेकिन इसी दिन नागपुर में फिर सदर इलाके में सबसे ज्यादा पटाखे फूटे। सदर में फूटे पटाखों से  82.6 डेसिबल आवाज दर्ज की गई थी। हालांकि, इस साल मुंबई के मुकाबले नागपुर महज 3.2 डेसिबल ही पीछे रहा, लेकिन मुंबई के मुकाबले यह नियंत्रित रहा। 

2016 में दीपावली 30 अक्टूबर को मनाई गई। दीपावली की रात पटाखों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण के मामले में फिर एक बार नागपुर ने संयम दिखाया। नागपुर में बीते वर्ष सर्वाधिक पटाखे सदर के बजाए कलमना इलाके में फूटे। यहां पटाखों की आवाज 69.2 डेसिबल दर्ज की गई, लेकिन मुंबई में फिर दक्षिण मुंबई का मंत्रालय इलाका पटाखा फोड़ने के मामले में सबसे आगे निकल गया। मंत्रालय इलाके में 71 डेसिबल पटाखों के धमाकों की आवाज दर्ज की गई। 


कड़े नियम और जनजागरण का असर
पटाखों से होने वाले ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए 2009 में अदालत ने आदेश दिए थे। इसमें 125 डेसिबल से अधिक ध्वनि पैदा करने वाले पटाखों पर पाबंदी लाई गई थी। इसके बाद धीरे-धीरे पटाखों की धमक कम हो गई। देशभर में पटाखा मानक ध्वनि स्तर की सीमा के बाहर पाए जाने पर सीलबंदी कार्रवाई की जाती है। इसे देखते हुए पटाखा कंपनियों ने भी इससे अधिक आवाज करने वाले पटाखों पर पाबंदी लाई। वहीं ध्वनि प्रदूषण के जनजागण को लेकर बढ़ोतरी ने भी तेज आवाज पटाखों की मांग घटा दी। इससे भी पटाखों से होने वाली ध्वनि प्रदूषण में साल दर साल कमी देखने को मिल रही है।

 

Created On :   18 Oct 2017 12:36 PM IST

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