21 साल पुराने मामले का आरोपी बरी- हाईकोर्ट ने कहा न्यायदान के वक्त कानून सर्वोपरि हो

In a verdict, High Court said law should be paramount on justice
21 साल पुराने मामले का आरोपी बरी- हाईकोर्ट ने कहा न्यायदान के वक्त कानून सर्वोपरि हो
21 साल पुराने मामले का आरोपी बरी- हाईकोर्ट ने कहा न्यायदान के वक्त कानून सर्वोपरि हो

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने हाल ही में एक मामले पर फैसला देते वक्त स्पष्ट किया है कि न्यायदान के दौरान एक न्यायाधीश को अपने जोश और भावनाओं पर काबू रखना जरूरी है। उन्हें न्यायदान के वक्त कानून को सर्वोपरि रखना होगा। ऐसा न करने से जोश नियमों पर हावी हो जाएगा। जस्टिस एस.एम.मोडक की बेंच ने अकोला के एक 21 साल पुराने प्रकरण में भ्रामक गवाही देने के आरोपी कर्मचारी माणिकराव वाघ को बरी किया है। कोर्ट ने निचली अदालत द्वारा उन्हें सुनाई गई 1 माह की जेल और 200 रुपए जुर्माने की सजा को खारिज कर दिया है।

अपने फैसले में हाईकोर्ट ने अपने निरीक्षण दिया कि दीवानी या आपराधिक मामलों में दो पक्षों को सुनने वाला कोर्ट थर्ड पार्टी की भूमिका में होता है। यह न्यायदान की प्रक्रिया है, लेकिन कभी-कभी कोर्ट की सुनवाई में भी गलतियां हो जाती हैं। कोर्ट में गवाही के लिए पहुंचने वाला गवाह एक वक्त पर कोई अन्य तथ्य बताता है तो दूसरे वक्त पर दूसरा। इस पलटी पर कोर्ट को गुमराह करने वाले को सजा देने का नियम है, लेकिन ऐसा करते वक्त कोर्ट को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि गवाह ने जान-बूझ कर झूठे बयान दिए या परिस्थिति के आधार पर उसने बयान बदले। याचिकाकर्ता की ओर से एड.आनंद परचुरे और एड.रोहित वैद्य ने पक्ष रखा।

यह था मामला
अकोला में म्हाडा द्वारा शिकायतकर्ता गणेश देशमुख को मकान आवंटित किया गया था। शिकायत थी कि म्हाडा के कनिष्ठ अभियंता समाधान भुसारी ने इससे संबंधित काम के लिए उनसे 500 रुपए की रिश्वत मांगी थी। 27 अप्रैल 1998 को एसीबी ने जाल बिछाया और आरोपी अभियंता को पकड़ा। इसमें याचिकाकर्ता को भी गवाह बनाया गया। निचली विशेष अदालत में मामले की सुनवाई हुई तो याचिकाकर्ता ने अपने बयान बदले।

पहले कहा कि आरोपी ने आवंटन के लिए रिश्वत मांगी, फिर क्रास एक्जामिनेशन में कहा कि पानी की पाइपलाइन का काम करने के लिए रिश्वत की मांग हुई। गवाह द्वारा बयान बदलने को विशेष अदालत ने जान-बूझ कर प्रकरण को प्रभावित करने वाला माना। सबूतों के आभाव में कोर्ट ने मूल आरोपी कनिष्ठ अभियंता को तो बरी कर दिया, लेकिन भ्रामक बयान देने वाले गवाह को सीआरपीसी की धारा 344 के तहत 1 माह की जेल और 200 रुपए जुर्माना भरने की सजा सुनाई, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

Created On :   18 Feb 2019 11:23 AM IST

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