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बॉम्बे हाई कोर्ट: नाबालिग से रेप का दोषी 7 साल बाद बरी, पुणे की मुला-मुठा नदी कायाकल्प परियोजना का रास्ता साफ

- अदालत से युवक को तकनीकी सबूत के अभाव में संदेह का मिला लाभ
- अदालत ने परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई और पुनः रोपण करने पर रोक लगाने से किया इनकार
Mumbai News. बॉम्बे हाई कोर्ट ने नाबालिग से दुराचार को दोषी युवक को 7 साल बाद सजा से बरी कर दिया। अदालत से युवक को तकनीकी सबूत के अभाव में संदेह का लाभ मिला। अदालत ने कहा कि यद्यपि कुछ साक्ष्य हैं, जो अपराध में युवक की संलिप्तता को दर्शाते हैं, फिर भी रिकॉर्ड पर मौजूद संपूर्ण साक्ष्य पर विचार करने के बाद वह संदेह के लाभ का हकदार है। न्यायमूर्ति माधव जामदार की एकल पीठ ने माना कि पीड़िता की मां वारदात के समय अपने पैतृक गांव गई थी और उसे व्यक्तिगत रूप से इसकी कोई जानकारी नहीं है। एफआईआर इसलिए दर्ज की गई, क्योंकि पीड़िता को उल्टी होने लगी थी। मां ने मेडिकल स्टोर में उपलब्ध मेडिकल किट से गर्भावस्था परीक्षण करवाया और परीक्षण सकारात्मक आने पर एफआईआर दर्ज की गई। यह भी ध्यान देने योग्य है कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में पीड़िता ने केवल यह कहा है कि एक लड़के ने उसका यौन उत्पीड़न किया है। इसके बाद उस बयान के अंत में उसने कहा है कि उस लड़के का नाम शमशान या ऐसा ही कुछ था। पीठ ने कहा कि पीड़िता की मां द्वारा दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि उस इमारत में रहने वाले लोगों के नाम किस्मत, शमीम, शमशेर, समसुन और तरुण सावरा हैं। इस प्रकार शमीम, समशान और समसुन तीनों नामों में समानता है। गर्भावस्था मुश्किल से दो महीने की थी और हड्डियां विकसित नहीं हुई थीं। इसलिए भ्रूण से डीएनए नहीं निकाला जा सका। भ्रूण की मिलान पिता यानी सैमसंग सवारा से नहीं किया जा सका। इससे यह साबित नहीं हुआ है कि अभियुक्त जैविक पिता है। इस प्रकार अभियोजन पक्ष के मामले पर संदेह है। लेबर कॉलोनी में 15 वर्षीय पीड़िता मां के साथ रहती थी। 6 जनवरी 2018 को जब पीड़िता की मां अपने पैतृक गांव गयी थी, तो वह पिता के साथ मुंबई में रह रही थी। जब उसकी मां पैत्तिक गांव से मुंबई आयी, तो उसने पाया कि पीड़िता को उल्टी हो रही है। मां ने उससे पूछताछ की, तो उसने बताया कि आरोपी उसकी इमारत में रहता था। उसने उसके साथ जबरन दुराचार किया।
बॉम्बे हाई कोर्ट से पुणे की मुला-मुठा नदी कायाकल्प परियोजना का रास्ता साफ
उधर बॉम्बे हाई कोर्ट से पुणे की मुला मुठा नदी कायाकल्प परियोजना का रास्ता साफ हो गया है। अदालत ने पुणे महानगरपालिका (पीएमसी) के वृक्ष प्राधिकरण द्वारा नदी कायाकल्प परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई और पुनः रोपण की दी अनुमति पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत ने पीएमसी के उस हलफनामे को स्वीकार किया, जिसमें परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई और पुनः रोपण साथ-साथ होने की बात कही गई। मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मर्ने की पीठ के समक्ष शाल्वी पवार की ओर से वरिष्ठ वकील गायत्री सिंह की दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की वकील गायत्री सिंह ने पीएमसी के वृक्ष प्राधिकरण के द्वारा नदी कायाकल्प परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई और पुनःरोपण की दी अनुमति पर रोक लगाने का अनुरोध किया। उन्होंने इसे महाराष्ट्र (शहरी क्षेत्र) के नियमों का उल्लंघन बताया। वृक्ष संरक्षण एवं परिक्षण अधिनियम 1975 के तहत यह भी अनुरोध किया गया कि पीएमसी के सहायक नगर आयुक्त द्वारा 6 दिसंबर 2024, 10 दिसंबर 2024 और 11 दिसंबर 2024 को पारित अनुमोदन को रद्द और निरस्त किया जाए। इसको लेकर पीएमसी के अधिकारी द्वारा पीठ के समक्ष हलफनामा दाखिल किया गया, जिसमें कहा कि मुला मुठा नदी कायाकल्प परियोजना के लिए पेड़ों की कटाई की अनुमति पर चरणबद्ध तरीके से विचार किया गया है। वृक्ष प्राधिकरण द्वारा नदी की लगभग 9 किलोमीटर लंबाई में कुल 1302 पेड़ों को काटने और 1843 पेड़ों को रोपने के लिए 6 दिसंबर 2024 और 24 फरवरी 2025 के बीच 6 अनुमतियां दी हैं। इन अनुमतियों में से 997 पेड़ों को काटने और 859 पेड़ों को रोपने का कार्य पूरा हो चुका है। आगे का कार्य प्रगति पर है। पेड़ों को काटने और रोपने के साथ-साथ नदी पुनरुद्धार परियोजना का कार्य भी चल रहा है। परियोजना के अंतर्गत पीएमसी ने अप्रैल 2025 तक 5100 पेड़ लगाए हैं। इसमें केवल 27 अप्रैल 2025 से 11 जुलाई 2025 तक 2,369 पेड़ लगाए गए हैं।पीठ ने पीएमसी के हलफनामा को स्वीकार करते हुए दिशा-निर्देश जारी किया कि वे (पीएमसी) यह सुनिश्चित करेंगे कि उन पेड़ों का उचित रखरखाव किया जाए, जिसे लगाया गया है। यदि विचाराधीन परियोजना के प्रयोजनों के लिए पेड़ों को काटने के लिए वृक्ष प्राधिकरण को कोई और प्रस्ताव दिया जाता है, तो याचिकाकर्ता को आपत्ति उठाने की स्वतंत्रता होगी।
Created On :   13 July 2025 9:39 PM IST