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गोटमार मेला 22 अगस्त को : जानिए क्यों होती है नदी के दोनों ओर से पत्थरों की बारिश

डिजिटल डेस्क, छिंदवाड़ा। विश्व प्रसिद्ध गोटमार मेला छिंदवाड़ा जिले के पांढुर्ना में पोला पर्व के दूसरे दिन इस बार 22 अगस्त को होगा। इस दिन जाम नदी में सावरगांव और पांढुर्ना पक्ष के लोग एक दूसरे पर पत्थरों की बौछार करेंगे। इस खेल में हर साल सैकड़ों लोग चोट लगने से घायल हो जाते हैं। यहां तक कि कुछ जान भी गंवा बैठते हैं। इस दौरान पुलिस और प्रशासन का पूरा अमला क्षेत्र में तैनात रहता है।
दिलचस्प इतिहास
यह खेल कई सालों से लगातार खेला जा रहा है। इसके पीछे अलग-अलग किवंदतियां बताई जाती है। स्थानीय लोगों के अनुसार वर्षों पूर्व सावरगांव की युवती और पांढुर्ना का युवक प्रेमी-प्रेमिका थे। वे शादी भी करना चाहते थे, लेकिन दोनों पक्ष इस बात के लिए तैयार नहीं हुए। युवक-युवती ने एक दिन योजना बनाकर भागने की सोची और इस दौरान पांढुर्ना का युवक-युवती को सावरगांव से ले आया। जिसका पांढुर्ना और सावरगांव के लोगों ने जमकर विरोध कर आपस में विवाद करने लगे। मामला इतना बिगड़ा कि विवाद खूनी संघर्ष में बदल गया। दोनों पक्षों के लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाने लगे। सावरगांव के लोग युवती को बचाने और पांढुर्ना के लोग युवक को बचाने पत्थरबाजी करते रहे। पत्थरबाजी के चलते युवती की मौत हो गई। तब से अब तक यहां प्रेमी-प्रेमिका की याद में गोटमार मेले का आयोजन, हर साल पोला पर्व के दूसरे दिन किया जाता है।
इस दिन सांवरगांव पक्ष के लोग जाम नदी में पुल के पास पलाश का पेड़ गड़ा देते है, जिसे पांढुर्ना पक्ष के लोग Symbolic युद्ध कर पेड़ को उखाड़कर या काटकर जीत हासिल करते है। इसके बाद दोनों पक्ष एक होकर पास में ही स्थित मां चंडी के मंदिर में, पेड़ को बाजे गाजे के साथ ले जाकर अर्पित करते है। इसके बाद सभी एक-दूसरे से गले मिलकर खुशियां मनाते है। दूसरी कहानी में बताया जाता है कि जाम नदी में राजा भोंसले की सेना, नदी में झंडा गाड़कर युद्ध की तैयारी के लिए अभ्यास करती थी। इसके बाद सावरगांव व पांढुर्ना के लोग Symbolic रूप से युद्ध, पोला पर्व के दूसरे दिन आयोजित कर एक-दूसरे पर पत्थरबाजी की परंपरा निभाते आ रहे हैं।
Created On :   13 Aug 2017 8:36 PM IST