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ज्ञान से होती है मानव जीवन की महानता : सुवीरसागर
डिजिटल डेस्क, नागपुर। मानव जीवन की महानता ज्ञान से होती है। यह उद्गार तपस्वी सम्राट आचार्य सन्मतिसागर के शिष्य आचार्य सुवीरसागर ने श्री पार्श्वप्रभु दिगंबर जैन सेनगण मंदिर के सन्मति भवन में व्यक्त किए। आचार्यश्री ने कहा कि आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी अष्टपाहुड के दर्शन पाहुड मे वर्णन किया है कि श्रावक का धन यदि दान में जाता है, तो वह भाग्येश बनता है और भोग में जाता है, तो वह पाप कमाएगा। मानव जीवन की महानता ज्ञान से होती है। ज्ञानी ज्ञान की ही उपासना करता है। आचार्य रविषेण ने पद्मपुराण में बताया है कि मंदिर में जाने के विचार से 1 उपवास का पुण्य, चलने पर 1000 उपवास का, मंदिर के शिखर के दर्शन होने पर एक लाख उपवास और साक्षात भगवान के दर्शन हुए तो अनंत उपवास का फल मिलता है। मंदिर पहुंचना कठिन और रमना उससे भी कठिन होता है। सभी को जहां समान रूप से शरण मिले वह भगवान का समवशरण कहलाता है।
मुनिश्री चिन्मयसागर को विनयांजलि देते हुए कहा कि उन्होंने स्वयं को रत्नत्रय से सींचा। मुनि दीक्षा आचार्य विद्यासागर से प्राप्त की। जंगल में घोर तपस्या करते थे। इसलिए उन्हें जंगलवाले बाबा कहते थे। उनकी समाधि अच्छे ढंग से होने के कारण वे 8 भव में मोक्ष को प्राप्त कर लेेंगे। जब तक समाधि मरण नहीं होगा तब तक उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी। मुनिश्री चिन्मयसागरजी को 18 अक्टूबर को उत्कृष्ट समाधि को प्राप्त किया। विनयांजलि देते हुए सेनगण मंदिर के अध्यक्ष सतीश जैन ने प्रस्तावना में कहा कि मुनिश्री चिन्मयसागरजी की जंगलवाले बाबा के रूप में अलग पहचान थी। सूरज जैन, महासमिति महाराष्ट्र के अध्यक्ष सुनील जैन पेंढारी, सैतवाल जैन मंदिर के मंत्री दिलीप राखे, लाडपुरा महिला मंडल की अध्यक्षा स्नेहा खेडकर, खंडेलवाल समाज के पंकज बोहरा और पुलक मंच के शरद मचाले ने भी विनयांजलि दी। अष्टमी पर्व पर हीराचंद मिश्रीकोटकर, पंकज बोहरा, राजकुमार खेडकर, महावीर मिश्रीकोटकर, सुधीर सावलकर आदि भक्तोंने आचार्यश्री ससंघ के समक्ष इष्ट प्रार्थना की।
Created On :   22 Oct 2019 6:09 AM GMT