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3 ब्रेन डेड के हार्ट, लंग्स नहीं आए काम, जरूरतमंदों का नाम केंद्रीय सूची में नहीं
डिजिटल डेस्क, नागपुर। किसी परिवार के सदस्य का ब्रेन डेड होने पर वह परिवार नाजुक स्थिति में होता है। आनन-फानन में कोई निर्णय लेना उस परिवार के लिए मुश्किल होता है। ऐसे में ब्रेन डेड व्यक्ति के अंगदान करने के लिए समुपदेशन करना डॉक्टरों और अंगदान समिति के समन्वयकों के लिए आसान नहीं होता। अंगदान के लिए ‘हां’ कहेंगे या ‘ना’, यह परिजनों पर निर्भर होता है। इसके लिए जबर्दस्ती नहीं की जा सकती। फिर भी कुछ परिजन ब्रेन डेड हो चुके सदस्य के अंगदान करने के लिए तैयार हो जाते हैं। अंगदान से पांच लोगों को जीवन और दो लोगों को रोशनी मिल सकती है, लेकिन यहां अंगदान के बाद केवल तीन लोगों को जीवन और दो लोगों को रोशनी मिलती है, क्योंकि यहां अधिकतर मामले में हार्ट और लंग्स उपयोग में नहीं आते हैं। शहर के जरूरतमंदों का नाम केंद्रीय सूची में नहीं है। इसके पीछे जानकारी साझा नहीं करना मुख्य कारण है। पिछले डेढ़ महीने में तीन ब्रेन डेड मरीजों के हार्ट और लंग्स ट्रांसप्लांट नहीं किए जा सके। उपचार के दौरान प्रतिसाद नहीं मिलने पर विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा ब्रेन की जांच की जाती है। यदि मरीज का ब्रेन डेड हो चुका हो तो इसकी जानकारी परिजनों को दे दी जाती है। इसके बाद समन्वयक के माध्यम से परिवार को अंगदान कर दूसरों को जीवन देने के लिए प्रेरित किया जाता है। ब्रेन डेड व्यक्ति के परिजनों द्वारा अंगदान की अनुमति देने के बाद इसकी जानकारी जेड्टीसीसी (जोेनल ट्रांसप्लांट को-ऑर्डिनेशन सेंटर नागपुर) को दी जाती है। जेडटीसीसी के अध्यक्ष व सचिव द्वारा सबसे पहले केंद्रीय सूची की पड़ताल की जाती है। इस सूची में देशभर में अंग की प्रतीक्षा कर रहे मरीजों की जानकारी मिल जाती है। सबसे पहले नागपुर को प्राथमिकता दी जाती है। यहां जरूरतमंद नहीं होने पर दूसरे शहरों के मरीजों को अंगदान किया जाता है।
ऐसी विडंबना- डॉक्टर्स अपने मरीजों की जानकारी साझा नहीं करते
शहर में लिवर, किडनी प्रत्यारोपण करने के लिए जरूरतमंद मिल जाते हैं। वहीं कॉर्निया आई बैंक को सौंप दिए जाते हैं। यानी यहां तीन अंगों को प्रत्यारोपित कर तीन लोगों को जीवन मिल जाता है। वहीं, दो कॉर्निया दान देने पर दो लोगों को रोशनी भी मिल जाती है, लेकिन हार्ट और लंग्स के मामले में शहर अभी पिछड़ा ही है। शहर में इन अंगों को प्रत्यारोपित करने के लिए मरीज ही नहीं मिल पाते हैं। इसका कारण यह है कि यहां हार्ट और लंग्स से संबंधित अधिकतर विशेषज्ञ डॉक्टर्स अपने मरीजों की जानकारी साझा नहीं करते। उनके यहां उपचारार्थ आनेवाले मरीजों में से किसको हार्ट और लंग्स ट्रांसप्लांट की आवश्यकता है, इसकी जानकारी उन्हें होती है। यह जानकारी जेड्टीसीसी से साझा करनी चाहिए, ताकि वे सूचीबद्ध हो सकें। अथवा डॉक्टरों से अनुशंसा पत्र लेकर मरीजों को जेड्टीसीसी के पास भेजना चाहिए। जब तक जिले के ऐसे जरूरतमंदों का नाम सूची में शामिल नहीं होंगे, तब तक उन्हें हार्ट और लंग्स उपलब्ध नहीं हो पाएंगे।
