रेपिस्ट की सजा बरकरार, पुलिस कर्मी से बदतमीजी पर 25 लगा हजार रुपए का जुर्माना, परिवहन विभाग को भी नोटिस

High Court upheld seven years imprisonment of 33-year-old rapist
रेपिस्ट की सजा बरकरार, पुलिस कर्मी से बदतमीजी पर 25 लगा हजार रुपए का जुर्माना, परिवहन विभाग को भी नोटिस
रेपिस्ट की सजा बरकरार, पुलिस कर्मी से बदतमीजी पर 25 लगा हजार रुपए का जुर्माना, परिवहन विभाग को भी नोटिस

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने 13 साल की छात्रा के साथ दुष्कर्म करनेवाले एक 33 वर्षीय शख्स की सात साल के कारावास की सजा को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति रेवती ढेरे ने मामले में दोषी पाए गए आरोपी सुरेश बेहिलकर की अपील को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है। पुणे सत्र न्यायालय ने आरोपी को कारावास की सजा सुनाई थी। जिसके खिलाफ उसने हाईकोर्ट में अपील की थी। न्यायमूर्ति ने सुनवाई के दौरान आरोपी की उस दलील को भी अस्वीकार कर दिया कि छात्रा उससे प्रेम करती थी उसने उसके साथ दुष्कर्म नहीं किया है। न्यायमूर्ति ने कहा कि दुष्कर्म के मामले में नाबालिग की सहमति का कोई मतलब नहीं है। अभियोजन पक्ष के मुताबिक आरोपी पीडित छात्रा के घर के पड़ोस में रहता था। वह छात्रो का अपहरण करके उसे अहमदनगर स्थित एक लॉच में ले गया जहां उसने छात्रा को धमकाकर उसके साथ दुष्कर्म किया। इसलिए निचली अदालत ने आरोपी को सही सजा सुनाई है। वहीं आरोपी के वकील ने कहा कि मेरे मुवक्लि को इस मामले में फंसाया गया है। छात्रा घर से लपता थी। जबकि मेरे मुवक्किल ने छात्रा को उसके घर लाकर उसके पिता के हवाले किया है। इसके अलावा छात्रा मेरे मुवक्किल से प्रेम करती थी। इसलिए इस मामले में दुष्कर्म का आरोप निराधार है। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि आरोपी एक विवाहित शख्स है। पीड़िता छात्रा उसकी बेटी जैसी है। आरोपी ने पीड़ित के नाबालिग होने का फायदा उठाकर उसके साथ दुष्कर्म किया। मामले से जुड़ी मेडिकल रिपोर्ट छात्रा के साथ दुष्कर्म होने की बात को पुष्ट करती है। इसलिए हमे आरोपी को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा के फैसले में कोई खामी नजर नहीं आती है।  लिहाजा निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा जाता है। 


पुलिस कर्मी से गंदी भाषा में बात करने पर 25 हजार रुपए का जुर्माना

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने पुलिसकर्मी के साथ गंदी भाषा में बात करनेवाले एक छात्रा व उसके पिता पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। हाईकोर्ट ने जुर्माने की रकम पुलिस कल्याण निधि में जमा करने का निर्देश दिया है। इससे पहले हाईकोर्ट ने छात्रा व उसके पिता के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द कर दिया। छात्र व उसके पिता के खिलाफ पायधुनी पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 352,353 व 506 के तहत मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में  हाईकोर्ट ने अपने आदेश में साफ किया है कि गंदी भाषा में बातचीत करने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 506 के तहत आपराधिक अभित्रास का मामला नहीं बनता है। नो पार्किंग जोन में गाड़ी  खड़ी करने के चलते हुए विवाद के चलते छात्र व उसके पिता के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। जिसमें  छात्रा व उसके पिता पर पुलिसकर्मी के साथ गंदी भाषा में बातचीत करने का आरोप लगाया गया था। वहीं छात्र व उसके पिता ने भी पुलिसकर्मी के खिलाफ कोर्ट में शिकायत की थी। खुद के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द किए जाने की मांग को लेकर छात्र व उसके पिता ने हाईकोर्ट याचिका दायर की थी। याचिका में छात्र ने कहा था कि उसे विदेशी विश्वविद्यालय में इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम में प्रवेश मिल गया है। ऐसे में वह चाहता है कि उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द कर दिया जाए। मैं पुलिसकर्मी के खिलाफ दर्ज की गई शिकायत को वापस लेने के लिए राजी हूं। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति भारती डागरे की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान पुलिसकर्मी ने कहा कि यदि छात्र व उसके पिता के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द किया जाता है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है। इसे देखते हुए खंडपीठ ने छात्र और उसके पिता के खिलाफ दर्ज मामले को रद्द कर दिया। और उसे 25 हजार रुपए  मुंबई पुलिस कल्याण निधि में जमा करने का निर्देश दिया। 

