समय पर कैसे पूरा होगा ड्रीम प्रोजेक्ट मेट्रो , बिजली पर ‘ब्रेक से अटका काम

How the Dream Project Metro 2019 will be completed on time ?
समय पर कैसे पूरा होगा ड्रीम प्रोजेक्ट मेट्रो , बिजली पर ‘ब्रेक से अटका काम
समय पर कैसे पूरा होगा ड्रीम प्रोजेक्ट मेट्रो , बिजली पर ‘ब्रेक से अटका काम

भूपेंद्र गणवीर, नागपुर। ड्रीम प्रोजेक्ट मेट्रो को 2019 तक पूरा करने के लिए कार्य स्पीड से किए जा रहे हैं, लेकिन मेट्रो को विद्युत आपूर्ति करने वाला प्रोजेक्ट ढाई साल से बंद रहने से कार्य समय पर पूरा होना संभव नहीं लग रहा है। बता दें कि हैदराबाद के ठेकेदार को ठेका दिया गया है, जिसका अता-पता नहीं है। 68 करोड़ रुपए का यह काम रुका हुआ है। इससे महापारेषण के अधिकारियों की नींद उड़ी हुई है। अधिकारियों ने ठेका रद्द करने की मंजूरी मांगी है।

बनाया जाना है उपकेंद्र
नागपुर मेट्रो को दो कॉरिडोर में विभाजित किया गया है। पहला पूर्व-पश्चिम और दूसरा उत्तर-दक्षिण है। मेट्रो के व्यवस्थापन ने 40 मेगावॉट बिजली आपूर्ति का प्रस्ताव भेजा था। उसके अनुसार मानकापुर से अप-डाउन दो लाइन मेट्रो स्टेशन तक (मॉरिस कॉलेज मैदान) डाल दी गई है। 20 किलोमीटर लंबी लाइन के लिए 300 करोड़ रुपए की लागत आई है। दूसरी दो लाइन इमामवाड़ा उपकेंद्र से मॉरिस कॉलेज तक डालना है। यह अंतर दो किलोमीटर का है। कंपाउंड के साथ इसका खर्च 48 करोड़ रुपए है। रेलवे की बिजली सप्लाई के लिए एक उपकेद्र का निर्माण करना है, जिस पर 19.1 करोड़ रुपए खर्च करने हैं।

यह काम हैदराबाद की जी. के. इलेक्ट्रिकल कंपनी को दिया गया है। इस कंपनी ने अब तक काम की शुरुआत भी नहीं की है। एक तरफ लाइन में समस्या निर्माण होने पर पर्यायी व्यवस्था अनिवार्य है। महापारेषण व मेट्रो के अधिकारी कहते हैं काम जल्द होना चाहिए। समय आने पर रास्ता निकाला जाएगा। फिलहाल यह चिंता का विषय नहीं है, समय अभी बाकी है। समन्वय बढ़ा कर प्रशासकीय स्तर पर गति को तेजी दी जा रही है।

नया ठेका देने की अनुमति मांगी है
मेट्रो रेलवे की लागत 8680 करोड़ रुपए है, जिसमें फ्रेंच व जर्मन की कंपनियों का 50 प्रतिशत योगदान है। उन्हें सभी सुविधाए पर्याप्त मात्रा में चाहिए। महापारेषण के अधिकारियों ने पुराना ठेका रद्द कर नया ठेका देने की अनुमति मांगी है। निविदा प्रक्रिया की कालावधि तथा ढाई साल में प्रोजेक्ट की बढ़ी हुई लागत का भी खयाल रखा जाएगा, मुंबई की बैठक में भी इसका जिक्र किया गया। नए आए व्यवस्थापकीय संचालक पराग जैन ने शीघ्र निर्णय लेकर कारवाई का आश्वासन दिया। इसलिये जल्दी लाइन का काम आरंभ होने के संकेत हैं, फिर भी इस रुके काम ने सभी की चिंता बढ़ा दी है। यह भूमिगत लाइन है।

बिजली की दिक्कत नहीं
मेट्रो को अभी केवल 10 मेगावॉट बिजली की आवश्यकता है। उससे अधिक की बिजली व्यवस्था की गई है। मेट्रो पूरी क्षमता से दौड़ेगी। जब अधिक बिजली लगेगी, तब तक दो किलोमीटर लाइन व उपकेंद्र का काम पूरा हो जाएगा। इसके अतिरिक्त मेट्रो सौर ऊर्जा के माध्यम से 15 मेगावॉट बिजली निर्माण करनेवाली है। इसलिए बिजली की कोई दिक्कत नहीं है। इसके साथ ही नजदीक से बिजली देने से मेट्रो के 200 करोड़ से अधिक की राशि बचेगी। ठेकेदार काम नहीं करता है, बल्कि गलत बयानबाजी करता है। मुंबई में हुई बैठक में इस संबंध में सभी जानकारी दी गई है। वहां से आनेवाले आदेशानुसार काम किया जाएगा।
(अविनाश निंबालकर, सुपरिटेंडेंट इंजीनियर, महापारेषण)

सोचना महापारेषण का काम है

मेट्रो ने महापारेषण से 38 मेगावॉट बिजली की मांग की है। बिजली लेने के लिए मॉरिस कॉलेज टी-प्वाइंट के पास बिजली रिसिविंग सेंटर बनाया जा रहा है। दिसंबर 2018 तक उसका काम पूरा हो जाएगा। महापारेषण कहां से बिजली देता है, यह सोचना उनका काम है। समय पर बिजली की व्यवस्था की जाएगी।
(सुरेश बारपोडिया, उप मुख्य प्रोजेक्ट व्यवस्थापक मेट्रो)

काम की जगह पर अतिक्रमण है

2013 में काम शुरू किया था। जहां काम करना है, वहां अतिक्रमण है। उसे खाली कराना है। महानगर पालिका के साढ़े आठ करोड़ रुपए भर कर हमे बताना होगा, तब काम शुरू करेंगे। यह काम महापारेषण का है। अब काम में लगनेवाली सामग्री के 25% रेट बढ़ गए हैं। उस पर भी निर्णय लेना होगा।
(गणेश कृष्णन, ठेकेदार)

Created On :   11 Jun 2018 12:12 PM GMT

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