मुश्किल यह - फिर किसी काम के नहीं होते हार्ट और लंग्स
हार्ट और लंग्स को केवल 4 घंटे में प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए। जेडटीसीसी के सदस्य जब हार्ट और लंग्स के जरूरतमंदों की सूची की पड़ताल करते हैं, तो उन्हें नागपुर में कोई जरूरतमंद नहीं मिलता। तब दूसरे शहरों के मरीजों की तलाश की जाती है। सूची में कलकत्ता, दिल्ली, हैदराबाद, चेन्नई आदि के मरीज सर्वाधिक होते हैं। अब समस्या यह पैदा होती है कि चार घंटे में हार्ट और लंग्स निकालना और उसे जरूरतमंद तक पहुंचाकर सर्जरी कर प्रत्यारोपित करना संभव नहीं होता। चार घंटे बीत जाने के बाद दोनों अंग किसी काम के नहीं होते। यातायात में सबसे बड़ी आर्थिक समस्या होती है। ग्रीन कॉरिडोर बनाने के बाद भी अंगों को निश्चित अवधि में दूसरे शहर तक पहुंचाने के लिए व्यवस्था करना आसान नहीं होता। स्थानीय प्रशासन या सरकार की तरफ से जरूरतमंदों तक अंग पहुंचाने के लिए आर्थिक मदद का नियम नहीं है। इसलिए अंगदान के बावजूद हार्ट आैर लंग्स किसी काम नहीं आते।
शहर में 16 अंग प्रत्यारोपण केंद्र
शहर में 2009 में अंग प्रत्यारोपण की शुरुआत हुई। उस समय जेड्टीसीसी और नियम नहीं बने थे। 2011 में समिति बनी और 2013 से अंग प्रत्यारोपण की नियमानुसार शुरुआत हुई। यहां 16 अंग प्रत्यारोपण केंद्र हैं। इन सभी में किडनी ट्रांसप्लांट होते हैं। इनमें से ही लिवर के लिए 6, हार्ट के लिए 4 और लंग्स के लिए 1 सेंटर है। अब तक 81 लोगों ने अंगदान किया है। पिछले 21 अक्टूबर से 3 दिसंबर तक 5 ब्रेन डेड मरीजों के परिजनों ने अंगदान की अनुमति दी। इनमें से एक मरीज के हार्ट और लंग्स ट्रांसप्लांट योग्य नहीं थे। दूसरे मरीज का हार्ट और लंग्स ट्रांसप्लांट किया गया। तीन मरीजों के हार्ट और लंग्स ट्रांसप्लांट नहीं किये जा सके। यह अंग उपयोगी व उपलब्ध होने के बावजूद किसी के काम नहीं आ सके। इसके पीछे ऊपर गिनाए कारण हैं। इस तरह अंगदान के बाद भी अंग उपयोग में नहीं आते।
डॉ. विभावरी दाणी, अध्यक्ष- जोेनल ट्रांसप्लांट को-ऑर्डिनेशन सेंटर के मुताबिक जिन मरीजों को अंगों की आवश्यकता होती है, इसकी पुष्टि मरीजों के डॉक्टरों ने करनी चाहिए। उन्होंने संबंधित मरीजों की सारी जानकारी जेडटीसीसी से साझा करनी चाहिए, ताकि केंद्रीय सूची में उनका नाम समाविष्ट किया जा सके। ऐसा संभव न हो तो ऐसे मरीजों को अनुशंसा पत्र देकर भेजना चाहिए। हार्ट और लंग्स के मामले में संबंधित विशेषज्ञ डॉक्टर्स अपने यहां आनेवाले जरूरतमंद मरीजों की जानकारी साझा नहीं करते। इसलिए शहर के मरीजों का नाम सूची में दिखायी नहीं देता। ऐसे में दूसरे शहरों के मरीजों का नाम तलाशना पड़ता है। लेकिन 4 घंटे में हार्ट और लंग्स भेजकर प्रत्यारोपण हो पाना संभव नहीं होता। इसके लिए सरकारी स्तर पर कोई व्यवस्था भी नहीं है। ऐसी अनेक समस्याओं के चलते उपलब्ध अंग किसी के काम नहीं आते है। इसलिए विशेषज्ञ डॉक्टर्स, समाजसेवियों और सरकारी अधिकारियों ने अंग प्रत्यारोपण में आनेवाली समस्याओं का हल निकालकर जीवनदान देने में जरूरी पहल करें।
Created On :   5 Dec 2021 3:08 PM IST