डॉ आंबेडकर राष्ट्रीय मेमोरियल एवं म्यूजियम सही मायने में क्यों नहीं बन सका उनका प्रतीक

डॉ आंबेडकर राष्ट्रीय मेमोरियल एवं म्यूजियम सही मायने में क्यों नहीं बन सका उनका प्रतीक
जानिए डॉ आंबेडकर राष्ट्रीय मेमोरियल एवं म्यूजियम सही मायने में क्यों नहीं बन सका उनका प्रतीक

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली, सुनील निमसरकर। संविधान निर्माता डॉ बाबासाहेब आंबेडकर की याद में दिल्ली के अलीपुर रोड पर आज से ठीक चार साल पहले राष्ट्रीय स्मारक तो जरुर खड़ा हो गया, लेकिन यह स्मारक बाबासाहेब का अब तक सही मायने में प्रतिक नहीं बन सका। स्मारक के भीतर कई ऐसी चीजें है, जो उनके सिद्धातों के खिलाफ जाती है। इनमें सुधार कराने की सरकार से कई बार गुहार भी लगाई गई, लेकिन आज तक इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है।

कानून मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद पांच साल तक बाबासाहेब इसी जगह पर रहे और यहीं उनका महापरिनिर्वाण भी हुआ। दरअसल, राजस्थान के टोंक के नवाब की यह कोठी थी, जिसे बाबासाहेब को रहने के लिए दी गई थी। उनके निधन के बाद यह जगह खाली करनी पड़ी। इस जगह को अधिग्रहीत करने से लेकर इस पर मेमोरियल बनाए जाने तक लंबी लड़ाई लडने वाले डॉ बी आर आंबडेकर विचारमंच के महामंत्री रतनलाल केन बताते है कि उन्होंने इसके लिए तत्कालीन दिल्ली प्रशासन को चिठ्‌ठी लिखकर मांग की थी इस जगह को अधिग्रहीत करके इस पर बाबासाहेब की याद में मेमोरिएयल बना दिया जाए। लंबी जद्दोजहद के बाद प्रशासन ने उनके प्रस्ताव को केन्द्र सरकार को भेजा। केन्द्र द्वारा इसे स्वीकार करने के बाद इस जगह को रेसिडेंशियल से कर्मशियल में कन्वर्ट कर दिया गया, लेकिन इस फैसले के खिलाफ भावीचंद जिंदल कोर्ट गए। न्यायालयीन लड़ाई के बीच 2004 में तत्कालीन वाजपेयी सरकार ने तय कर लिया कि हर हाल में इस जगह को अधिग्रहीत कर लिया जाएगा और यहां डॉ आंबेडकर मेमोरियल बनाया जाएगा।

केन बताते है कि वाजपेयी सरकार ने इस जगह को अधिग्रहीत करने के लिए 14 करोड़ रुपये दिए और उस समय की इमारत को मेरे सूझाव पर रखे गए डॉ आंबेडकर मेमोरियल एवं म्यूझियम का पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी ने उद्घाटन भी किया। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 125 करोड़ की लागत से पुरानी इमारत को नए सिरे से बनाई, जिसका उन्होंने 13 अप्रैल 2018 को उद्घाटन किया। केन बताते है कि भले ही ही प्रधानमंत्री मोदी ने इसे नए सिरे से बनाया, लेकिन इसमें डा आंबेडकर की उपेक्षा की गई है। वे कहते है कि डॉ आंबेडकर संविधान निर्माता होने के नाते राष्ट्रीय स्मारक में उनका कोई भी वास्तविक चित्र है ही नहीं, लेकिन संविधान की मूल कॉपी पर हस्ताक्षर करते हुए भी उन्हें नहीं दिखाया गया है। जबकि इसके विपरित पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु एवं उनके कैबिनेट के सदस्यों को हस्ताक्षर करते हुए दिखाया गया और बाबासाहेब साइड में खड़ा रखा है। डॉ आंबेडकर को पूतले में दूसरे नंबर दिखाया गया है, लेकिन उनके हस्ताक्षर सिरियल नंबर 25 पर अंग्रेजी में और 31 नंबर पर हिंदी में दिखाए गए है। यह उनके ही स्मारक में उनकी उपेक्षा है।
अगले दृश्य में उन्हे संविधान सभा में 25 नवंबर 1949 को अंतिम भाषण करते एनिमेशन चित्र दिखाया गया है। इसमें उनकी वास्तविक आवाज नहीं है।

केन कहते हैं कि यह कैसी विडंबना है कि डॉ आंबेडकर स्मारक में ना तो कोई हस्ताक्षर करते हुए उनका वास्तविक चित्र है और नहीं उनकी वास्तविक आवाज है। इसके अलावा डॉ आंबेडकर ने जब 1956 में बौद्ध धर्म ग्रहण किया तो उनके द्वारा दी गई 22 प्रतिज्ञा, जो इसी स्थान पर लिखी गई, उसका भी यहां कोई चित्रण नहीं है। इससे ऐसा लगता है कि आंबेडकर के स्मारक में ही उनके सिद्धांतों की उपेक्षा हुई है। इससे भी ज्यादा आपत्तिजनक यह है कि डॉ आंबेडकर को एक पेड़ के नीचे बैठे संकल्प करते दिखाया गया है, जैसे कि डॉ आंबेडकर अपने किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु के बाद संकल्प कर रहे हो। उन्होंने कहा कि आपत्तिजनक चीजों को हटाने के लिए कई बार सरकार को लिखा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलने पर उन्होंने यहां के सिविल लाइन थाने में शिकायत दर्ज कराई है

 

Created On :   13 April 2022 10:19 PM IST

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