नदियों से निकला कचरा डंपिंग यार्ड ले जाना भूले, फिर गंदगी से पटी नदियां

Forget collect garbage from rivers for disposed in dumping yard
नदियों से निकला कचरा डंपिंग यार्ड ले जाना भूले, फिर गंदगी से पटी नदियां
नदियों से निकला कचरा डंपिंग यार्ड ले जाना भूले, फिर गंदगी से पटी नदियां

डिजिटल डेस्क, नागपुर। हर साल बारिश के दिनों में शहर की नाग, पीली और पोहरा नदियां उफान पर होती हैं। अनेक इलाके डूब जाते हैं। कई मकान गिर जाते हैं तथा जनजीवन अस्त व्यस्त हो जाता है। नदियों की सफाई का मकसद यही था कि बारिश के दिनों में ये नदियां शहर में बाढ़ की स्थिति पैदा न कर सकें। नदी में जगह-जगह जमा कचरा व गंदगी निकाला जाए जिससे पानी के बहाव में रुकावट न हो। हर साल की यह मेहनत बेकार हो जाती है क्योंकि नदियों की सफाई के दौरान निकाला जाने वाला कचरा या तो वापस नदियों में पहुंच जाता है अथवा नदियों के किनारे गंदगी का कारण बनता है। खासकर नाग नदी व पीली नदी से निकाले जाने वाले कचरे के निपटान में नागपुर महानगर पालिका फिसड्डी साबित हो रही है। पिछले 6 सालों से एक बार भी नदी से निकलने वाले कचरे का नियोजन नहीं हो पाया है। नदी सफाई अभियान से जुड़े अधिकारी कहते हैं कि नदियों से निकलने वाले कचरे का निपटान करने की जिम्मेदारी मनपा के स्वास्थ्य विभाग की है। यह विभाग कचरा संकलन में लापरवाही बरत रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण नदी के किनारे पर लगे कचरे के ढेर के रूप में देखा जा सकता है। पिछले काफी समय से झिंगाबाई टाकली परिसर स्थित पीली नदी के किनारे गंदगी का आलम है तथा आसपास के इलाकों में रहने वाले नागरिकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लगभग 6 वर्ष पहले शहर की नाग नदी, पीली नदी व पोहरा नदी की सफाई काे लेकर नागपुर महानगर पालिका ने अभियान छेड़ा था। साल 2013 में पहली बार तीनों नदियों की सफाई की गई थी। इसके बाद से हर साल इन नदियों की सफाई की जाती है लेकिन इसका असर होता नजर नहीं आ रहा है। ये नदियां इन दिनों गंदगी और कचरे से भर गई हैं। क्योंकि नदियों की सफाई के दौरान निकलने वाला कचरा उसके आसपास ही रख दिया गया था। प्रशासन इसे डंपिंग यार्ड ले जाना भूल गया जिससे यह कचरा फिर से नदियों में ही समा गया है। नदियों में गंदगी के कारण इनके आसपास रहने वाले लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 

सड़ जाएगी फिर भी नहीं बेचेंगे

उधर महाराष्ट्र राज्य मार्ग परिवहन गणेशपेठ बस स्थानक प्रशासन कई मामलों में लापरवाही बरतता रहा है। आए दिन यहां किसी ने किसी कारण से यात्रियों और चालक-वाहकों को परेशानी का सामना करना पड़ता है लेकिन प्रशासन उन समस्याओं काे नजरअंदाज कर देता है। बस स्थानक की मुख्य इमारत के ऊपर चालक-वाहक विश्राम गृह बनाया गया है। यहां दूरदराज से आने वाली बसों के चालक-वाहक आराम करते हैं। विश्रामगृह के बाहर खुली जगह पर बस स्थानक के पुराने रिकॉर्ड रखे गए हैं। इनमें रजिस्टर, फाइलें व अन्य दस्तावेजों का समावेश है। पहली नजर में तो यह कबाड़ लगता है, लेकिन बाद में पता चलता है कि ये पुराने रिकॉर्ड हैं। इन्हें खुला ही रखा गया है। इनकी सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं। वहां के एक कर्मचारी ने बताया कि ये बेकार हैं, किसी काम के नहीं हैं। जब पूछा गया कि बेकार हैं, तो रद्दी में क्यों नहीं बेचे जा रहे? जवाब मिलता है कि ये सरकारी हैं, इन्हें बेचने के लिए ऊपर से अनुमति लेनी पड़ती है। अनुमति कब मिलेगी इस बारे में किसी के पास जवाब नहीं है। खैर, जब तक अनुमति नहीं मिल जाती तब तक ये रिकॉर्ड यूं ही कचरे की तरह पड़े रहेंगे। इनमें से अधिकतर सामग्री खराब होने लगी है। करीब छह महीने से यह यहीं पड़े हैं। सूत्रों के अनुसार सामग्री में कीड़े लग चुके हैं। कुछ को चूहे कुतर दिए हैं। यहां से बदबू भी आने लगी है। पहले ये रिकॉर्ड बंधे थे। बाद में इनकी रस्सियां खराब हो गईं। गांठ छूटने से सामग्री तितर-बितर हो चुकी है। किसी ने वहां जलती माचिस की तिली या बीड़ी-सिगरेट फेंकी तो वहां आग लग सकती है। इससे एसटी के रिकॉर्ड खाक हो जाएंगे लेकिन प्रशासन को इसकी जरा भी परवाह नहीं है।

Created On :   14 April 2019 11:52 AM GMT

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