गवई की चाह पर आंबेडकर की दो टूक, कहा- महान नेता के साथ मैं नहीं जा सकता

I cannot go with the great leaders said Prakash Ambedkar strictly
गवई की चाह पर आंबेडकर की दो टूक, कहा- महान नेता के साथ मैं नहीं जा सकता
गवई की चाह पर आंबेडकर की दो टूक, कहा- महान नेता के साथ मैं नहीं जा सकता

डिजिटल डेस्क, नागपुर। गुटों में बंटी RPI में नेताओं के बीच टशन कम नहीं हो रहा है। चुनावी गठबंधन से जुड़ी राजेंद्र गवई की चाह पर प्रकाश आंबेडकर ने दो टूक कहा है, गवई तो महान नेता हैं, मैं उनके साथ नहीं जा सकता। उधर जोगेद्र कवाड़े रामदास आठवले के तेवर कायम हैं। राजेंद्र गवई पूर्व राज्यपाल रा.सु गवई के पुत्र हैं। वे अमरावती की राजनीति में सक्रिय हैं। RPI के गवई गुट का नेतृत्व कर रहे हैं। प्रकाश आंबेडकर अकोला की राजनीति में सक्रिय हैं। डॉ.बाबासाहब आंबेडकर के पौत्र हैं। भारिप बहुजन महासंघ का नेतृत्व कर रहे हैं। वंचित बहुजन आघाड़ी के नाम पर बहुजनवादी संगठनों का साथ जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। कवाड़े पहले राकांपा के सहयोग से विधानपरिषद सदस्य थे। फिलहाल कांग्रेस के सहयोग से विधानपरिषद में हैं। आठवले की पार्टी भाजपा गठबंधन में शामिल है। वे केंद्र में सामाजिक न्याय मामलों के राज्यमंत्री भी हैं। राज्य में दलित नेतृत्व की राजनीति में सभी का अपना-अपना स्थान है।

RPI ते हैं 50 से अधिक गुट
मराठवाड़ा विद्यापीठ के नामांतरण की मांग को लेकर कवाड़े द्वारा निकाला गया लांग मार्च राज्य की राजनीति के इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। गवई परिवार भी आंबेडकरवादी राजनीति में गहरी पैठ रखता है। कभी राकांपा नेता शरद पवार  के करीबी रहे आठवले फिलहाल भाजपा के साथ हैं। राज्य में RPI के 50 से अधिक गुट हैं। उनमें इन नेताओं का गुट ही सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इन गुटों में गठबंधन का कई बार प्रयास हुआ है, लेकिन नेताओं के  बीच समन्वय नहीं बन पाने से गठबंधन टूटता रहा है। प्रकाश आंबेडकर ,कांग्रेस व भाजपा से दूरी बनाए हुए हैं। लिहाजा बार बार यह भी आवाज उठती है कि उनके नेतृत्व में बहुजनवादी संगठनों का गठबंधन होना चाहिए। दो दिन पहले राजेंद्र गवई ने भी यही बात दोहरायी थी। अमरावती से नागपुर में आकर उन्होंने प्रेस कांफ्रेंंस ली।

गवई अपनी मंशा पहले ही कर चुके हैं जाहिर
उन्होंने कहा कि वे अमरावती से लोकसभा का चुनाव लड़ना तय कर चुके हैं। राज्य में 5 स्थानों पर अपनी पार्टी को लड़ाना चाहते हैं। वे यह भी चाहते हैं कि प्रकाश आंबेडकर व मायावती की पार्टी का गठबंधन हो। कांंग्रेस आंबेडकरवादी संगठनों को जोड़ना चाहती है, लेकिन कांग्रेस से गठबंधन के पहले आंबेडकरवादी नेताओं में गठबंधन होना चाहिए। गवई ने यह भी कहा कि गठबंधन के लिए कांग्रेस व प्रकाश आंबेडकर की पार्टी का साथ में आमंत्रण मिले तो वे सबसे पहले प्रकाश आंबेडकर के साथ जाना पसंद करेंगे।

गवई ने यह भी कहा था कि कवाड़े, कांग्रेस से अलग होगा तब ही उनके साथ कोई बात आगे बढ़ सकती है। गवई की चाह को प्रकाश आंबेडकर ने साफ तौर पर खारिज कर दिया है। उधर आठवले RPI गुटों से दूरी बनाए हुए हैँ। वे सीधे तौर पर भाजपा को मदद करने का आह्वान कर रहे हैं।

बिखरती गई आरपीआई
आठवले ने पहले तो केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान पाया। अब अपनी पार्टी के एक कार्यकर्ता को महामंडल अध्यक्ष के तौर पर राज्य में राज्यमंत्री का दर्जा दिला चुके हैं। दो कार्यकर्ता को 6-6 माह के मंत्री बनाने का आश्वासन भी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से पा चुके हैं। वे भाजपा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना करने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं। कहते जा रहे हैं कि 2019 के चुनाव में भाजपा 300 से अधिक से अधिक लोकसभा की सीटें जीतेगी।

RPI की राजनीति के जानकारों के अनुसार इन नेताओं का टशन कदाचित ही दूर होगा। चुनाव के समय तो और भी कोई संभावना नहीं रह जाती है। ऐसा नहीं है कि RPI नेताओं की एकता नहीं दिखी। फरवरी 1988 में इन नेताओं ने रीडल्स आफ हिंदुज्म के मुद्दे पर मोर्चा निकाला था। मुंबई में निकला वह मोर्चा शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के विरोध में था।

इन नेताओं की एकजुटता ने राज्य में नई राजनीतिक चुनौती खड़ी होने के संकेत दिए थे, लेकिन जल्द ही नेताओं का साथ छूट गया। 1996 में पुन: साथ आए। युनाइटेड रिपब्लिकन पार्टी का गठन हुआ। प्रकाश आंबेडकर, रामदास आठवले,रा.स़ गवई व जोगेंद्र कवाड़े लोकसभा सदस्य चुने गए। कुछ समय में ही पुन: इनमें बिखराव हो गया। उस समय  सब कांग्रेस की मदद से जीते थे। 

Created On :   8 Sept 2018 5:02 PM IST

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