सजा की दर में कमी के लिए जिम्मेदार हैं जांच एजेंसियाें और सरकारी पक्ष की कमजोरी

सजा की दर में कमी के लिए जिम्मेदार हैं जांच एजेंसियाें और सरकारी पक्ष की कमजोरी
सजा की दर में कमी के लिए जिम्मेदार हैं जांच एजेंसियाें और सरकारी पक्ष की कमजोरी
सजा की दर में कमी के लिए जिम्मेदार हैं जांच एजेंसियाें और सरकारी पक्ष की कमजोरी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस जे.चेलमेश्वर ने शनिवार को सिविल लाइंस स्थित देशपांडे सभागृह में आयोजित "कानून और अधिवक्ताओं की भूमिका" पर प्रकाश डाला। इस मौके पर उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र और पूर्वाग्रह से रहित न्यायपालिका ही नागरिकों का विश्वास संविधान में बनाए रखती है, इसलिए न्यायपालिका को स्वतंत्र, सक्षम और सुलभ बनाने की जरूरत है। मगर चिंता का विषय यह है कि भारत में सजा की दर 5 प्रतिशत के करीब है। इसके लिए हमारी जांच एजेंसियों और सरकारी पक्ष की कमजोरियां जिम्मेदार हैं। मामला दर्ज करते समय और उसकी जांच करते समय हमारी जांच एजेंसियां पूर्ण रूप से प्रभावी नहीं रहतीं।

हाईकोर्ट बार एसोसिएशन नागपुर द्वारा स्व.एड.एन.एल.बेलेकर व्याख्यानमाला के तहत यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के प्रशासकीय जस्टिस भूषण धर्माधिकारी ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की।  डॉ.बेलेकर विशेष अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। प्रस्तावना HCBA अध्यक्ष अनिल किल्लोर ने रखी। वर्षा देशपांडे और HCBA उपाध्यक्ष गौरी वेंकटरमन ने संचालन किया। सचिव प्रफुल्ल खुबालकर ने आभार प्रदर्शन किया। 

स्वतंत्र जांच एजेंसी की जरूरत
जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि गुवाहाटी हाईकोर्ट में बतौर मुख्य जस्टिस मेरे कार्यकाल में ऐसे कई अनुभव हुए। मैंने पाया कि जांच करने वाले पुलिस अधिकारियों को कोई बहुत ज्यादा विधि का अनुभव नहीं होता, जितना अधिवक्ता और जजों को होता है। मामले की जांच करने के साथ ही वे बंदोबस्त, सुरक्षा, बचावकार्य आदि में अत्याधिक व्यस्त रहते हैं। ऐसी परिस्थिति में देश में स्वतंत्र जांच एजेंसी की जरूरत है, जो प्रभावी रूप से काम कर सके। जो जांच एजेंसियां मौजूदा वक्त में हैं, आप जानते है कि वे कितनी स्वतंत्र हैं। 

सरकारी पक्ष कमजोर होता है 
वहीं न्यायपालिका की मौजूदा स्थिति में सरकारी पक्ष इतना कमजोर होता है कि मुकदमे का रुख ही पलट जाता है। 30 साल पहले सरकारी पक्ष इतना कमजोर नहीं होता था कि  फैसला बदलने की कोई गुंजाइश बाकी रहे। बदलते राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में किसी एक खास जगह नहीं, बल्कि सारे देश में सरकारी वकीलों की नियुक्तियां किस तरह होती है, हम सब जानते हैं। कई बार तो सरकारी पक्ष आरोपी को सजा दिलाने में काेई खास जहमत तक नहीं उठाता। ऐसी परिस्थति में जजों, बार और अधिवक्ताओं को आत्मसमीक्षा करने की जरूरत है। 

न्यायपालिका पर दबाव आता रहता है 
जस्टिस चेलमेश्वर ने कहा कि देश की व्यवस्था के अनुसार, सरकार को न्यायपालिका में नियुक्तियों का अधिकार प्राप्त है। तो स्वाभाविक है कि सरकार इस पर नियंत्रण करने की कोशिश करती है। केवल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में ऐसा होता आ रहा है। जब तक न्यायपालिका को सरकार के निर्णय पर पुनर्विचार करने के अधिकार प्राप्त है, तब तक एेसा जारी रहेगा। ऐसी स्थिति में बार और अधिवक्ताओं को न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सक्षमता की रक्षा करने के लिए आगे आना चाहिए। 

मामलों के निपटारों पर जोर दें 
मैंने बतौर जज यह देखा है कि हमारे देश में दीवानी (सिविल) क्षेत्र में पति-पत्नी के झगड़े से लेकर तो भाइयों के आपसी विवाद जैसे छोटे-मोटे मामलों में भी पुलिस और न्यायपालिका को लोग शामिल कर लेते हैं। कई बार तो आत्मसंतुष्टि के लिए लोग बैगर ठोस कारण के कोर्ट में मुकदमा दायर करते हैं। इसी प्रवृत्ति के कारण कोर्ट में लंबित मामलों की संख्या बढ़ती है और जरूरतमंदों को सही वक्त पर न्याय नहीं मिल पाता। न्याय में देरी एक प्रकार का अन्याय ही है। ऐसे में अधिवक्ताओं को अपने मामलों के जल्द से जल्द निपटारे पर जोर देते रहना चाहिए। 
 

Created On :   15 April 2018 4:41 PM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story