कैसे लड़ेंगे कोरोना के खिलाफ लड़ाई, तबीयत बिगड़ी फिर मदद के लिए करते रहे मिन्नतें, मौत के 4 घंटे बाद जाकर मिली शव एंबुलेंस

How to fight against Corona, Dead body ambulance came after 4 hours after death
कैसे लड़ेंगे कोरोना के खिलाफ लड़ाई, तबीयत बिगड़ी फिर मदद के लिए करते रहे मिन्नतें, मौत के 4 घंटे बाद जाकर मिली शव एंबुलेंस
कैसे लड़ेंगे कोरोना के खिलाफ लड़ाई, तबीयत बिगड़ी फिर मदद के लिए करते रहे मिन्नतें, मौत के 4 घंटे बाद जाकर मिली शव एंबुलेंस

डिजिटल डेस्क, नागपुर। शहर के जानी-मानी हस्ती लोहिया अध्ययन केंद्र के महासचिव व समाजवादी चिंतक हरीश अड्यालकर का गुरुवार को मेडिकल अस्पताल में कोरोना से निधन हुआ। उनके बेटे नितीन हरीश अड्यालकर भी पॉजिटिव थे। पिता की मृत्यु से वह सदमे में थे। शनिवार सुबह उन्हें भी सांस लेने में तकलीफ हुई। परिजनों और परिचितों ने फोन लगाया, लेकिन समय पर एंबुलेंस नहीं पहुंच पाई और उनकी मृत्यु हाे गई।  

करते रहे हर जगह फोन

विमल कॉम्प्लेक्स घाट रोड निवासी नितीन हरीश अड्यालकर (53) के परिवार में उनकी बहन, पत्नी और दो बच्चे हैं। शनिवार सुबह करीब 8.30 बजे उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी। परिजनों और परिचितों ने मनपा हेल्पलाइन नंबर, मेयो अस्पताल और मेडिकल अस्पताल,  हर जगह कोशिश की, लेकिन कहीं से भी एंबुलेंस नहीं मिल पाई। तब निजी अस्पताल से एंबुलेंस के लिए कॉल किया गया। एंबुलेंस पहुंची, लेकिन पीपीई किट नहीं होने के कारण वह भी मरीज को अस्पताल नहीं लेकर गई। इस बीच, करीब 9.30 नितीन अड्यालकर के शरीर की हरकत बंद हो गई। कुछ समय बाद मेडिकल अस्पताल से एक डॉक्टर उनके घर पहुंची और जांच की। उन्होंने बताया कि मरीज की पल्स बंद हो चुकी है। परिवार के लोगों ने उन्हें एक बार अस्पताल ले जाने के लिए निवेदन किया, लेकिन उन्हें अस्पताल नहीं ले जाया गया। करीब 3 घंटे तक उन्हें एंबुलेंस नहीं मिली। इस बीच परिजनों ने पुलिस व धंतोली जोन में सूचना दी। करीब 12.30 बजे एंबुलेंस आई और उन्हें मेडिकल के ट्रॉमा में ले जाया गया। वहां पर पुलिस ने पंचनामा किया और फिर दोपहर में उनका अंतिम संस्कार किया गया।  

66 वर्षीय बुजुर्ग को लेकर 5 अस्पतालों के चक्कर लगाए, तब कहीं मिला बेड

उधर बेड की कमी नहीं होने का दावा और मरीजों को भर्ती करने में हो रही देरी, दो परस्पर विरोधी बातें सामने आ रही हैं। शनिवार सुबह आर्डनंेस फैक्टरी के पूर्व कर्मचारी के साथ घटित वाकया इसकी पुष्टि करता है। सुबह से दोपहर हो गई, लेकिन निजी व मेडिकल अस्पताल से यही सूचना दी गई कि बेड उपलब्ध नहीं है। आखिरकार दोपहर बाद लगभग 3.30 बजे मरीज को मेडिकल अस्पताल में बेड मिल सका। मानेवाड़ा निवासी 66 वर्षीय बुजुर्ग की बाय-पास सर्जरी हो चुकी है। तबीयत खराब होने पर शुक्रवार शाम को लकड़गंज के नामी अस्पताल ले जाया गया। प्राथमिक इलाज के बाद कोरोना जांच हुई आैर कोविड अस्पताल नहीं होने का कारण बताकर वहां से घर भेज दिया गया। शनिवार सुबह परिजन लता मंगेशकर अस्पताल ले गए, तो जवाब मिला-बेड उपलब्ध नहीं। वहां से वे रामदासपेठ के एक निजी अस्पताल में पहुंचे। तब तक कोरोना रिपोर्ट आ गई, जो  पॉजिटिव आई। परिजन मानेवाड़ा के एक निजी अस्पताल ले गए, लेकिन वहां भी दो टूक जवाब मिला- यहां कोरोना रोगियों की व्यवस्था नहीं। थक-हार कर परिजन  दोपहर 12 बजे मरीज को लेकर मेडिकल अस्पताल पहुंचे। यहां भी दोपहर 3 बजे तक यही बताया जाता रहा कि बेड खाली नहीं है। इस दौरान रोगी की हालत नाजुक होती गई। पल्स रेट गिरने के साथ ही आक्सीजन लेवल भी कम होती जा रही  थी। रोगी की हालत को देखकर परिजनों ने वहीं डटे रहने का निर्णय लिया। आखिरकार दोपहर 3.30 बजे बेड उपलब्ध होने की सूचना मेडिकल अस्पताल से मिली, तो परिजनों की सांस में सांस आई।

Created On :   6 Sept 2020 4:25 PM IST

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