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सीवेज के पानी से हो रही फूलों की खेती, 3 एकड़ के वेस्ट लैंड में बना विशाल गार्डन

डिजिटल डेस्क, नागपुर। नई तकनीक इतनी विकसित हो गई है कि हर काम अब आसान व सुविधाजनक हो गया है। ऐसी ही एक तकनीक से उपराजधानी में सीवेज के पानी से फूलों की खेती की जा रही है। तीन एकड़ जमीन में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के पानी से तीन एकड़ पानी में फूलों की खेती हो रही है। वहीं कुछ विशेष बीज भी यहां लगाए जा रहे हैं। ये एक विशाल गार्डन है, जिसमें सीवेज वॉटर प्लांट से साफ होने वाले पानी को ड्रिप और पाइप के माध्यम से खेती हो रही है। तीन एकड़ जमीन, लेकिन पानी नहीं।
पानी का विकल्प ढूंढना था, विकल्प मिला और वो था नाग नदी नाला। तभी एक विचार आया और नीरी के संयुक्त तत्तवाधान में शुरु किया फाइटोराइड सिस्टम फॉर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट। सॉयल वॉटर कर्न्वेशन का अनुभव काम आया। ये कहना है प्लांट को ऑपरेट करने वाले अशोक मस्के का। नाग नदी जो अब नाले के के स्वरूप में है उसके पानी से ये प्लांट लगाया गया है।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के ये हैं काम
डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ, महाराजबाग में भी तकनीक इस्तेमाल हो रही है। ये सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट नाग नदी नाले पास ही लगाया गया है। ये प्लांट तीन तकनीक पर काम करती है। फिजिकल, कैमिकल और बॉयोलॉजिकल। ये सीनोसाइल में काम करता है। पहले नाले से जब पानी आता है सबसे पहले स्तर पर वह स्लज और डस्ट को अलग कर देता है। फिर जब ये सैटल डाउन हो जाता है तो कुएं में आता है वहां पानी छन जाता है। उसके बाद चैंबर में पानी आ जाता है। इसके बाद ये प्री-ट्रीटमेंट चैंबर में पानी आता है। इसमें दीवार में छोटे-छोटे पाइप हैं। ये 2 मीटर के छोटे-छोटे पाइप हैं तथा इनका डेप्थ भी 2 मीटर है।
अच्छी बात यह कि इसमें कोई कैमिकल की जरूरत नहीं है। पौधे स्वयं पानी को शुद्ध करते हैं। वनस्पति की जड़ों द्वारा हवा से प्राणवायु पानी में मिश्रित कर पानी का शुद्घिकरण किया जाता है। पानी में हैवी मेटल का भी यह शोषण करती है। जैविक पदार्थ का विघटन जीवाणु के माध्यम से किया जाता है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर ऊपर की सतह को गार्डन की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। ये तकनीक नीरी की है।
सबसे बेहतरीन बात यह है कि पौधे ऑक्सीजन लेते हैं और स्वयं पानी को शुद्ध करते हैं। सीवेज वॉटर में मैंगनीज, कॉपर, आदि मैटल पाए जाते हैं, पौधे स्वयं इन्हें अवशोषित करते हैं। हाइड्रो फाइट्स पौधे जड़ों के जरिए पानी में ऑक्सीजन पहुंचाते हैं। खेती और अन्य उपयोग के साथ ही ओजोनेशन के बाद पानी को पीने लायक भी बनाया जा सकता है।
क्या है एसटीपी
* सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में गंदे पानी और घर में प्रयोग किये गये जल के दूषित अवयवों को साफ किया जाता है। इसको साफ करने के लिए भौतिक, रासायनिक और जैविक विधि का प्रयोग किया जाता है।
* इसके माध्यम से दूषित पानी को दोबारा प्रयोग में लाने लायक बनाया जाता है और इससे निकलने वाली गंदगी का इस प्रकार शोधन किया जाता है कि उसका उपयोग वातावरण के सहायक के रूप में किया जा सके।
* एसटीपी को ऐसी जगह बनाया जाता है जहां विभिन्न स्थानों से दूषित जल वहां लाया जा सके। घरों और फैक्ट्रियों के दूषित जल को साफ करने की प्रक्रिया तीन चरणों में संपन्न होती है जिसके तहत पहले, ठोस पदार्थ को उससे अलग किया जाता है।
* उपरोक्त प्रक्रिया के बाद जैविक पदार्थ को एक ठोस समूह एवं वातावरण के अनुकूल बनाकर इसका प्रयोग खाद एवं लाभदायक उर्वरक के रूप में किया जाता है। इसमें उचित मापदंड का सर्वथा ख्याल रखा जाता है।
* हमारे घरों और बड़ी फैक्ट्रियों से निकलने वाला गंदा बहकर किसी नदी, तालाब में पहुंचता है और उनको दूषित कर देता है। इसको रोकने और दूषित जल को पुन: प्रयोग में लाने के लिए एसटीपी का प्रयोग किया जाता है।
फाइटोरिड टेक्नोलॉजी है
सीवेज ट्रीटमेंट की फाइटोरिड टेक्नोलॉजी है। खेती और अन्य उपयोग किया जा सकता है। फाइटोरिड गंदा पानी साफ करन के लिए बेहतर विकल्प है। मेंटेनेंस भी ज्यादा नहीं होगा। इसे बंगले से लेकर बड़ी कॉलोनियों तक में लगाया जा सकता है। ट्रीटमेंट प्लांट की क्षमता बढ़ते जाने पर लागत कम होती जाती है। इसमें किसी तरह के उपकरणों की जरूरत भी नहीं होती है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट गंदा पानी साफ करना बेहतर विकल्प है। मेंटेनेंस भी ज्यादा नहीं होगा। ये पूरी तरह इकोफ्रेंडली है। एसटीपी की अपेक्षा बेहतर विकल्प है। मैंने इस विषय पर शोध किया है। शोध के दौरान ही सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया गया है। रिसाइकल वॉटर खेती और गार्डन में भी कमा आ सकता है। अभी हम केवल प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर नहीं रह सकते हैं। जब से ये प्लांट लगाया गया है तब से लगातार ये पूरे तीन एकड़ गार्डन में पानी इसी से डाला जाता है। इसका इस्तेमाल पूरे वर्ष में किया जाता है। इस प्लांट को घरों में भी लगाया जा सकता है।
(अशोक मस्के, सहायक अध्यापक, डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ , महाराजबाग)
Created On :   27 Aug 2018 3:07 PM IST