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कृषि पंप कनेक्शन में किसानों से छलावा, खपत से दोगुना आ रहा बिल

अतुल मोदी , नागपुर। किसानों के हित का ढिंढोरा पिटने वाले महावितरण ने किसानों के कृषि पंप कनेक्शन में छलावा किया है यह बात एक जमीनी सर्वेक्षण में सामने आई है विद्युत हानि छिपाने के लिए उन्हें खपत से करीब दोगुने के बिल दिए और सरकार से विद्युत दर पर 70 प्रतिशत से अधिक सब्सिडी ले ली। बिलों में जिन लोगों ने गड़बड़ी की शिकायत की, उनके बिल 70 प्रतिशत तक कम कर दिए। जो किसान नहीं आए, उनके नाम से वसूली निकाल दी। इसके कई उदाहरण भास्कर के पास मौजूद हैं। इस तरह विदर्भ सहित पूरे प्रदेश में करीब 10890 करोड़ के बिलों में गड़बड़ी हुई है। वर्ष 2007-08 से वर्ष 2016-17 तक सरकार ने महावितरण को कृषिपंप कनेक्शन पर करीब 29 हजार करोड़ रुपए सब्सिडी के रूप में दिए हैं। यदि बिलों को 40 प्रतिशत बढ़ा हुआ भी माना जाए, तो भी महावितरण करीब 11 हजार 500 करोड़ रुपए अतिरिक्त सब्सिडी के रूप में ले चुका है। यदि इसकी ठीक से जांच हो तो किसान पर महावितरण का कोई बकाया ही नहीं बचता, उल्टे महावितरण को सरकार से ली गई अतिरिक्त सब्सिडी की राशि ही वापस करनी पड़ सकती है। इसकी जांच के लिए सत्यशोधन कमेटी बनाई गई थी, जिसकी रिपोर्ट तैयार है, जो अब तक विधानसभा में पेश नहीं हुई।
तह में जाएं, तो यह कहानी सामने आती है : कृषि पंप कनेक्शन को लेकर जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उसकी तह में जाएं तो जो कहानी उभरती है वह यह है कि जब महाराष्ट्र प्रदेश राज्य विद्युत मंडल हुआ करता था, तब खेती के कार्य के लिए प्रयोग होने वाली बिजली की खपत 2400 घंटे प्रति हार्सपावर प्रतिवर्ष मानी जाती थी। विद्युत हानि करीब 20 से 22 प्रतिशत बताई जाती थी। महाराष्ट्र विद्युत नियामक आयोग ने अपने पहले आदेश में इसे कृषि कार्य के लिए बिजली के घंटों को अधिक माना। आयोग ने 2006 के आदेश के पूर्व कृषि मूल्यांकन सर्वे कराया। उस वर्ष महावितरण ने कृषि पंप में कुल 14000 दस लाख यूनिट खपत का दावा किया था। आयोग ने इसे अमान्य करते हुए 9500 दस लाख यूनिट की खपत को ही माना। साथ ही औसत प्रतिवर्ष खपत प्रति हॉ.पॉ. 1318 घंटे तय की। महावितरण के विद्युत हानि 27 प्रतिशत होने के दावे को भी नहीं माना और विद्युत हानि 35 प्रतिशत तय कर दी।
नायाब तरीका, औसत रीडिंग का बिल : कहानी में ट्वीस्ट आया 2010-11 में जब अकोला क्षेत्र के एक अधिकारी ने हजारों किसानों को एक ही औसत रीडिंग का बिल दे डाला। उपयोग भी सामान्य से अधिक। इससे महावितरण के उच्च अधिकारियों को विद्युत हानि को कम करने और आय को स्थिर रखने का नायाब तरीका मिल गया। यदि कृषिपंप की खपत बढ़ा दी जाए, तो विद्युत हानि घटेगी, क्योंकि जब बिजली गई ही नहीं, तो उसमें विद्युत हानि का सवाल ही नहीं है। इसका फायदा प्रदेश में कुल विद्युत हानि को कम दर्शाने में मिलेगा। साथ ही बिल बनेगा तो उसका भुगतान आए न आए सरकारी अनुदान की राशि तो आ ही जाएगी।
खेल यहां से शुरू हुआ : वर्ष 2010-11 में अनमीटर कनेक्शन का एचपी बढ़ाया गया। 3 एचपी कनेक्शन को 5 एचपी कर दिया और 5 को 7.5 एचपी और 7.5 एचपी को 10 एचपी। मीटर वाले कनेक्शन को प्रतिमाह प्रति एचपी 100 से 125 यूनिट का बिल थमाया गया। इससे हानि कम हुई और सब्सिडी ज्यादा। प्रतिवर्ष कृषि पंप कनेक्शन में विद्युत खपत 1900 घंटे बताई गई। आयोग ने इसे नहीं माना और साल 2016 के विद्युत दर प्रस्ताव का आदेश करते समय अायोग ने अस्थाई रूप से महावितरण को 1620 घंटे प्रतिवर्ष की खपत मंजूर की। इसे अंतिम रूप सरकार द्वारा बिठाई गई सत्यशोधन कमेटी व आईआईटी की टीम की रिपोर्ट के बाद दिया जाना था। रिपोर्ट सरकार को 23 जुलाई को ही सौंप दी गई थी, उसे अभी तक उजागर नहीं किया गया है।
ऊर्जामंत्री ने भी माना था कि किसानों के बिल में गड़बड़ी है : ऊर्जामंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने भी माना था कि कृषि पंप कनेक्शन की बिलिंग में गड़बड़ी है। उनके अनुसार, यह गड़बड़ी करीब 4 से 6 हजार करोड़ की हो सकती है। उनके अनुसार, अंतिम आंकड़े आने के बाद कृषि पंप कनेक्शन के बकाया को घटाकर व किसान को सही बिल देकर ही वसूली की जाएगी।

Created On :   19 Dec 2017 10:29 AM IST