गुलाब को मिल रहे एक्सपोर्ट क्वालिटी के रेट, लॉक डाउन में हुए नुकसान की हो रही भरपाई

Gulab getting export quality, compensation for loss in lock down
गुलाब को मिल रहे एक्सपोर्ट क्वालिटी के रेट, लॉक डाउन में हुए नुकसान की हो रही भरपाई
गुलाब को मिल रहे एक्सपोर्ट क्वालिटी के रेट, लॉक डाउन में हुए नुकसान की हो रही भरपाई

डिजिटल डेस्क छिंदवाड़ा/पांढुर्ना। कहते है न सब्र का फल मीठा होता है और बुरे दिनों के बाद अच्छे दिन भी आते है। अपनी पुश्तैनी खेती के टे्रंड में बदलाव लाकर टॉप सिकरेट डच रोज (गुलाब) की मॉडर्न खेती करने वाले युवा किसान धीरज दुलीचंद घागरे और फूलों की खेती करने वाले उनके जैसे अन्य किसानों के लिए यह कहावतें सटीक साबित हो रही है। इन लोगों ने लॉक डाउन के दौरान मंदी की मार और नुकसान झेलते हुए डच रोज के पौधों की गुणवत्ता बनाए रखी और उनका नियमित रखरखाव किया। अब लॉक डाउन के बाद खुले मार्केट में इन्हें फूलों को एक्सपोर्ट क्वालिटी के रेट मिल रहे हैं, जिससे लॉक डाउन में हुए खर्चों और नुकसान की भरपाई होती नजर आ रही है।
चार सौ रुपए तक बिक रहा एक बंच

लॉक डाउन खुलने के बाद अनलॉक में एकाएक मार्केट तेज होने और फूलों के एक बंच (20 फूलों का पैकेट) को चार सौ रुपए के एक्टपोर्ट क्वालिटी के रेट मिलने से स्थिति में सुधार संभव हो सका है। अनलॉक के बाद जुलाई महीने की शुरूआत में रेट कम रहे और फूलों के एक बंच को 50 से 60 रुपए ही मिल पाए, पर नवंबर और दिसंबर में मार्केट में ऐसा सुधार आया कि लॉक डाउन के नुकसान की काफी हद तक भरपाई होने लगी है। धीरज के अनुसार सामान्य दिनों में एक बंच को सौ से डेढ़ सौ रुपए मिलते रहे है, वहीं सीजन के दौरान यह रेट दो सौ रुपए तक बढ़ते रहे। पर बीते अक्टूबर-नवंबर और अब दिसंबर महीने में जो सुधार आया, वह चौंकाने वाला रहा। एक बंच को चार सौ रुपए तक एक्सपोर्ट क्वालिटी के रेट मिल रहे हैं, जिससे लॉक डाउन में हुए नुकसान को कवर करने की ताकत मिली।
चार महीनों में आठ लाख का नुकसान
धीरज बताते हैं कि फरवरी महीने में वेलेंटाइन डे सीजन के दौरान फूल बेचे थे, इसके बाद शादियों के सीजन में अच्छी बिक्री की उम्मीद में पौधों की हार्वेस्टिंग की। पर मार्च महीने में 22 मार्च को जनता कफ्र्यू और फिर लॉक डाउन के कारण सब बंद हो गया। ऐसे में लगातार निकल रहे फूलों को तोड़कर नष्ट करने के अलावा कोई विकल्प नहीं रहा। वहीं पौधों को बनाए रखने के लिए उनकी हार्वेस्टिंग करना और फूलों की कटाई करते रहना भी जरूरी था। इसलिए मार्च महीने से लेकर लॉक डाउन के अप्रैल, मई और जून इन तीन महीनों में बगैर मुनाफे के पौधों के संवारते रहे। नियमित रखरखाव और दवाइयों का छिड़काव जारी रहा, वहीं पॉली हाउस में काम करने वाले कर्मचारियों को नियमित वेतन देते रहे। इस दौरान प्रतिमाह करीब दो लाख यानि लॉक डाउन के बंद के दौरान करीब आठ लाख रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है।
कईयों ने फूल हटाकर उगा दी सब्जी
पॉली हाउस लगाकर फूलों की खेती करने वाले कई किसानों ने लॉक डाउन में प्रतिमाह करीब दो लाख रुपए तक के नुकसान को देखते हुए फूलों के पौधे हटाकर सब्जियों की खेती कर दी और अपने खर्चों का मेंटेनेंस बनाए रखा। पर धीरज लॉक डाउन में भी अपने इरादों पर डटे रहे और खर्चों के बावजूद पौधों को संवारने में लगे रहे, जिसके अब सुखद परिणाम नजर आ रहे हैं। लॉक डाउन और अनलॉक में भी परिवहन के साधन उपलब्ध नहीं हो पाने के बावजूद धीरज ने अपने निजी वाहन से फूलों को मार्केट तक पहुंचाया। यही मेहनत, लगन और मजबूत ईरादों से उन्होंने अपने आप को साबित कर दिखाया।

Created On :   21 Dec 2020 5:31 PM IST

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