RTI में नहीं मिलती जानकारी, सख्ती के बावजूद भी नहीं सुधर रहे अधिकारी

Information not found in RTI, despite the strictness, the officer not improving
RTI में नहीं मिलती जानकारी, सख्ती के बावजूद भी नहीं सुधर रहे अधिकारी
RTI में नहीं मिलती जानकारी, सख्ती के बावजूद भी नहीं सुधर रहे अधिकारी

लिमेश कुमार जंगम,नागपुर। भ्रष्टाचार रूपी दीमक समाज को इस कदर खोखला कर रहा है कि इसे मिटाने के सारे प्रयास धरे के धरे रह गए हैं। भ्रष्टाचार को कम करने और सरकारी व्यवस्थाओं में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए सूचना अधिकार अधिनियम 2005 लागू किया गया। 13 वर्ष बीत गए, लेकिन हैरत की बात है कि आज भी जनता को आसानी से सूचनाएं नहीं दी जातीं। वजह साफ है भ्रष्टाचार को छिपाना। यही वजह है कि हजारों की संख्या में अपील आवेदन बढ़ रहे हैं। बीते 5 वर्षों में 617 जनसूचना अधिकारियों पर 24 लाख 81 हजार 720 रुपए का जुर्माना लगाए जाने के बावजूद राज्य सूचना आयोग के नागपुर खंडपीठ में प्रतिवर्ष करीब 4 हजार अपील आवेदनों के मामले पहुंच रहे हैं। उल्लेखनीय है कि जुर्माना वसूली के मूल्यांकन का अब तक कोई तंत्र विकसित नहीं किया जा सका है। विविध सरकारी विभाग जुर्माना वसूली रिपोर्ट खंडपीठ को नहीं सौंप रहा है, जिसके चलते आयोग के पास वसूली से संबंधित मूल्यांकन की कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है।

नहीं किसी का भय
वर्ष 2013 से 2017 के दौरान राज्य सूचना आयोग के नागपुर खंडपीठ में प्रति वर्ष साढ़े तीन हजार मामले अपील आवेदन के पहुंचते हैं। इसके अलावा भी हजारों शिकायतें खंडपीठ को प्राप्त होते हैं। जीरो पेंडेंसी के मामले में नागपुर खंडपीठ अग्रसर है। अधिकांश मामलों में फैसले लिए जाते हैं। खंडपीठ ने बीते 5 वर्षों में 127 मामलों में जनसूचना अधिकारियों को दोषी पाया और उनके खिलाफ 11 लाख 36 हजार 600 रुपए का जुर्माना लगाया। वहीं 490 ऐसे मामले भी रहे, जिनमें अपीलकर्ता के पक्ष में फैसला देते हुए खंडपीठ ने जनसूचना अधिकारियों से 13 लाख 45 हजार 120 रुपए हर्जाना वसूल कर यह राशि अपीलकर्ता को देने का आदेश जारी किया है। मगर भ्रष्टाचार इस तरह है कि इन सभी कार्रवाई के बावजूद अधिकांश जनसूचना अधिकारियों में न तो जुर्माने की फिक्र देखी जा रही है और न ही कार्रवाई का डर नजर आ रहा है। क्योंकि यदि सब कुछ सही है तो जानकारी देने में कोई परेशानी नहीं है। वही जानकारी छिपाई जाती है, जिसमें अफसरों के निजी हित होते हैं।

ऐसे लगता है जुर्माना
जनसूचना अधिकारी ने यदि सूचना आवेदन लेने से मना किया हो, तय समयावधि में सूचना नहीं दी हो, जानबूझकर अधूरी, अशुद्ध व भ्रामक सूचना दी हो, सूचना आवेदन के विषय वस्तु को नष्ट कर दिया हो या सूचना उपलब्ध कराने में बाधा डाली हो तो यह मामले कार्रवाई व जुर्माने के दायरे में काबिल माने जाते हैं। परंतु आवेदनकर्ता को सर्वप्रथम संबंधित विभाग के प्रथम अपीलीय अधिकारी के पास अपील दायर करना होता है। यदि प्रथम अपीलीय अधिकारी आवेदनकर्ता को संतोषजनक जवाब उपलब्ध कराने में नाकाम हो जाते है तो फिर यह मामला द्वितीय अपील के रूप में राज्य सूचना आयोग के खंडपीठ में तय नियमों के मुताबिक दर्ज कराना पड़ता है। सुनवाई के दौरान दोनों पक्ष की दलीलें सुनने के बाद ही आयोग इस पर फैसला लेते हुए जुर्माने व हर्जाने की कार्रवाई का आदेश जारी करते हैं।

वसूली की रिपोर्ट पेश नहीं होती, इसलिए  मूल्यांकन नहीं कर पाते अिधकारी
सूचना अधिकार के तहत प्राप्त होने वाले द्वितीय अपील आवेदनों की संख्या काफी ज्यादा होने के बावजूद हम अधिकांश मामलों की सुनवाई कर फैसला लेते हैं। जीरो पेंडंसी की ओर हम अग्रसर हैं। जुर्माना व हर्जाने के मामले संबंधित विभाग को आदेश के रूप में भेज दिए जाते हैं। वसूली को लेकर संबंधित विभाग अपनी रिपोर्ट पेश नहीं करता, इसलिए उनका मूल्यांकन नहीं हो पाता। ( मुकुंद देशपांडे, उपसचिव, राज्य सूचना आयोग, खंडपीठ नागपुर) 

Created On :   28 March 2018 11:53 AM IST

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