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भारतीय संस्कृति के रंग में ढल रहे विदेशी यूथ

डिजिटल डेस्क,नागपुर। विदेशी बच्चों को भारतीय संस्कृति काफी भा रही है। रोटरी डिस्ट्रिकट 3030 द्वारा चलाए जा रहे यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम के अंतर्गत विदेश से आए स्टूडेंट्स जिन्हें शहर के 7 परिवार होस्ट कर रहे हैं, उन परिवारों से चर्चा के दौरान पता चला कि ये बच्चे पूरी तरह हमारे साथ घुल मिल गए हैं, साथ ही जिस तरह हम भारतीय किसी से मिलने पर उन्हें नमस्ते करते हैं वे भी अब नमस्ते करते हैं। उन्हें हमारे रीति-रिवाज समझने में कुछ दिन लगे, पर वे अब पूरी तरह भारतीय रंग और संस्कृति में रंग गए हैं। चाहे यहां के त्योहार हों या खान-पान, सभी को उन्होंने अपना लिया है। सबसे अहम बात यह सामने है कि वे बच्चे चम्मच से नहीं बल्कि हाथ से खाना खाते हैं और रोटी भी एक हाथ से तोड़ते हैं। उन्हें भारतीय परिधान बहुत आते हैं, जिसमें गर्ल्स साड़ी को बहुत पसंद करती हैं। कॉलेज से आने के बाद वे तबला, कथक के साथ अन्य तरह के वाद्य यंत्र सीखने के लिए क्लासेस भी जाते हैं।
पूजा-आरती आ रही पसंद
चाहे गणेश जी की आरती हो या नवरात्र का गरबा बच्चों ने हर त्योहार में पार्टिसिपेट किया है। गणेशोत्सव के समय आरती भी गाई, जिसे सुनकर सभी आश्चर्यचकित हो गए। विदेशी होकर भी अच्छी तरह आरती गाते हैं। साथ ही अपने घर में मेहमान आने पर उनका स्वागत भारतीय संस्कृति की तरह करते हैं, जिस तरह हमारे बच्चे घर में रहते हैं उसी तरह विदेशी बच्चे भी पूरी तरह से हमारी संस्कृति में ढल गए हैं।
-मंगेश जोशी, भरत नगर
हर दिन कुछ नया देखकर होते हैं खुश
बच्चे तो यहां के त्योहार देखकर ही खुश हैं। हर दिन कुछ नया होता है। अभी होली को लेकर बहुत एक्साइटेट हैं। मई से जुलाई तक ही अधिकांश त्योहार होते हैं और बच्चे भी इसी टाइम आते हैं। इसलिए उन्हें सारे त्योहारों में रहकर बहुत ही अच्छा लगता है। दीपावाली पर रंगोली बनाने में लड़कियों ने साथ दिया और अपनी हाथ से बनाई रंगोली देखकर बहुत खुश हुईं। साथ ही हम जब भी बाहर जाते हैं, तो वे खाने की इतनी सारी वेरायटी देखकर बहुत खुश हो जाते हैं। नॉनवेज से ज्यादा वेज खाना पसंद करते हैं। -
मनीष सांघवी, लक्ष्मी नगर
ऐसे मौके को छोड़ना नहीं चाहिए
रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3030 द्वारा 1990 से हर वर्ष इस प्रोग्राम का आयोजन किया जा रहा है। यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम का उद्देश्य है कि हमारे देश की संस्कृति और सभ्यता को दूसरे देश तक पहुंचाना और दूसरे देश की संस्कृति के बारे में जानना, जिसमें हमारे यहां के बच्चे भी विदेश जाते हैं और उन्हें भी उसी तरह से रखा जाता है, जिस तरह से वहां के बच्चों को रखकर रीति-रिवाज सिखाए जाते हैं। बच्चे भी जाने से पहले पूरी तरह से मेंटली प्रिपेयर होते हैं और वे सहयोग भी करते हैं। 16-18 वर्ष के होने के कारण इन्हें सिखाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है।
तरुण पटेल, रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3030
Created On :   9 Feb 2018 4:17 PM IST