परिवहन विभाग के प्रधान सचिव को हाईकोर्ट ने जारी किया कारण बताओ नोटिस

इसके अलावा बांबे हाईकोर्ट ने वाहनों को फिटनेस प्रमाणपत्र जारी करने के लिए क्षेत्रिय परिवहन कार्यालयों (आरटीओ) में ब्रेक टेस्टिंग ट्रैक का निर्माण न करने व परिवहन विभाग में रिक्त पदों को लेकर कड़ा रुख अपनाया है।  न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति एमएस सोनक की खंडपीठ ने इस मामले में सरकार के रुख पर नाराजगी जाहिर करते हुए परिवहन विभाग के प्रधान सचिव आशीष कुमार सिंह को कारण बताओं नोटिस जारी किया है। कारण बताओं नोटिस में खंडपीठ ने कहा है कि प्रधान सचिव हमे अगली सुनवाई के दौरान बताए कि अदालत के निर्देशों का पालन न करने के लिए उनके खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्रवाई क्यों न की जाए? 
सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने पाया कि अभी भी कई आरटीओ कार्यालयों में वाहनों के ब्रेक टेस्ट की जांच के लिए ट्रैक उपलब्ध नहीं है। परिवहन विभाग में वाहन निरीक्षक के 336 पद रिक्त है। इसके अलावा वाहनों के फिटनेस टेस्ट में लापरवही बरतने के आरोप में निलंबित किए गए 37 अधिकारियों को बिना जांच के दोबारा नौकरी में रख लिया गया है। 
सुनवाई के दौरान खंडपीठ को अदालत के कई निर्देशों का पालन न किए जाने की जानकारी  दी गई। इससे नाराज खंडपीठ ने परिवहन विभाग के सचिव को कारण बताओं नोटिस जारी किया। खंडपीठ ने कहा कि यदि प्रधान सचिव को महसूस होता है कि अदालत के निर्देशों का पालन न होने के लिए परिवहन विभाग के दूसरे अधिकारी जिम्मेदार है तो वे अपने हलफनामे में उन अधिकारियों का नाम लिखने के लिए स्वतंत्र है। कोर्ट उन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करेगी। खंडपीठ ने सामने समाजिक कार्यकर्ता श्रीकांत कर्वे की ओर से दायर जनहित याचिका पर दिए गए निर्देश के पालन होने के मुद्दे पर सुनवाई चल रही है। याचिका में श्री कर्वे ने मुख्य रुप से आरटीओ में वाहनों के फिटनेस प्रमाणपत्र जारी करने में बरती जा रही लापरवाही को उजागर किया था। इस याचिका पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 18 फरवरी 2016 को राज्य सरकार को कई निर्देश दिए थे। जिसमें टेस्टिंग ट्रैक का निर्माण करने,आरटीओ में रिक्त पदों को भरने व जरुरी सुविधाएं उपलब्ध कराने सहित अनेको निर्देश दिए थे। खंडपीठ ने फिलहाल इस मामले की सुनवाई 12 जून 2019 तक के लिए स्थगित कर दी है। 
 

Created On :   7 May 2019 12:59 PM GMT

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