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ईश्वर की कृपा शक्ति सर्वश्रेष्ठ, श्रीहित अंबरीश ने बताया धर्म का सार
डिजिटल डेस्क, नागपुर। ईश्वर की कृपा शक्ति सर्वश्रेष्ठ है। उनकी कृपा और करुणा का कोई सानी नहीं है। दयानिधि की कृपा के बिना किसी का भी जीवन चल पाना मुश्किल है। उस परमसत्ता की बढ़ाई सुरदास जी महाराज ने अपने दोहों में बड़े सुंदर ढंग से किया है। उनकी कृपा और करुणा का यश भक्त के जीवन में भक्ति का संचार करता है। यह उद्गार श्रीहित अंबरीश महाराज ने श्री राधा वल्लभ नेह परिकर व श्री अग्रसेन मंडल सुरभि के संयुक्त तत्वावधान में भास्कर व्यास ग्राउंड, ईस्टर्न स्पोर्टस क्लब के पास, पूर्व वर्धमान नगर में आयोजित ‘संतवाणी’ कथा सत्संग में व्यक्त किए। ‘संतवाणी’ कथा सत्संग का रविवार को 2 फरवरी को समापन होगा। कथा का समय दोपहर 3.30 से शाम 6.30 बजे तक रखा गया है। महाराजश्री ने संतवाणी में कहा कि प्रभु ने इस धरा पर साधु- संतों के उद्धार के लिए जन्म लिया। वे अपनी प्रभुता को छोड़कर इस धरा पर सबके कल्याण के लिए आते हैं। वे अपने भक्त पर कृपा करते हैं तब भक्त का जीवन सफलता व सार्थकता की ओर अग्रसर होता है। उन्होंने मंदिर जाने का आशय समझाते हुए कहा कि मंदिर में कभी भी अपनी कामनाओं की पूर्ति के लिए नहीं जाना चाहिए, बल्कि अपने भीतर की छुपी कामनाओं को नष्ट करने के लिए मंदिर में प्रवेश करना चाहिए। मन को पवित्र करने के लिए मंदिर में प्रवेश करना चाहिए। जो हमारे मन के अंदर है वही मंदिर है।मंदिर वह स्थान है जहां मनुष्य का स्वयं के साथ संबंध स्थापित हो। महाराजश्री ने कहा कि प्रभु कहते हैं कि इस जगत में सबकुछ मेरा है, परंतु मुझ तक पहुंचने का मार्ग संतजन ही दिखा सकते हैं। संतों को प्रभु से भी अधिक मानना चाहिए। जब तक किसी जीव के पास पात्रता नहीं है, तब तक यदि उसके समक्ष स्वयं प्रभु भी क्यों न खड़े रहें, वह उन्हें नहीं पहचान सकता। इस जगत में सभी जीवों की शारीरिक, आर्थिक, मानसिक, भौतिक अवस्थाएं भिन्न-भिन्न हैं, परंतु एक चीज है जो सभी में है वह है आध्यात्मिकता। संतों के सान्निध्य में बैठने और उनकी संगति करने से ईश्वर को पाने की क्षमता का विकास होता है। इस संसार में जीव आया है तो वह कहता है कि या तो वह मरेगा या यह संसार। कबीरदास जी कहते हैं कि जो बाहर की ओर देखेगा वह मरेगा और जो भीतर की ओर देखेगा वह जीएगा। जो उस प्रभु की अनुभूति कर चुका है वही आपको उन प्रभु तक पहंुचा सकता है। जो आपसे पहले जाग गया हो वही आपको जगा सकता है। ‘संतवाणी’ में अधिक से अधिक संख्या में उपस्थिति की अपील श्री राधा वल्लभ नेह परिकर व श्री अग्रसेन मंडल सुरभि की कमला गोयल व रीना गर्ग ने की है।
