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हाईकोर्ट : दस साल से जेल में बंद कैदी के नाबालिग होने के दावे की जांच का निर्देश
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने बाल न्याय बोर्ड को दस साल से जेल में बंद एक कैदी के उस दावे की जांच करने का निर्देश दिया है जिसमें उसने कहा है कि जिस अपराध में उसे दोषी पाया गया है। जब वह घटित हुआ था तो वह नाबालिग था। निचली अदालत ने हत्या से जुड़े इस मामले में आरोपी अरविंद कुमार शाहु को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया था। इसके साथ ही उसे कोर्ट ने मई 2010 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। 27 वर्षीय शाहु अक्टूबर 2009 से हिरासत में है। सजा के खिलाफ शाहु की ओर से की गई अपील को हाईकोर्ट ने भी खारिज कर दिया है। इस बीच शाहु साल 2017 में पैरोल पर छूटने के बाद अपने गांव गया। जहां उसे अपने स्कूल से जुड़े कई दस्तावेज मिले जिनसे यह स्पष्ट हुआ कि उसकी जन्म तारीख सात जुलाई 1992 है। जबकि जिस अफराध में उसे दोषी पाया गया है वह 6 अक्टूबर 2009 को हुआ है। इस तरह से अपराध के समय उसकी उम्र 17 साल थी।न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील मानस गवानकर ने कहा कि अपराध के समय उनके मुवक्किल नाबालिग थे। इसलिए उन्हें या तो तुंरत जेल से रिहा किया जाए या फिर बाल न्याय बोर्ड को मेरे मुवक्किल के दावे की जांच करने का निर्देश दिया जाए। इस दौरान उन्होंने अपने मुवक्किल के स्कूल से जुड़े कई व शिक्षा अधिकारी की ओर से जारी दस्तावेज खंडपीठ के सामने पेश किए। उन्होंने दावा किया कि बाल न्याय कानून के प्रावधानों के तहत नाबालिग को तीन साल से अधिक की सजा नहीं हो सकती है। इन दलीलों को सुनने व मामले से जुड़े दस्तावेजों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने बाल न्याय बोर्ड मुंबई को याचिकाकर्ता के दावे की जांच 14 सप्ताह में पूरा करने का निर्देश दिया। और मामले की सुनवाई स्थगित कर दी।
प्रबंधन पाठ्यक्रम में प्रवेश से जुड़े परिपत्र पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक
बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस परिपत्र पर रोक लगा दी है जिसके तहत एमबीए व एमएमएस पाठ्यक्रम में उन्ही छात्रों को प्रवेश देने की बात कही गई थी जिन्होंने महाराषट्र स्टेट कामन इंटरेंस टेस्ट(एमएस सीईटी),सीमैट व कैट की परीक्षा पास की है। हाईकोर्ट ने सरकार के 16 मार्च 2020 को इस परिपत्र को मनमानीपूर्ण बताया है। राज्य सरकार के इस परिपत्र के चलते एटीएमए,एक्सएटी, जीमैट की परीक्षा पास करनेवाले विद्यार्थी प्रबंधन के पाठ्यक्रम से वंचित हो गए थे। सरकार के इस परिपत्र के खिलाफ तीन विद्यार्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में परिपत्र को समानता के अधिकार के विपरीत बताया गया था। याचिका पर गौर करने के बाद मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की खंडपीठ ने कहा कि एडमिशन को लेकर सरकार परिपत्र तर्कसंगत होना चाहिए। यदि सरकार को एडमिशन से जुड़ी पात्रता के नियम में परिवर्तन करना था तो इसकी जानकारी अचानक देने की बजाय छात्रों को काफी पहले देनी चाहिए थी। खंडपीठ ने कहा कि सरकार अपना यह परिपत्र अगले शैक्षणिक सत्र यानी साल 2021-22 से लागू करे। इस तरह से खंडपीठ ने एटीएमए,एक्सएटी, जीमैट की परिक्षाए देनेवाले विद्यार्थियों को बड़ी राहत दी है। इस दौरान सीईटी प्रकोष्ठ की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता रुई राड्रिग्स ने कहा कि सरकार का परिपत्र न्यायसंगत है लेकिन प्रवेश परिक्षाए इस परिपत्र से पहले हो गई थी।
Created On :   14 Dec 2020 8:22 PM IST