बांबे हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा, नेताओं की सुरक्षा के लिए क्यों खर्च हो जनता का पैसा?

HC asked what need spend money of taxpayers on security of leaders
बांबे हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा, नेताओं की सुरक्षा के लिए क्यों खर्च हो जनता का पैसा?
बांबे हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा, नेताओं की सुरक्षा के लिए क्यों खर्च हो जनता का पैसा?

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार को करदताओं के पैसे नेताओं की सुरक्षा मंन खर्च करने क्या जरुरत है? चीफ जस्टिस मंजूला चिल्लूर और जस्टिस एमएस सोनक की खंडपीठ ने कहा कि यदि नेताओं को पुलिस सुरक्षा की जरुरत है, तो वे अपनी पार्टी की निधि से सुरक्षा शुल्क का भुगतान करें। राज्य सरकार को राजनेताओं को सुरक्षा देने के लिए जनता के पैसे खर्च करने की क्या जरुरत है। हमे महसूस होता है कि वे अपनी पार्टी की निधि से सुरक्षा शुल्क का भुगतान कर सकते हैं। खंडपीठ ने सरकार की ओर से निजी लोगों को सुरक्षा देने को लेकर बनाई गई प्रस्तावित नीति पर गौर करने के बाद मौखिक रुप से टिप्पणी की। सरकार ने नई सुरक्षा नीति में नए प्रावधान जोड़े हैं। खंडपीठ के सामने पेशे से वकील शनि पुनमिया की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में वीआईपी लोगों के बकाया सुरक्षा शुल्क की वसूली का निर्देश देने की मांग की गई है। इनमें नेता, फिल्म व उद्योग जगत से जुड़े लोगों का समावेश है।

हर 3 महीने में पुलिस सुरक्षा का हो मूल्यांकन
सुनवाई के दौरान खंडपीठ को आश्वस्त किया गया कि लोगों को दी जाने वाली पुलिस सुरक्षा का हर तीन महीने के अंतराल पर मूल्यांकन किया जाएगा। ताकि यह पता लगाया जा सके कि जिस वजह से उन्हें सुरक्षा दी गई थी वह अभी भी कायम है अथवा नहीं। खंडपीठ ने कहा कि सरकार सुनिश्चित करे कि जिन पुलिसकर्मियों को निजी लोगों के अंगरक्षक के रुप में तैनात किया गया है, वे अनिश्चितकाल के लिए उनकी सेवा में न रहें। उन्हें कुछ समय के बाद दूसरी ड्यूटी भी सौंपी जाए। क्योंकि लंबे समय तक एक पुलिसकर्मी को किसी की सेवा में लगाना न तो पुलिसवालों के लिए अच्छा है और न ही उस व्यक्ति के हित में है, जिसकी सुरक्षा में पुलिसकर्मी को तैनात किया गया है। खंडपीठ ने पाया कि एक हजार पुलिसवालों को निजी लोगों की सुरक्षा में लगाना उनके प्रतिभा व कौशल की बर्बादी है। कम से कम 6 महीने के बाद निजी व्यक्ति की सुरक्षा में तैनात पुलिसकर्मियों को दूसरी ड्यूटी में भेजा जाए। 

इंदिरा को दी गई थी बाडीगार्ड बदलने की सलाह  

खंडपीठ ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का उदाहरण देते हुए कहा कि इंदिरा गांधी को बाडीगार्ड बदलने की सलाह दी गई थी। लेकिन उन्होंने अपना बाडीगार्ड नहीं बदला। खंडपीठ ने कहा कि सरकार उन पुलिसकर्मियों की सेहत पर भी नजर रखे, जिन्हें बाडीगार्ड के रुप में तैनात किया गया है।

Created On :   29 Nov 2017 1:50 PM GMT

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