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बॉम्बे हाई कोर्ट: अदालतें कानून में त्रुटियों को पूर्वव्यापी प्रभाव से सुधारने का आदेश नहीं दे सकती हैं

- याचिका में वित्त अधिनियम 2022 की तीसरी अनुसूची से सीमा शुल्क टैरिफ का अध्याय 29
- उप-शीर्षक 293359 के तहत टैरिफ मदों को हटाने को दी गई थी चुनौती
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि अदालतें विधायिका को अधिनियमित कानूनों में कथित लिपिक त्रुटियों को सुधारने या विधायी परिवर्तनों को पूर्वव्यापी प्रभाव देने का निर्देश जारी नहीं कर सकतीं है। भले ही सीमा शुल्क में किसी परिवर्तन को सुधारात्मक या स्पष्टीकरणात्मक माना जाता है, ऐसे परिवर्तनों को पूर्वव्यापी प्रभाव देना पूरी तरह से विधायी क्षेत्राधिकार में आता है।
न्यायमूर्ति एम.एस.सोनक और न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन की पीठ कंपनी आरती ड्रग्स लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें वित्त अधिनियम 2022 की तीसरी अनुसूची से सीमा शुल्क टैरिफ के अध्याय 29 के उप-शीर्षक 293359 के तहत टैरिफ मदों को हटाने को चुनौती दी गई थी। याचिका में 1 मई 2022 से मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) दर को 10 फीसदी से संशोधित कर 7.5 फीसदी करने का निर्देश देने का अनुरोध दिया गया था। हालांकि टैरिफ विसंगति को बाद में भविष्य के लिए ठीक कर दिया गया था। याचिकाकर्ता की दलील दी कि यह चूक एक लिपिकीय त्रुटि थी और इसे पूर्वव्यापी रूप से ठीक किया जाना चाहिए।
पीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि यह न्यायालय का काम नहीं है कि वह याचिकाकर्ता द्वारा विधायी दस्तावेज में वर्णित त्रुटियों, स्पष्ट त्रुटियों या लिपिक त्रुटियों पर निर्णय दे। न्यायालय विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानूनों की व्याख्या करते हैं। यदि कोई मामला बनता है, तो वे किसी कानून को रद्द कर सकते हैं। यदि वह संविधान के विरुद्ध है, लेकिन वे विधानमंडल को कोई कानून बनाने या ऐसे बनाए गए कानून में जो त्रुटियां उनके अनुसार हो सकती हैं।
Created On :   14 July 2025 9:54 PM IST