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‘सभना जिया का एक दाता’,सो मैं विसर नई जाई’, गुरुनानकजी ने दिया सर्वधर्म समभाव का संदेश
डिजिटल डेस्क, नागपुर। सर्वधर्म समभाव का संदेश देने वाले गुरु नानकदेव के जन्मदिन की खुशी में यह शबद (भजन) गाया जाता है-सतगुरु नानक प्रगटया, मिटी धुंध जग चाणन हो’। उनकी नजरों में सभी मनुष्य समान थे। उन्होंने धर्म-संप्रदाय, जात-पात और ऊंच-नीच को कोई स्थान नहीं दिया। उनका कहना था-‘सभना जिया का एक दाता, सो मैं विसर नई जाई’। सिख पंथ में 10 गुरु हैं और गुरु ग्रंथ साहब को ग्यारहवें गुरु का दर्जा दिया गया है। गुरु गोविंद सिंह ने आदेश दिया है-‘आज्ञा भई अकाल की तबै चलायो पंथ, सब सिक्खन को हुकुम है गुरु मान्यो ग्रंथ’।
दिया शांति का संदेश
दिल्ली सल्तनत के अंतिम सुल्तान लोदी वंश के इब्राहिम लोदी की सल्तनत में दौलत खान लाहौर का सूबेदार था। दौलत खान ने विद्रोह करते हुए लोदी को सबक सिखाने के लिए बाबर को भारत बुलाया। बाबर मंगोलिया के रास्ते समरकंद से भारत आया। इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच पानीपत का युद्ध हुआ जिसमें लोदी हार गया। दौलत खान ने बाबर को युद्ध के लिए बुलाया, लेकिन दांव उल्टा पड़ गया। यहां की भूमि और फल पसंद आए, विशेषकर तरबूज। वह यहीं बस गया। इसी दौरान युद्ध के मैदान से गुरु नानकदेव अपने दो शिष्यों बाला और मर्दाना के साथ गुजरे। युद्ध के मैदान में पड़े घायल लोगों की कराह और लाशों के ढेर देखकर वे द्रवित हो गए। आंखों से आंसू बहने लगे। गुरु नानकदेव युद्धस्थल पर ही बैठ गए और भजन गाने लगे-‘एति पीर पई कुरलावे’ हे परमपिता, तुझे मानने वाले लोग रो रहे हैं। तुझे दर्द नहीं हुआ। इनके कराहने की आवाज सुनाई नहीं दी। बाबर ने अपनी सल्तनत में संगीत पर पूर्णत: पाबंदी लगा दी थी। गाने की आवाज आने पर बाबर ने अपने दरबार के लोगों को भेजा कि देखो, कौन गा रहा है। बाबर के दरबारी वापस लौटे और बताया कि कोई फकीर रो रहा है। उनकी आंखें बंद हैं, लेकिन आंखों से आंसू बह रहे हैं। उस समय शासक संत-फकीरों का बहुत सम्मान करते थे। बाबर खुद रणभूमि पहुंचा और गुरु नाननकदेव से पूछा कि बाबा, आपको क्या चाहिए? आप क्यों रो रहे हैं? गुरु नानकदेव ने बाबर से कहा कि लड़ाई बंद कर दो। इस प्रकार हिंसा का प्रतिकार करते हुए शांति का संदेश दिया।
बेटों के बजाय शिष्य अंगद को चुना वारिस
जीवन के उत्तरर्द्ध में गुरु नानकदेव को अपना वारिस चुनना था। उनके दो पुत्र थे- श्रीचंद और लख्मीचंद। श्रीचंद के पूरी दुनिया में उदासी मठ हैं। गुरु नानकदेव जी का अंगद नाम का शिष्य था। गुरुजी ने अपने दोनों बेटों के बजाय शिष्य अंगद को अपना वारिस चुना। इससे घर के लोग नाराज हुए, लेकिन गुरु नानकदेव जी का कहना था कि बेटे गद्दी संभालने के लिए अभी तैयार नहीं हुए हैं। अंगद गुरु के पद के योग्य है। अंतत: अंगददेव गुरु की गद्दी पर बैठे।
Created On :   12 Nov 2019 1:49 PM IST