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खेत मध्यप्रदेश में और घर महाराष्ट्र में, 72 सालों से बंटवारे का खामियाजा भुगत रहे तीन गांवों के किसान
डिजिटल डेस्क, छिन्दवाड़ा/पांढुर्ना। वर्ष 1956 में सीपी एंड बेरार से मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में अलग हुए सीमावर्ती किसान आज भी इसका खामियाजा भुगत रहे हैं। सात दशकों पहले ग्राम बेलोना, पीलापुर, मोवाड में बसे लोग राजोराकलां, जोगा, खापरखेड़ा पटवारी हलकों में खेती करते थे। उस समय यह मध्य भारत में आता था। सन 1956 में दोनों राज्यों के बीच एक नई सीमा खींची गई। इन लोगों के पुश्तैनी मकान बेलोना, पीलापुर में थे, वें महाराष्ट्र के मूल निवासी हो गए। परंतु इनके खेत राजोराकलां, जोगा और खापरखेड़ा में थे, जो मध्यप्रदेश के राजस्व में शामिल हो गए।
बीते सात दशकों से कुछ अड़चनों के साथ बात बढ़ती गई। पिछले साल मध्यप्रदेश सरकार ने भावांतर योजना लागू की, जिसमें पंजीयन के लिए समग्र आईडी के साथ आवेदन जमा करने की व्यवस्था ऑनलाइन की गई। समग्र आईडी राशन कार्ड और मूल निवास स्थान के आधार पर बनता है। चूंकि यह सभी लोग महाराष्ट्र के नागरिक है इसलिए अब ये भावांतर योजना में आवेदन करने के पात्र ही नहीं रहे। इन गांवों के किसान प्रकाश घरकोड़ाले, ओमकार सेंगर, राजेश राठौड आदि ने बताया कि हमारे खेत मध्यप्रदेश में है परंतु हमें किसी भी योजना का लाभ नही मिल रहा।
मुआवजों से भी वंचित रह रहे किसान
मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में बंटे रहने का खामियाना किसानों को हर तरफ से भुगतना पड़ रहा है। किसानों ने बताया कि पिछले दिनों जंगली जानवरों ने खेतों में खड़ी मक्का फसलों का बर्बाद कर दिया। जिसकी सूचना स्थानीय वन विभाग और राजस्व अमले को दी गई। वन अधिकारियों और पटवारियों ने मौके पर पहुंचकर नुकसानी का आंकलन भी किया पर मुआवजे को लेकर कोई पहल नही हुई। ऐसी अन्य कई परिस्थितियों में किसानों को उलझना पड़ रहा है।
इनका कहना
अभी-अभी यह मसला जानकारी में आया है। हम किसानों से मिलकर उनकी समस्या सुनेंगे। जिसको लेकर वरिष्ठ अधिकारियों को परिस्थिति से अवगत कराएंगे। हमारा पूरा प्रयास किसानों के हित में रहेगा।
- अतुल सिंह, एसडीएम, पांढुर्ना
Created On :   6 Sep 2018 9:18 AM GMT