हाईकोर्ट ने कहा- टीबी का इलाज करने वाली दो दवाओं के गैर व्यवसायिक इस्तेमाल को लेकर विचार करे केंद्र

High court instruct to center, consider on non-commercial use of two drugs to treat TB
हाईकोर्ट ने कहा- टीबी का इलाज करने वाली दो दवाओं के गैर व्यवसायिक इस्तेमाल को लेकर विचार करे केंद्र
हाईकोर्ट ने कहा- टीबी का इलाज करने वाली दो दवाओं के गैर व्यवसायिक इस्तेमाल को लेकर विचार करे केंद्र

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट क्षय रोग (टीबी) के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाली दो दवाओं के लिए गैर व्यावसायिक लाइसेंस जारी करने से जुड़े निवेदन पर केंद्र सरकार को विचार करना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ ने सरकार को 28 अप्रैल 2021 तक इस निवेदन पर निर्णय लेने को कहा है। इस विषय पर दायर जनहित याचिका में कहा गया है बेडक्यूलाइन व डेलामंड नाम की दो दवाई टीवी के मरीज के लिए जीवन रक्षक दवाइयां हैं। लेकिन आसानी से मरीजों तक ये दवाएं न पहुंच पाने के कारण उनकी मौत हो जाती है। इसलिए इन दवाओं के लिए गैर व्यवसायिक लाइसेंस जारी किया जाए। जिससे बड़े पैमाने पर ये दवाएं सस्ते दाम में उपलब्ध हो सके। अधिवक्ता आनंद ग्रोवर ने याचिकाकर्ता की ओर से खंडपीठ के सामने पक्ष रखा। 

नागपुर हाईकोर्ट में सड़ी सुपारी तस्करी कांड की सुनवाई अज्ञात के खिलाफ एफआईआर

उधर नागपुर में बहुचर्चित सड़ी सुपारी तस्करी प्रकरण में सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (सीबीआई) ने अपनी कार्य प्रगति रिपोर्ट हाईकोर्ट में प्रस्तुत की है। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने 25 फरवरी को सीबीआई को आरोपियों पर आपराधिक मामले दर्ज करके जांच आगे बढ़ाने के आदेश दिए थे। इसके बाद बुधवार को हुई सुनवाई में सीबीआई ने कोर्ट में शपथ-पत्र दिया कि उन्होंने इस मामले में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादवि 120-बी, 420, 467 व अन्य के तहत एफआईआर दर्ज की है। न्यायालयीन मित्र एड. आनंद परचुरे ने इस पर आपत्ति की। उन्होंने कहा कि डीआरआई (डायरोक्ट्रेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस) ने शपथ-पत्र में स्पष्ट रूप से मेसर्स एसए इंटरप्राइज मुंबई, प्रकाश गोयल नागपुर, मोहम्मद रजा अब्दुल घनी, मेसर्स सिल्वर एक्सपोर्ट मुंबई, गुलाम फारुख नूरानी और दीपक साधवानी का नाम लिया है। ऐसे में सीबीआई द्वारा अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करना समझ से परे है। इस पर हाईकोर्ट ने सीबीआई को इन आरोपियों के नाम भी एफआईआर में शामिल करने के आदेश दिए हैं।  बीती सुनवाई में हाईकोर्ट ने सीबीआई को जांच आगे बढ़ाकर आरोपियों पर मामला दर्ज करने के आदेश हाईकोर्ट ने दिए थे। बता दें कि 10 अक्टूबर 2018 को हाईकोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच सौंपी थी। तब से लेकर अब तक सीबीआई ने कोई मामला दर्ज नहीं किया। कोर्ट में सीबीआई की दलील थी कि उन्हें जांच सौंपने का विरोध करती डीआरआई (डायरोक्ट्रेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस) की अर्जी कोर्ट में विचाराधीन होने के कारण सीबीआई ने मामले की जांच आगे नहीं बढ़ाई। लेकिन हाईकोर्ट ने साफ कहा कि अर्जी विचाराधीन होने का अर्थ सीबीआई का जांच रोकना नहीं हो सकता। मामले मंे एड. आनंद परचुरे न्यायालयीन मित्र हैं। याचिकाकर्ता मेहबूब चिंथामणवाला की ओर से एड.रसपाल सिंह रेणु व सीबीआई की ओर से एड.मुग्धा चांदुरकर ने पक्ष रखा।

गर्भपात की सलाह देना दबाव डालना नहीं है, ठोस सबूत हो तो ही एफआईआर मान्य

इसके अलावा बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अपने हालिया आदेश में स्पष्ट किया है कि युवती को गर्भपात की सलाह देना उसे गर्भपात के लिए मजबूर करने जैसा नहीं है। यदि आरोपी को मामले में सजा दिलानी है, तो उसके खिलाफ ठोस सबूत और अन्य आधार होना चाहिए। बगैर ठोस सबूत दिए पीड़िता का यह आरोप कि संबंधित व्यक्ति ने उसे गर्भपात की सलाह दी है, फिजूल माना जाएगा। इस निरीक्षण के साथ न्या. सुनील शुक्रे व न्या. अविनाश घारोटे की खंडपीठ ने यवतमाल के नेर तहसील निवासी सईद इदरीस (62) और सईद सबीर (55) के खिलाफ वणी पुलिस थाने में दर्ज एफआईआर खारिज करने के आदेश जारी किए। एक युवती ने अपने प्रेमी सईद शहजाद पर शादी का झांसा देकर दुष्कर्म के आरोप लगाए थे। इस मामले में पुलिस ने जांच के बाद दोनों रिश्तेदारों को भी आरोपी बनाया। पीड़िता की शिकायत थी कि प्रेम संबंध के चलते उसे गर्भ ठहर गया था। ऐसे में उसका प्रेमी और याचिकाकर्ता उस पर गर्भपात का दबाव बना रहे थे। शिकायत में पीड़िता का आरोप है कि शहजाद के चाचा सईद शबीर ने भी उसे फोन करके गर्भपात की सलाह दी थी। यह भी लालच दिया था कि गर्भपात के बाद वे खुद दोनों की शादी करा देंगे। हाईकोर्ट ने माना कि दोनों याचिकाकर्ताओं का दुराचार के इस मामले से कोई संबंध नजर नहीं आता। पीड़िता ने मूल एफआईआर में इस तरह के आरोप नहीं लगाए। बाद में जांच के दौरान उसने इस प्रकार के बयान दिए। ऐसे में इस मामले में याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच आगे बढ़ाना ठीक नहीं है। मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एड.मीर नगमान अली ने पक्ष रखा। 
 

Created On :   11 March 2021 1:20 PM IST

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