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हाईकोर्ट : सरकार से पूछा - सबके लिए कब से चलेगी लोकल ट्रेन, दिव्यांगो की ऑनलाइन शिक्षा की गुणवत्ता जांचे अधिकारी

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से जानना चाहा है कि वह कोरोना के प्रकोप के मद्देनजर लोकल ट्रेन की सेवा को कब तक सीमित रखेगी। यह कब तक सबके के लिए चलेगा, क्योंकि अब हमें इस वायरस के साथ ही जीना पड़ेगा। 6 माह का समय बीत चुका है। इसलिए सरकार बताए कि कब तक लोकल ट्रेन की सेवा को सीमित रखा जाएगा? मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने यह बात गुरुवार को वकीलों की ओर से ट्रेन में सफर करने की अनुमति दिए जाने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान कही। इससे पहले राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुम्भकोणी ने कहा कि अभी भी कोरोना की स्थिति में सुधार नहीं हुआ हैं। ऐसे में यदि लोकल ट्रेन सेवा को सबके लिए खोल दिया गया तो संक्रमण का विस्फोट हो सकता है। अभी भले ही सीमित लोग ट्रेन में चढ़ रहे है फिर भी भीड़ हो रही है। इस पर खंडपीठ ने कहा कि कोर्ट में प्रत्यक्ष सुनवाई शुरु हो गई है। हम सभी वकीलो को ट्रेन से आने की अनुमति देने को नहीं कह रहे हैं लेकिन जिन वकीलो को प्रत्यक्ष सुनवाई के लिए आना है कम से कम उन्हें डेली पास जारी करने पर विचार किया जाए।
दिव्यांगो की ऑनलाइन शिक्षा की गुणवत्ता जांचे अधिकारी
बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य भर के जिला समाज कल्याण प्राधिकरण से जुड़े अधिकारियों द्वारा दिव्यांगों को दी जा रही ऑनलाइन शिक्षा का मूल्यांकन करने का निर्देश दिया है। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने एक गैर सरकारी संस्था की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद यह निर्देश दिया। खंडपीठ ने कहा कि समाज कल्याण अधिकारी अगले दो सप्ताह के भीतर ऐसे केंद्रों का अचानक दौरा करें जहां दिव्यांग विद्यार्थियों को ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही हैं। वे देखे की किस तरह से विद्यार्थियों को शिक्षा दी जा रही है और उसमें क्या कमी है। खंडपीठ ने इन अधिकारियों को अपनी रिपोर्ट सामाजिक न्याय विभाग के सयुक्त सचिव के पास जमा करने को कहा है। रिपोर्ट मिलने के बाद सयुक्त सचिव पूरे ब्यौरे के साथ कोर्ट में हलफनामा दायर करें। खंडपीठ ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा को लेकर सभी संबंधित लोग प्रभावी कदम उठाए। इससे पहले याचिकाकर्ता के वकील उदय वारूनजेकर ने कहा कि 70 प्रतिशत दिव्यांग बच्चे ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। जहां कमजोर इंटरनेट के कारण उन्हें पढ़ाई में दिक्कत आ रही है। इसके अलावा शिक्षकों को ऑनलाइन शिक्षा के लिए सही ढंग से प्रशिक्षित नहीं किया गया है। जबकि राज्य सरकार के वकील ने खंडपीठ के सामने कहा है कि मोबाइल एप व दीक्षा प्लेटफॉर्म पर विद्यार्थियों को ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है। सरकारी वकील ने दावा किया कि सरकार इस मामले को लेकर प्रभावी कदम उठा रही है। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने सभी जिलों के समाज कल्याण अधिकारी को ऑनलाइन शिक्षा का मूल्यांकन करने का निर्देश दिया। खंडपीठ ने इस मामले में केन्द्र सरकार व नेशनल कॉउन्सिल ऑफ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग को भी हलफनामा दायर करने को कहा। खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद रखी है।
Created On :   10 Sept 2020 7:29 PM IST