माया पर विजय पाना कठिन
जगदंबाधाम, बोखारा, कोराडी रोड में संस्थापक राजेंद्र पांडे ने 9 कुंडीय शतचंडी महायज्ञ में कहा कि माया पर विजय पाना बहुत कठिन है। संपूर्ण देवता, महात्मा, मुनि, तपस्वी, ज्ञानी भी सुगमतापूर्वक इस माया को जीतने में असफल रहे। माया अपने मनोरंजन हेतु प्राणियों के शरीर में अनेक प्रकार की दशाएं उत्पन्न करती हैं। सुबह तड़के से ही यज्ञ के यजमान एवं दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है। आयोजन की सफलतार्थ संचालन समिति के अध्यक्ष मधुसूदन आगुटले, रामसंभार त्रिपाठी, प्रमुख सलाहकार रमेश मेहता, प्रभाकर रावते, रवींद्र दुबे, डॉ. सूर्यकांत द्विवेदी, ज्ञानेंद्र पांडे नन्हे, चंद्रभान यादव, ज्ञानचंद दुबे, निशांत नामदेव, महायज्ञ उत्सव समिति के अध्यक्ष मनोजकुमार सिंह ठाकुर, रमेश गौतम, शंकर कनोजिया आदि प्रयास कर रहे हैं। इस अवसर पर देव नारायण ओझा, भागीरथीबाबा, निगमानंद पुरी, महेश चैतन्य, जगन्नाथ पुरी प्रमुख रूप से उपस्थित थे। नित्य यज्ञ का समय सुबह 9 से 12 एवं दोपहर 2 से 5 बजे तक रहेगा। पूर्णाहूति 3 फरवरी को होगी।
1008 कमल से श्री गौतम विद्या मंत्र अनुष्ठान
मुनिसुव्रत जैन मंदिर, इतवारी में गुरुदेव प्रशमरतिविजय महाराज के सान्निध्य में श्री गौतम कथा के समापन पर श्री गौतम विद्या मंत्र अनुष्ठान का आयोजन किया गया। अनुष्ठान में 1008 बार गौतम विद्या मंत्र का उच्चारण करते हुए वासक्षेप, अक्षत एवं 1008 कमल से अर्चना की गई। अंत में क्षीरान्न से नैवेद्य पूजा हुई। गुरुदेव ने बताया कि श्री गौतम गुरु के चार धाम है। उनकी जन्मभूमि है नालंदा, दीक्षाभूमि है पावा पुरी , कैवल्य भूमि है गुणियाजी तीर्थ, निर्वाण भूमि है राजगृही - वैभार गिरि। एक ही यात्रा में जो चारों धाम की यात्रा कर लें वह बड़ा नसीबवाला है। गौतम गुरु ने बयालीस साल के दीक्षा जीवन में छठ के पारणे छठ का तप किया। उन्होंने बयालीस साल में दस हजार अस्सी उपवास किए थे। गौतम गुरु को चौसठ इंद्र, चौबीस महायक्ष महायक्षिणी, सरस्वती देवी, लक्ष्मी देवी एवं अन्य अगणित देवी-देवता वंदन आदर देते थे। उन्होंने में 50 हजार आत्माओं को केवल ज्ञान दिया था। प्रतिदिन तीन से अधिक व्यक्ति को केवलज्ञान देते थे। उन्होंने सिद्धचक्र महायंत्र, जग चिंतामणि स्तोत्र, पाक्षिक सूत्र, पंचविध सूरिमंत्र एवं महान द्वादशांगी सूत्रों की रचना की थी। जितने भी धर्म गुरु, परम गुरु, दादागुरु एवं महागुरु प्रचलित है उन सबके भीष्म पितामह हैं हमारे गौतम गुरु। अध्यात्म, योगसाधना, मंत्र-तंत्र-यंत्र विद्याओं के क्षेत्र में उनका नाम सर्वोपरि है।
Created On :   2 Feb 2020 1:32 PM IST