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हाईकोर्ट : अडानी समूह को अंतरिम राहत देने से इंकार, शिक्षक का आवेदन खारिज
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने मुंबई एयरपोर्ट में हिस्सेदारी को लेकर जारी लड़ाई के मामले में अडानी समूह को अंतरिम राहत देने से इंकार कर दिया है। अडानी समूह ने हाईकोर्ट में दावा दायर कर दक्षिण अफ्रिका के फर्म बिडवेस्ट को अपनी हिस्सेदारी जीवीके समूह को बेचने पर रोक लगाने का निर्देश जारी करने का आग्रह किया था। सितंबर महीने में दायर किए गए इस दावे में अडानी समूह ने कहा था कि उसके व बिडवेस्ट के बीच 13.5 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेचने को लेकर एक अनुबंध हुआ था। इसलिए बिडवेस्ट को इस अनुबंध का पालन करने के लिए कहा जाए। मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी जीवीके की है। पहले इस विषय पर अर्बीट्रेशन ट्रिब्यूनल पर सुनवाई हुई थी। ट्रिब्यूनल ने हिस्सेदारी खरीदने को लेकर जीवीके को अवसर दिया था लेकिन जीवीके निर्धारित समय पर पैसे जमा नहीं कर पाया। इसलिए बिडवेस्ट अपनी अपनी हिस्सेदारी किसी भी तीसरे शख्स को बेचने के लिए स्वतंत्र है। न्यायमूर्ति एके मेनन के सामने अडानी समूह की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता दरायस खंबाटा ने कहा कि बिडवेस्ट को तीसरे व्यक्ति को अपनी हिस्सेदारी बेचने से रोका जाए। वह सिर्फ मेरे मुवक्किल को ही अपनी हिस्सेदारी बेचे। लेकिन न्यायमूर्ति मेनन ने इस मामले में बुधवार को अंडानी समूह के पक्ष में अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया। हालांकि अडानी समूह की वकील ने न्यायमूर्ति के सामने कहा कि मेरे मुवक्किल बिडवेस्ट की हिस्सेदारी की 1 हजार 248 करोड़ रुपए जमा करने को तैयार है।
नौकरी चली जाती इसलिए सजा पर नहीं लगाई रोक
वहीं आपराधिक मामले में दोषी पाए जाने के बाद नौकरी चली जाएगी अथवा पदोन्नति रुक जाएगी। यह दोषी को सुनाई गई सजा पर रोक लगाने का आधार नहीं हो सकता है। सिर्फ अपवादजनक स्थित में ही सजा पर रोक लगाई जा सकती है। बांबे हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में दोषी पाए गए एक शिक्षक के आवेदन को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है। सोलापुर के शिक्षक एसएम बिराजदार को हत्या के मामले में निचली अदालत ने दोषी ठहराया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। सजा सुनाए जाने के बाद स्कूल प्रबंधन ने बिराजदार को नौकरी से बर्खास्त कर दिया था। लिहाजा बिराजदार ने सजा पर रोक लगाने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में आवेदन दायर किया था। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ के सामने बिराजदार के वकील ने दावा किया कि मेरे मुवक्किल की अपील को विचारार्थ मंजूर कर लिया है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने मेरे मुवक्किल को जमानत पर रिहा कर दिया है। इसलिए मेरे मुवक्किल को सुनाई गई सजा के आदेश पर रोक लगाई जाए। क्योंकि नौकरी जाने से मेरे मुवक्किल की जीविका का साधन चला जाएगा। सजा के खिलाफ अपील पर सुनवाई के बाद मेरे मुवक्किल के बरी होने की भी प्रबल संभावना है।
वहीं सरकारी वकील ने कहा कि मार्च 2018 को कोर्ट का फैसला आने के बाद स्कूल प्रबंधन ने आवेदनकर्ता (बिराजादार) को नौकरी से निकाल दिया है। सरकारी वकील ने बिराजदार को राहत दिए जाने का विरोध किया। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का जिक्र किया। जिसमें कहा गया था कि जब तक आरोपी अपील में सुनवाई के बाद बेगुनाह बरी नहीं हो जाता, तब तक दोषी पाए जाने के बाद सजा पर रोक लगाना सही नहीं है। क्योंकि हत्या के मामले में आरोपी किसी को उसके जीवन से वंचित करता है। इसलिए सजा पर रोक लगाने को लेकर इस तर्क को नहीं स्वीकार किया जा सकता है कि सजा पर रोक नहीं लगी तो आवेदनकर्ता अपनी जीविका से वंचित हो जाएगा। खंडपीठ ने कहा कि सिर्फ अपवादजनक परिस्थितियों में ही सजा पर रोक लगाने का प्रावधान है। दोषी पाए जाने के बाद नौकरी जाना व पदोन्नति रुक जाना सजा पर रोक लगाने के लिए उचित कारण नहीं हो सकता। इसलिए सजा पर रोक लगाने के आवेदन को खारिज किया जाता है।
Created On :   6 Nov 2019 6:40 PM IST