किसानों की आत्महत्या पर बाबुओं ने बनाई गलत रिपोर्ट

government servant told other reason in reports of farmers suicides
किसानों की आत्महत्या पर बाबुओं ने बनाई गलत रिपोर्ट
किसानों की आत्महत्या पर बाबुओं ने बनाई गलत रिपोर्ट

डिजिटल डेस्क,नागपुर। कर्ज, फसल नुकसान सहित विविध कारणों से आत्महत्या कर रहे किसानों के लिए सरकार से ज्यादा सरकारी बाबू घातक साबित हो रहे हैं। पटवारी और कांस्टेबल स्तर पर इन आत्महत्याओं की जांच रिपोर्ट में उटपटांग कारण दिए गए, जिससे किसान की आत्महत्या के बाद भी परिवारों को कोई राहत नहीं मिलती है। नागपुर जिले की बात करें, तो 2001 से अगस्त 2017 तक यहां 682 किसानों ने आत्महत्या की है। जांच के बाद सरकारी बाबुओं ने 424 आत्महत्याओं को मदद के लिए पात्र मानने से इनकार कर दिया है। किसी मामले में पारिवारिक कलह को जिम्मेदार ठहराया गया है, तो किसी में उसे शराबी या अन्य कारण बताए गए हैं। इन शिकायतों को वसंतराव नाईक शेती स्वावलंबन मिशन ने गंभीरता से लेते हुए सरकार से कुछ सिफारिशें की थी। इसे आधार बनाकर राज्य सरकार ने पटवारी या कांस्टेबल स्तर के कर्मचारी की रिपोर्ट को मानने से इनकार कर दिया है। किसान आत्महत्या की जांच उपजिलाधिकारी, पुलिस निरीक्षक या उनके समकक्ष अधिकारियों से करानी होगी। उसके बाद ही रिपोर्ट मान्य होगी।

एक सप्ताह में देनी होगी रिपोर्ट
उपजिलाधिकारी, पुलिस निरीक्षक या उनके समकक्ष अधिकारियों से किसान आत्महत्या मामले की जांच करने के निर्देश देते हुए सरकार ने जांच की समय-सीमा तय की है। एक सप्ताह में आत्महत्या की जांच रिपोर्ट सरकार को भेजने के लिए कहा गया है। न्याय सहायक वैज्ञानिक प्रयोगशाला को भी दो दिन में अपनी रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए हैं। जिसमें किसानों को तत्काल नुकसान भरपाई दिलाने की प्रक्रिया में सुधार करने का निर्णय लिया गया है।

तीन साल में बढ़ी आत्महत्या की घटनाएं
नागपुर जिले में 2001 से अगस्त 2017 तक 682 किसान आत्महत्या दर्ज की गई है। इसमें से 257 आत्महत्या को मदद के लिए पात्र माना गया है। इन्हें 2 करोड़ 57 लाख रुपए की मदद उपलब्ध कराई गई है। 424 आत्महत्याओं को विभिन्न कारणों से अपात्र घोषित किया गया है। फिलहाल एक मामला लंबित है, जिसकी जांच चल रही है। किसान आत्महत्या के मामले में 2014 से ज्यादा वृद्धि देखी जा रही है। 2014 में 61, 2015 में 55, 2016 में 66 और अगस्त 2017 तक 24 आत्महत्या दर्ज की गई है। इससे पहले 2011 में 36, 2012 में 28 और 2013 में 27 आत्महत्या सरकारी रिकार्ड में दर्ज हुई है। पिछले तीन सालों में फसल नुकसान का प्रमाण ज्यादा बताया गया है। 

जरूरतमंद किसानों को सहायता नहीं
हमने खुद गांवों में जाकर किसानों के हालातों का निरीक्षण किया है। जिसमें तलाठी और कांस्टेबल स्तर पर होने वाली जांच में त्रुटियां होने का खुलासा हुआ है। रिपोर्ट में सही बातों को नजरअंदाज कर कुछ भी उटपटांग कारण गिनाए जाते हैं, जिससे जरूरतमंद किसानों को सहायता नहीं मिल पाती है। इसलिए सरकार से नियमों में बदलाव और आत्महत्या की जांच उपजिलाधिकारी, पुलिस निरीक्षक स्तर के अधिकारी से कराने की सिफारिश की गई है, ताकि किसानों को न्याय मिल सके। 
 

Created On :   20 Sept 2017 5:43 PM IST

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