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अब तहसील-कलेक्टर ऑफिस में भी मिलेंगी जेनेरिक दवाएं

विजय सिंह "कौशिक" , नागपुर । ब्रांडेड दवाओं की तुलना में लोगों की जेब के लिहाज से सुविधाजनक जेनेरिक दवाएं बेचने में निजी मेडिकल स्टोर रुचि नहीं दिखाते। इसलिए अब राज्य सरकार ने पंचायत समिति, तहसील और जिलाधिकारी कार्यालयों जैसी भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जेनेरिक दवा की दुकानें खोलने की योजना तैयार की है। फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर कोंकण के रत्नागिरी जिले में इसकी शुरुआत की जाएगा। यह प्रयोग सफल रहा तो राज्य के अन्य जिलों में भी ऐसी दवा दुकानें खुलेंगी। हाल ही में राज्य सरकार ने निजी डॉक्टरों के लिए ब्रांडेड के साथ ही जेनेरिक दवाएं लिखना अनिवार्य किया है। ऐसा न करने वालों के खिलाफ कारवाई की चेतावनी दी गई है। पर अधिकांश जगहों पर जेनेरिक दवाएं उपलब्ध नहीं होती। स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ब्रांडेड दवाओं की तुलना में जेनेरिक दवाएं 50 से 90 फीसदी सस्ती होती हैं। इस वजह से मेडिकल स्टोर मालिक जेनेरिक दवा नहीं बेचना चाहते, क्योंकि इससे उनकी कमाई प्रभावित होती है।
पब्लिक प्लेस भी होता है कलेक्टर और तहसील आफिस: दवाओं पर खर्च कम कर आम आदमी को राहत देने के लिए स्वास्थ्य विभाग उन जगहों पर जेनेरिक दवा की दुकानें खोलना चाहती है, जहां अपने कामकाज के सिलसिले में लोगों का आना-जाना अधिक होता है। इसलिए पंचायत समिति कार्यालय, तहसीलदार और कलेक्टर ऑफिस में जेनेरिक दवाओं की दुकान खोलने की योजना तैयार की गई है।
खर्च का बोझ करने की तैयारी : महाराष्ट्र स्वास्थ्य सेवा निदेशक डॉ. सतीश पवार के अनुसार डायबिटीज़ की नियमित दवा लेने वाले व्यक्ति को हर माह इस पर करीब 3 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं, जबकि जेनेरिक दवाओं से यह खर्च 1 हजार रुपए ही आ जाता है। अधिकारी ने बताया कि पहले सरकारी अस्पतालों में जेनेरिक दवा की दुकानें खोलने की योजना बनाई गई थी। पर केंद्र सरकार से मिलने वाली निधि से सरकारी अस्पतालों में 100 फीसदी मुफ्त दवा दी जाती है, ऐसे में वहां जेनेरिक दवा की दुकानें खोलना व्यवहारिक नहीं होता।
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Created On :   13 Dec 2017 11:06 AM IST